हल्द्वानी/अल्मोड़ा। कत्यूरी राजमाता जियारानी का रानीबाग से शताब्दियों पुराना इतिहास रहा है। जिया की प्रिय तप व समाधिस्थली ऐतिहासिक रानीबाग में ही स्थित है, किंतु नगर निगम हल्द्वानी द्वारा इस पौराणिक स्थल पर विद्युत शवदाह गृह का निर्माण किए जाने की घोषणा से कत्यूरी वंश से जुड़े संगठनों में आक्रोश की लहर फैल गई है।
उल्लेखनीय है कि रानीबाग का अस्तित्व हल्द्वानी शहर से भी शताब्दियों पुराना रहा है। हल्द्वानी ब्रिटिश शासनकाल में विकसित हुआ, जबकि रानीबाग का अस्तित्व पौराणिक काल से ही रहा है। विशेषकर कत्युरी रानी जिया के समय लगभग १२ वीं शताब्दी से रानीबाग का गौरवशाली अतीत जीवित है। रानीबाग वह स्थान है, जिसे राजमाता जिया की प्रिय स्थली व समाधिस्थली भी कहा जाता है। राजमाता जिया इतिहास की पहली महिला रही हैं जिसने रोहिलों से रानीबाग में युद्ध किया और उन्हें पराजित किया। जिस तरह राजपूतों का धर्म के साथ युद्ध करने का चरित्र रहा है उसी तरह रानी ने रोहिलाओं को माफ कर छोड़ दिया, परंतु अपनी वहशी व कातिलाना प्रकृति के रहते इन रोहिल्ला सरदारों ने धोखे से फिर आकर्मण कर रानी को घेर लिया तो रानी ने अपने शिवभक्त व साध्वी होते हुए वहीं पर चित्रशिला पत्थर पर धरती में समाकर खुद को लुप्त कर दिया। जिस का प्रतीक चिन्ह आज भी उस रंग बिरंगे चितकी लगे पत्थर पर विराजमान हैं।
इधर जय जिया महारानी सेवा समिति की ओर से रमेश मनराल, चंदन मनराल आदि ने जारी बयान में कहा कि हल्द्वानी में हर वर्ष कत्युरी जत्थे कुमाऊं, गढ़वाल व नेपाल से बड़े—बड़े झुण्डों में गाजे—बाजों व निसानों के साथ सफेद पगड़ी पहने लोग यहां पहुंचते हैं। आज नगरपालिका हल्द्वानी विद्युत शवदाह गृह के नाम पर उस पौराणिक स्थल को शवों के जलाने के लिए पुरे मैदान में निर्माण कार्य करने का टेंडर निकाल इस तीर्थ स्थान को हमेशा के लिए समाप्त करना चाहती है, जबकि नदी में पहले से ही शवों को जलाने की व्यवस्था है। उन्होंने सवाल किया कि यह कहा जा रहा है कि हल्दवानी में यहां से जो पेयजल आपूर्ति की जाती है वह शवों के जलाने से दुषित होता है, तो विद्युत शवदाह गृह की आवश्यकता है। समिति के पदाधिकारियों ने कहा कि शवदाह के लिए जितनी भूमि की आवश्यकता होती है वह इस जागर के स्थल के नीचे मौजूद एक बड़े स्थल में पर्याप्त है। अन्य लकड़ी के शवदाह गृह के लिए जमीन नदी के तट पर ही उपलब्ध है और इस जागर मैदान के नीचे दूसरी एक जमीन मौजूद है जिस पर यह कार्य हो सकता है।
उन्होंने कहा कि ऐतिहासिक महत्व के जागर व पुजा स्थल पर शवदाहगृह बनाना ठीक ऐसा ही है कि राम मंदिर निर्माण स्थली पर यह कहा जाय कि हिंदुओं के शवदाह गृह का निर्माण किया जाए। इस पूरे मैदान में कत्युरी जागर व पूजा के लिए अलग स्थान, कत्यूरी देवी देवताओं के मंदिर, धर्मशाला, संग्रहालय व शोध संस्थान व पार्क निर्माण की पुरानी योजना है। गोलज्यु का मंदिर भी इसी का भाग है जो कत्युरी शासक रहे हैं। इसलिए एक विद्युत शवदाह गृह के नाम पर ऐतिहासिक महत्व के मैदान को बर्बाद कर ठेकों के लिए लुटने का उपक्रम गलत व विरोध स्वरुप है। यह कत्यूरी व पुरे उत्तराखंड के पौराणिक स्थली को श्मशान बनाने का गलत कार्य है, जिसके लिए देवी देवता भी माफ नहीं कर पायेंगे। समिति ने संबंधित विभागों से इस योजना पर पुनः विचार कर वैकल्पिक योजना पर कार्य करने का आग्रह किया है। पदाधिकारियों ने कहा कि यदि ऐसा नही हेाता है तो यह कार्य समस्त पर्वतीय आस्थाओं व धार्मिक मान्यताओं का हनन ही कहा जायेगा।
02 करोड़ 71 लाख का है प्रोजेक्ट
नगर निगम हल्द्वानी ने विद्युत शवदाह गृह निर्माण का टेंडर जून माह में ही फाइनल कर दिया है। नगर निगम ने दो करोड़ 71 लाख रुपए यह प्रोजेक्ट गुरुग्राम की कंपनी को निर्माण के लिए सौंपा है। रानीबाग स्थित विद्युत शवदाह गृह निर्माण के लिए निविदा प्रक्रिया पूरी हो गई है। विद्युत शव-दाह गृह निर्माण में कुल 2 करोड़ 71 लाख 40 हजार रुपये की लागत आएगी। समयबद्ध तरीके से काम चला तो छह माह में शवदाह गृह तैयार हो जाएगा। 12800 वर्ग मीटर में बनने वाले इस प्रोजेक्ट में एक विद्युत शव-दाह गृह, दो आधुनिक शव दाह गृह, तीन परम्परागत शव दाह गृह का निर्माण होगा।
विद्युत शवदाह के विरोध के मामले का हल्द्वानी पहुंचने पर लूंगा संज्ञान : रौतेला
मेयर जोगेंद्र पाल सिंह रौतेला ने दूरभाष पर बताया कि वह फिलहाल देहरादून में हैं। हाल में रानीबाग स्थित चित्रशिलाघाट में विद्युत शवदाह गृह बनाने का काम शुरू नही हुआ है। इस शवदाह के विरोध के मसले पर उन्होंने कहा कि उन्हें फिलहाल मामले की जानकारी नही है। जब वह हल्द्वानी पहुंचेंगे तो शवदाह का विरोध करने वाले मामले का अध्ययन करेंगे। अभी उन्हें किसी संगठन की ओर से कोई ज्ञापन नही मिला है और मामला अभी उनके संज्ञान में सीएनई के माध्यम से ही आया है।