बंदरों का आतंक: अल्मोड़ा वन प्रभाग ने पालिका के पाले में​ सरकाई गेंद

— शिकायती पत्र पर कार्रवाई का हाल— पालिका व शिकायतकर्ता से मांगे साक्ष्यसीएनई रिपोर्टर, अल्मोड़ासामाजिक कार्यकर्ता संजय पांडे की बंदरों की समस्या से संबंधित शिकायत…

— शिकायती पत्र पर कार्रवाई का हाल
— पालिका व शिकायतकर्ता से मांगे साक्ष्य
सीएनई रिपोर्टर, अल्मोड़ा

सामाजिक कार्यकर्ता संजय पांडे की बंदरों की समस्या से संबंधित शिकायत का संज्ञान लेते हुए वन विभाग ने फिलहाल गेंद नगर पालिका के पाले खिसका दी है। प्रभागीय वनाधिकारी ने इस शिकायत के संदर्भ में जिलाधिकारी को पत्र भेजकर यह कह दिया है कि नगर क्षेत्र में बंदर पकड़ने की जिम्मेदारी नगर पालिका की है। वन​ विभाग तो प्रभाग अंतर्गत बजट उपलब्धता पर बंदर पकड़कर दूर जंगल में छोड़ता है। इस पत्र की प्रति कार्रवाई के नाम पर शिकायतकर्ता को भी भेजी है।

यहां थपलिया निवासी सामाजिक कार्यकर्ता संजय पांडे का एक शिकायती पत्र जब समस्या समाधान के लिए वन विभाग के पास पहुंचा, जिसमें अल्मोड़ा शहर को बंदरों के आंतक से मुक्ति दिलाने व बाहर से वाहनों में भरकर जिले में बंदर छोड़े जाने पर रोक लगाने का अनुरोध किया गया था। यह पत्र श्री पांडे ने 23 जून 2022 को जिलाधिकारी को सौंपा था। वन विभाग ने समस्या समाधान की दिशा में ठोस कदम उठाने या आपसी समन्वय से नई पहल करने के बजाय सिर्फ पत्र का जवाब देने तक ही सीमित रहना उचित समझा। एक पत्र के माध्यम से वन विभाग ने गेंद पालिका के पाले में खिसका दी। अल्मोड़ा वन विभाग के प्रभागीय वनाधिकारी ने उक्त शिकायती पत्र के क्रम में डीएम को पत्र लिखा है। जिसमें स्पष्ट तौर पर लिखा गया है कि नगर क्षेत्र में बंदरों को पकड़ने की जिम्मेदारी नगरपालिका परिषद की है। यह भी कहा है कि वन प्रभाग स्तर पर बंदर आतंकित क्षेत्र में बजट की उपलब्धता के आधार पर बंदर पकड़ कर दूर जंगलों में छोड़ा जाता है। यह भी कहा है कि मानव वन्य जीव संघर्ष राहत वितरण नियमावली के नियमों के अनुसार बंदरों के काटे जाने पर मुआवजा प्रदान करने का कोई प्राविधान नहीं है।

पत्र में यह भी कहा है कि कतिपय ग्रामीणों व जनप्रतिनिधियों से समय—समय पर बाहरी क्षेत्रों से बंदर पकड़कर अल्मोड़ा जिले में छोड़े जाने की शिकायतें प्राप्त होते रही हैं और इस पर वन क्षेत्राधिकारियों व फील्ड स्टाफ को जांच करने के मौखिक निर्देश दिए गए, किंतु बंदर छोड़े जाने का कोई मामला प्रकाश में नहीं आया। प्रभागीय वनाधिकारी ने जवाबी पत्र में कहा है कि बंदर छोड़े जाने के संबंध में नगरपालिका से साक्ष्य उपलब्ध कराने का अनुरोध किया गया, लेकिन अभी तक उपलब्ध नहीं कराया गया। इस पत्र में खास बात ये है कि ​अब उन्होंने शिकायतकर्ता सामाजिक कार्यकर्ता संजय पांडे से अनुरोध किया है कि यदि उनके पास जिले में बंदर छोड़े जाने के साक्ष्य हों, तो वे वन विभाग के कार्यालय में ये साक्ष्य उपलब्ध कराएं।
सुविधा दें, साक्ष्य लें: पांडे

इस मामले पर सामाजिक कार्यकर्ता संजय पांडे का कहना है कि बंदर पकड़ने का जिम्मा वन विभाग का है, लेकिन वन विभाग पालिका पर यह जिम्मेदारी थोप रहा है। साक्ष्य उपलब्ध कराने के संबंध में उनका कहना है कि साक्ष्य जुटाने के लिए संसाधनों की सुविधा चाहिए और यदि शासन उन्हें सुविधा उपलब्ध कराए, तो वे साक्ष्य उपलब्ध करा देंगे। उन्होंने कहा है कि बंदरों के आतंक से शहर व गांववासी परेशान हैं। बंदर खेती नष्ट कर रहे हैं। हमला कर रहे हैं। इसके बावजूद शिकायतकर्ता से साक्ष्य मांगकर शासन की कार्यप्रणाली पर प्रश्नचिह्न लगाया जा रहा है। इस समस्या का हल निकालना होगा, सिर्फ पत्राचार व मौखिक आदेशों से काम चलने वाला नहीं है। उन्होंने कहा है कि सिविल सोयम डिवीज़न में बन्दरबाड़ा बनाया जाना प्रस्तावित है। जिसके लिए त्वरित व कारगर कदम उठाए जाने चाहिए। श्री पांडे ने जन प्रतिनिधियों व राजनैतिक दलों से भी अपील की है कि इस समस्या से जनता को निजात दिलाने के लिए अपने स्तर से कदम उठाएं।

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