नई शिक्षा नीति: बेहद साफ नीयत व पूर्ण निष्ठा से अमलीजामा पहनाया, तो हर क्षेत्र में आएगा आमूलचूल परिवर्तन! कुछ ऐसा ही इशारा कर रहा डा. ललित जलाल का आलेख :: विस्तार से पढ़िए

अल्मोड़ा, 07 अगस्त। बेहद चिंतनशील एवं जन सरोकारों से जुड़े मुद्दों पर चिंतन-मनन करने वाले डा. ललित जलाल नई शिक्षा नीति को लेकर भी उत्सुक…

अल्मोड़ा, 07 अगस्त। बेहद चिंतनशील एवं जन सरोकारों से जुड़े मुद्दों पर चिंतन-मनन करने वाले डा. ललित जलाल नई शिक्षा नीति को लेकर भी उत्सुक हैं। उन्होंने राष्ट्रीय शिक्षा नीति का अध्ययन करने के बाद नई शिक्षा नीति को अपने तरीके से विस्तृत लेख के जरिये इसे समझाने का प्रयास किया है। उनका कहना है कि यह नीति आमूलचूल परिवर्तन लाने का दम रखती है, बशर्ते पूरी निष्ठा से इसे अमलीजामा पहनाया जाए। उनका मानना है कि नई शिक्षा नीति नये द्वार खोलने का दम रखती है। डा. ललित जलाल राजकीय इंटर कालेज अल्मोड़ा में विज्ञान शिक्षक के पद कार्यरत हैं। किस तरह यह नीति लाभदायी है, यही समझने के लिए पढ़िए उनका ये लेख:-
भारतवर्ष में समय-समय पर राष्ट्रीय शिक्षा नीति का निर्माण किया गया। सर्वप्रथम 1968 ईसवी में पहली राष्ट्रीय शिक्षा नीति तथा वर्ष 1986 में दूसरी राष्ट्रीय शिक्षा नीति तथा वर्ष 1992 में यथा संशोधित नीति लागू की गयी। अब नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 अस्तित्व में आई है। समय-समय पर विभिन्न आयोगों ने समयबद्व शिक्षा नीतियों की सिफारिश की। जिसमें कोठारी आयोग का नाम मुख्य रुप से उभर कर सामने आता है।
शिक्षा का व्यापक अर्थ में समझें, तो हम पाते हैं कि शिक्षा का मुख्य उद्देश्य राष्ट्रीयता का निर्माण करना है। वर्तमान शिक्षा नीति जाने-माने अन्तरिक्ष वैज्ञानिक डा. के. कस्तूरीरंगन की अध्यक्षता में निर्मित हुई। करीब 34 वर्षों बाद इस नीति में विद्यालयी शिक्षा से लेकर उच्च शिक्षा तक कई अहम् बदलाव किये गये हैं। इसमें महत्वपूर्ण ये बात सामने निकलकर आयी है, वह है जीडीपी का 6 प्रतिशत शिक्षा पर खर्च जबकि अब तक केवल 4.3 प्रतिशत ही शिक्षा पर व्यय किया जा रहा था। विभिन्न आयोगों ने समय-समय पर जीडीपी का 6 प्रतिशत खर्च करने पर बल दिया लेकिन अभी तक यह संभव नहीं हो पाया था, किन्तु अब यह संभव हो सकेगा। दूसरा महत्वपूर्ण बिन्दु यह है कि उच्च शिक्षा में विभिन्न आयोग तथा यूजीसी, एआईसीटीई, एनसीटीई अलग अलग रुप में नियामक संस्थाओं के रुप में काम कर रहे थे। अब इन्हें मिलाकर राष्ट्रीय स्तर पर एक ही नियामक संस्था बनायी जायेगी। महत्वपूर्ण बिंदु यह है कि मानव संसाधन विकास मंत्रालय का नाम बदलकर शिक्षा मंत्रालय कर दिया है। जो कि आजादी के बाद कई कई वर्षों तक शिक्षा मंत्रालय के नाम से ही जाना जाता रहा। जिसे बाद में मानव संसाधन मंत्रालय नाम दिया गया। नाम बदलाव का मुख्य फायदा यह होगा कि पहले मानव संसाधन विभाग के अंतर्गत 6 विभाग तथा खेल संस्कृति बाल विकास सम्मिलित थे, लेकिन अब स्वतंत्र मंत्रालय बन जाने के बाद इसका अधिक महत्व हो जाएगा। विद्यालयी शिक्षा में भी आमूलचूल परिवर्तन किये गये हैं। जिसमें सर्वप्रथम 10+2+3 ढांचे को समाप्त कर 5+3+3+4 किया गया है। नई नीति में दसवीं बोर्ड को समाप्त करने की योजना है। कक्षा 9 से 12 तक एकीकृत पाठ्यक्रम संचालित करने की बात शामिल है तथा इसे भी सेमेस्टर प्रणाली के माध्यम से संचालित करने की बात कही गयी है तथा छठी कक्षा से ही व्यावसायिक शिक्षा प्रदान करने व मातृभाषा को सम्मिलित किया गया है। छात्रों को अब विषय चयन करने में आजादी प्रदान की है। जैसे कि भौतिक विज्ञान विषय के साथ वह अर्थशास्त्र विषय में चयन कर सकता है। पूर्व में यह व्यवस्था अमेरिका आदि देशों तक सीमित थी।
