जोड़ोड़ा विवाह, जानिये क्या है रस्म ?
जोड़ोड़ा विवाह की अद्भुत परंपरा : उत्तराखंड, जिसे ‘देवभूमि’ कहा जाता है, न केवल अपने मनमोहक प्राकृतिक सौंदर्य के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि यहाँ की जनजातीय संस्कृति में छुपी हुई सदियों पुरानी परंपराएं भी दुनिया को हैरान करती हैं। इन्हीं में से एक है देहरादून के पास स्थित जनजातीय बहुल क्षेत्र जौनसार-बावर की अद्वितीय विवाह पद्धति जिसे स्थानीय भाषा में जोड़ोड़ा विवाह (Jojoda Vivah) कहा जाता है।
जोड़ोड़ा विवाह, कोई सामान्य विवाह नहीं है। यहाँ रीति-रिवाज उलट जाते हैं: दूल्हा बारात लेकर दुल्हन के द्वार नहीं जाता, बल्कि दुल्हन गाजे-बाजे और ढोल-नगाड़ों के साथ अपनी बारात लेकर दूल्हे के घर पहुँचती है! यह परंपरा केवल एक रस्म नहीं, बल्कि सामाजिक समानता, दहेज-मुक्ति और महिला सशक्तिकरण का एक ज्वलंत उदाहरण है।
क्यों है ‘जोड़ोड़ा’ इतना खास?
1. फिजूलखर्ची पर लगाम और दहेज-मुक्ति: ‘जोड़ोड़ा’ विवाह का मुख्य उद्देश्य शादी के नाम पर होने वाली फिजूलखर्ची और दिखावे पर रोक लगाना है। यह विवाह पूरी तरह से दहेज रहित (Dowry-Free) होता है। दुल्हन के परिवार पर कोई आर्थिक बोझ न पड़े, यह सुनिश्चित करने के लिए सभी रस्में और समारोह दूल्हे के घर पर ही आयोजित किए जाते हैं।
2. महिला सशक्तिकरण का प्रतीक: यह परंपरा सदियों से महिला की महत्ता को स्थापित करती रही है। दुल्हन का बारात लेकर आना उसे ‘लेने’ वाली नहीं, बल्कि ‘देने’ वाली स्थिति में रखता है। यह न केवल बेटी के माता-पिता को कर्ज से बचाता है, बल्कि समाज को यह संदेश भी देता है कि विवाह में स्त्री-पुरुष दोनों समान भागीदार हैं।
3. एक सुंदर वापसी: हालांकि नई पीढ़ी के बढ़ते शहरीकरण और आधुनिकता के प्रभाव में यह परंपरा कुछ समय के लिए विलुप्त होने लगी थी, लेकिन हाल ही में जौनसार क्षेत्र के कुछ परिवारों ने अपनी जड़ों से जुड़ते हुए इस शानदार रीति को पुनर्जीवित किया है।

🎉 तीन शादियां, एक ही संदेश
हाल ही में जौनसार क्षेत्र में तीन जोजोड़ा विवाह हुए, जिन्होंने पुरानी परंपरा को फिर से जीवित कर दिया।
पहली शादी – कविता और मनोज की
उत्तरकाशी जिले के मोरी तहसील में पूर्व प्रधान कल्याण सिंह चौहान के पुत्र मनोज की शादी गांव जाकटा निवासी कविता से हुई। इस शादी की खास बात यह रही कि कविता खुद अपनी बारात लेकर दूल्हे के घर पहुंचीं।
ढोल-नगाड़ों, लोक धुनों और पारंपरिक नृत्य के बीच जब दुल्हन बारात लेकर पहुंची, तो पूरा गांव उत्सव में बदल गया। महिलाएं पारंपरिक परिधानों में झूम रही थीं और बच्चे भी इस अनोखी शादी को देखकर रोमांचित थे।
दूसरी और तीसरी शादी – नीलम, बीना और उनके दूल्हे
देहरादून जिले के कालसी ब्लॉक के फटेऊ गांव में भी कुछ ऐसा ही दृश्य देखने को मिला। यहां कपिल और प्रीतम नाम के दो भाइयों की शादी में उनकी दुल्हनें — नीलम और बीना, अपनी-अपनी बारात लेकर दूल्हों के घर पहुंचीं।
गांव के लोगों ने इन शादियों को “परंपरा की वापसी” बताया और कहा कि ऐसे आयोजन आज के समाज में एक प्रेरणा हैं।
क्या कहती है परंपरा?
स्थानीय बोली में ‘जोड़ोड़ा’ का शाब्दिक अर्थ है ‘वह जोड़ा जिसे भगवान ने स्वयं मिलाया है’।
इस परंपरा के अनुसार, दुल्हन पक्ष बारात लेकर दूल्हे के घर पहुंचता है। दुल्हन अपने साथ केवल पांच आवश्यक वस्तुएं लाती है: एक परात, एक कलश, एक संदूक, कटोरी और एक अन्य सामान, जो दर्शाता है कि यह विवाह भौतिक वस्तुओं का नहीं, बल्कि प्रेम और सम्मान का बंधन है।
❤️ पुरखों की परंपरा को पुनर्जीवित करने की पहल
दूल्हे के पिता कल्याण सिंह चौहान ने कहा —
“इस विवाह के माध्यम से हमने अपने पुरखों की परंपरा को पुनर्जीवित करने का प्रयास किया है। हमारी संस्कृति की कई सुंदर रीतियां समय के साथ खो गईं। यदि हम उन्हें फिर से जीवित नहीं करेंगे, तो आने वाली पीढ़ियां अपनी जड़ों से कट जाएंगी।”
निष्कर्ष: जौनसार-बावर का यह ‘जोड़ोड़ा’ विवाह साबित करता है कि पुरानी परंपराएं केवल अतीत का हिस्सा नहीं होतीं; वे भविष्य के लिए भी मूल्यवान पाठ सिखा सकती हैं। यह अनूठी रीत, आधुनिक समाज को यह संदेश देती है कि खुशहाल शादी का आधार महंगा आयोजन नहीं, बल्कि समानता और सम्मान है। यह उत्तराखंड की जड़ों से जुड़ी एक ऐसी कहानी है, जिसे हर किसी को जानना चाहिए।
