✒️ महिला सहित 03 के खिलाफ मुकदमा दर्ज
सीएनई रिपोर्टर
उत्तराखंड के पौड़ी से एक दर्दनाक घटना हुई है। यहां एक 14 साल के नाबालिग ने अपने घर पर फांसी लगा आत्महत्या कर ली। घटना के तीन रोज बाद राजस्व पुलिस ने गांव के ही तीन लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया है।
यह ह्रदयविदारक घटना मंगलवार 23 अगस्त की है। जब शाम के वक्त पौड़ी तहसील अंतर्गत पैडुलस्यूं पट्टी के रछूली गांव में 14 साल के तरूण सिंह पुत्र सरजन सिंह की मौत हो गई। राजस्व पुलिस के अनुसार बालक ने ट्यूशन से घर लौटने के बाद कमरे में लगी बल्लियों पर चुन्नी डाली और उससे लटक आत्महत्या कर ली। जिस वक्त यह हादसा हुआ तब बालक के परिजन कहीं बाहर गये हुए थे। जब परिजन लौटे तो मासूम की लाश लटकती देख सन्न रह गये। घर में कोहराम मच गया। आस-पास के लोगों की मदद से बालक को नजदीकी अस्पताल लाया गया, जहां डाक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया।
अब इस घटना के तीन दिन बीतने के बाद मृतक के पिता सरजन सिंह की तहरीर के आधार पर राजस्व पुलिस ने गांव के ही तीन लोगों के खिलाफ मामला दर्ज किया है। तहरीर में कहा गया है कि बच्चे पर इन लोगों ने चोरी का झूठा आरोप लगाया था, जिससे आहत होकर मासूम ने अपनी जान दे दी। फिलहाल पौड़ी तहसील के रछूली गांव में अब भी मातम छाया हुआ है। राजस्व उपनिरीक्षक महावीर सिंह के अनुसार एक महिला सहित तीन लोगों पर बालक को आत्महत्या के लिए मजबूर करने का मुकदमा दर्ज किया गया है। मामले की गंभीरता से जांच की जा रही है।
क्या कहते हैं मनोवैज्ञानिक
मनोवैज्ञानिकों के अनुसार बीते कुछ सालों में बच्चों में भी आत्महत्या की प्रवृत्ति देखी जा रही है। टूटते संयुक्त परिवार, माता-पिता का कामकाजी होना और बच्चों की छोटी-मोटी समस्याओं पर ध्यान नहीं देना इसका सबसे बड़ा कारण है। इंटरनेट की दुनिया ने भी कम उम्र के बच्चों को स्वाभाव से जिद्दी और उग्र बना दिया है। mood swing की वजह से बच्चों में भी मानसिक अवसाद बढ़ रहा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के आंकड़ों के अनुसार भारत में आत्महत्या की दर 10 एशियाई देशों में सबसे ज्यादा है। यहां हर चार में से एक किशोर मानसिक अवसाद से पीड़ित है।”
राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड्स ब्यूरो (NCRB) की ओर से जारी एक रिपोर्ट के अनुसार देश में रोजाना 14 साल तक की उम्र के आठ बच्चे आत्महत्या की राह चुन रहे हैं। बच्चों और किशोरों में बढ़ती आत्महत्या की इस प्रवृत्ति को रोकने के लिए विशेषज्ञ जीवनशैली में बदलाव के अलावा कई अन्य कदम उठाने की सलाह देते हैं। सबसे अहम है कि माता-पिता बच्चों की गतिविधियों पर निगाह रखें और उनकी समस्याएं सुनें और उन्हें सुलझाने की कोशिश करें। रिपोर्ट के अनुसार एक समय वह भी था जब बच्चों में ऐसी प्रवृत्ति नहीं हुआ करती थी, लेकिन अब बच्चे भी अपमान व जिल्लत से बचने का यही सबसे बेहतर तरीका मौत को गले लगाना चुन लेते हैं।