इसके अलावा अब स्नातक स्तर की शिक्षा को भी 4 वर्षों में करने की बात नई नीति में कही गयी है। इसका लाभ ये है कि यह विशेषकर इंजीनियरिंग के छात्रों के लिये लाभकारी सिद्ध हो सकेगी। जैसे कि कोई छात्र अपनी पढ़ाई बीच में पूरी नहीं कर पा रहा है, तो उसका वक्त बरबाद नहीं जाएगा बल्कि यदि वह प्रथम वर्ष की परीक्षा उत्तीर्ण कर लेता है, तो उसे कम से कम सर्टिफिकेट मिलेगा और यदि दो वर्ष की परीक्षा उत्तीर्ण कर लेता है, तो डिप्लोमा प्रदान किया जायेगा। इसका सीधा लाभ उसके स्किल को मिल सकेगा, क्योंकि यदि वह दो वर्ष के बाद नौकरी में लग जाता है, तो कम से कम उसे इंजीनियरिंग का डिप्लोमा तो मिल ही जायेगा।
शिक्षकों के मानक व मानदंड में भी काफी बदलाव किये गये हैं। शिक्षक बनने के लिये चार वर्षीय इंटीग्रेटेड कोर्स को मंजूरी दी गयी है। इसमें छात्र को इंटर करते ही शिक्षक बनने के अवसर मिल पायेगा। जैसा कि मेडिकल व इंजीनियरिंग में होता है। जिसमें उसे तीन वर्ष का विज्ञान या कला स्नातक की पढाई व चौथे वर्ष बीएड की पढाई का मौका मिलेगा। इससे लाभ होगा कि वह स्नातक डिग्री के साथ साथ प्रशिक्षण भी हासिल कर सकेगा। इंटर के बाद चार वर्षीय बीएड, बीए के बाद दो वर्षीय बीएड, स्नातकोत्तर के साथ एक वर्षीय बीएड की व्यवस्था की गयी है, जबकि वर्ष 2030 से केवल चार वर्षों मे बीएड करने की अनिवार्य शर्त होगी। इसके साथ ही शिक्षक भर्ती प्रक्रिया को पारदर्शी बनाने की बात कही गयी है। पदोन्नति के लिए योग्यता, वरिष्ठता के साथ-साथ समय-समय पर आंकलन को भी आधार बनाया जायेगा। शिक्षकों का स्थानान्तरण केवल अपरिहार्य कारणों या केवल पदोन्नति के समय ही करने की बात कही गयी है।
टीईटी परीक्षा को इंटर स्तर तक अनिवार्य बनाने, डेमो या स्किल टेस्ट व इंटरव्यू को शामिल करने, शिक्षा अधिकार अधिनियम 2009 को कक्षा 12 तक लागू करने तथा ग्रामीण इलाकों में शिक्षकों के लिए सरकारी आवास बनाने की बात नीति में शामिल है। जो बेहद लाभदायी योजना है। बालिकाओं की शिक्षा में सुधार के लिए सभी कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालयों को 12वीं कक्षा तक उच्चीकृत किया जायेगा। उच्च शिक्षण संस्थाओं में प्रवेश के लिए कामन एंट्रेंस एग्जाम का आॅफर छात्रों को दिया जायेगा। जिससे छात्रों पर अंकों का दबाव कम होगा। नई शिक्षा नीति में अनुसंधानों के लिए नेशनल रिसर्च फाउंडेशन बनाया जायेगा तथा विश्वविद्यालयों में सरकारी व प्राइवेट के लिए एक समान संहिता बनायी जायेगी।
यह नीति शिक्षा व्यवस्था में सुधार के लिए एक महत्वपूर्ण मार्ग प्रशस्त करेगी। जो नये भारत के निर्माण में मील का पत्थर साबित होगी। अब देखने वाली बात यह होगी कि कैबिनेट द्वारा पारित नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 शिक्षा में क्या क्या बदलाव लायेंगे तथा राष्ट्र निर्माण में अपनी भूमिका किस प्रकार निभायेंगी। इसके लिए थोड़ा धैर्य रखने की आवश्यकता है ताकि समय-समय पर सही आंकलन के द्वारा ही कुछ कहना संभव हो पायेगा।
प्रस्तुतकर्ता:- डा. ललित जलाल
शिक्षक, राजकीय इंटर कालेज अल्मोड़ा।

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