देहरादून। पहाड़ी टोपी और पारंपरिक परिधान मिरजई को देशभर में खास पहचान दिलाने वाले गोपेश्वर के हल्दापानी निवासी लोक के शिल्पी कैलाश भट्ट इस दुनिया को अलविदा कह गए। जानकारी मिली है कि बीते दिन इंदिरेश अस्पताल में उन्होंने अंतिम सांस ली। उनके जाने से तमाम लोग शोक में डूब गए हैं। कम ही उम्र में वो दुनिया को अलविदा कह गए।
आपको बता दें कि कैलाश भट्ट की उम्र 52 साल थी जो पिछले काफी समय से बीमार थे। सोमवार को देहरादून के श्रीमहंत इंदिरेश अस्पताल में उन्होंने अंतिम सांस ली। वह अपने पीछे पत्नी, बेटे और बेटी को छोड़ गए हैं। कैलाश जाने-माने रंगकर्मी भी थे। उनके आकस्मिक निधन से लोक संस्कृति से जुड़े लोग स्तब्ध हैं। उन्होंने इसे लोक की अपूरणीय क्षति बताया है।
जानकारी मिली है कि 16 साल की उम्र से पारंपरिक परिधानों के निर्माण का कार्य कर रहे लोक शिल्पी कैलाश भट्ट ने अपने हुनर से मिरजई, झकोटा, आंगड़ी, गाती, घुंघटी, त्यूंखा, ऊनी सलवार, सणकोट, अंगोछा, गमछा, दौंखा, पहाड़ी टोपी, लव्वा जैसे पारंपरिक परिधानों से वर्तमान पीढ़ी को परिचित कराया। कैलाश ने श्री नंदा देवी राजजात की पोशाक ही नहीं, देवनृत्य में प्रयुक्त होने वाले लुप्त हो रहे मुखौटा को भी लोकप्रियता प्रदान की।
गौरतलब है कि गणतंत्र दिवस के मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उत्तराखंडी टोपी पहनी थी, जिस पर राज्य के प्रसिद्ध फूल ब्रह्मकमल का चिह्न भी अंकित था। जिसके बाद से यह टोपी उत्तराखंड में ट्रेंड बन गई है। फिर उत्तराखंड के विधानसभा चुनाव में भी पहाड़ी टोपी का खासा उत्साह दिखाई दिया।
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