बाघों का रिवर्स पलायन : पहाड़ चढ़ने लगे हैं बाघ, कई इलाकों में देखी गई मौजूदगी

सीएनई रिपोर्टर, अल्मोड़ा यकीन करना मुश्किल है, लेकिन मैदानी क्षेत्रों रहने वाले टाइगर अब पहाड़ों की ओर रूख करने लगे हैं। वैसे वन्य जीव विशेषज्ञों…

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सीएनई रिपोर्टर, अल्मोड़ा

यकीन करना मुश्किल है, लेकिन मैदानी क्षेत्रों रहने वाले टाइगर अब पहाड़ों की ओर रूख करने लगे हैं। वैसे वन्य जीव विशेषज्ञों का कहना है कि इसमें हैरान होने वाली बात नहीं है, क्योंकि इसे वन्य जीवों के रिवर्स पलायन के रूप में देखा जा सकता है। चूंकि यह बात तय है कि ब्रिटिश शासनकाल के अंतिम दिनों तक पहाड़ों में बाघ हुआ करते थे, लेकिन परिस्थितिवश वह मैदानी क्षेत्रों को चले गये थे।


ज्ञात रहे कि केदारनाथ अभ्यारणय में पहली बार वर्ष 2019 के जून माह में एक बाघ कैमरे में कैद किया गया था। इससे पूर्व 2016 में पिथौरागढ़ के अस्कोट में भी बाघ कैमरे में कैद हो गया था। यह जानकारियां सार्वजनिक होने के बाद हर कोई हैरान हो गया, क्योंकि बाघ का पहाड़ में दिखना कोई मामूली बात नहीं थी। तब प्राणी विशेषज्ञों के समक्ष एक सवाल खड़ा हो गया कि आखिर एक हजार फीट के निचले इलाकों से बाघ पहाड़ कैसे चढ़ गये ?

वाइल्ड लाइफ इंस्टिट्यूट ऑफ इंडिया, देहरादून के वैज्ञानिकों का कहना है कि भोजन और आवास की तलाश में बाघ मैदान से ऊंचे पहाड़ों की तरफ जा रहे हैं। वर्तमान में प्रदेश में करीब 370 बाघ हैं। इसमें से कॉर्बेट नेशनल पार्क में ही बाघों की संख्या 215 है। एक बाघ को रहने के लिए 20 किलोमीटर तक का क्षेत्रफल चाहिए, लेकिन पार्क और इससे सटे जंगलों में एक बाघ को पांच किलोमीटर का इलाका भी नहीं मिल पा रहा है। जगह की कमी से बाघों में आपसी संघर्ष, मानव-वन्यजीव संघर्ष भी बढ़ रहा है। इसलिए बाघ पलायन कर रहे हैं।

हाल में एक बात पता चली है कि कार्बेट पार्क और नंधौर सेंक्चुरी के बाघ पहाड़ का रूख करने लगे हैं। नैनीताल वन प्रभाग ने इसकी पुष्टि भी की है। एक कैमरा ट्रैप में हैड़ाखान में बाघ की उपस्थिति मिल चुकी है। बताया जा रहा है कि बाघ बौर वैली से देचौरी रेंज होते हुए नैनीताल शहर से लगे पंगूट के जंगलों तक पहुंच रहे हैं। वहीं बेतालघाट और अल्मोड़ा वन प्रभाग के जंगलों में भी बाघ की चहलकदमी देखी गई है।

इधर प्रभागीय वनाधिकारी माहतिम यादव ने कहा कि अल्मोड़ा वन प्रभाग में मोहान के पास बाघों को देखा गया है, जो कि जिम कार्बेट पार्क से लगा हुआ ऐरिया है। उन्होंने कहा कि अल्मोड़ा के पहाड़ों में फिलहाल बाघों की मौजूदगी को लेकर रिसर्च नहीं हो पाई है। अतएव इस बारे में कुछ कहना जल्दबाजी होगी।

इधर अंतर्राष्ट्रीय जू के पूर्व उप निदेशक और प्रोजेक्ट इंचार्ज जीएस कार्की के अनुसार अध्ययन में नेशनल टाइगर कंजरवेशन अथॉरिटी का प्रोटोकाल
(ट्रांजेक्ट एक्सरसाइज) है, उसका पालन करते हुए अध्ययन किया जा रहा है। इसमें कुछ इलाकों के बारे में पता चला है, जिसका इस्तेमाल कर बाघ पहाड़ चढ़ रहे हैं। नैनीताल जनपद में बौर वैली से बाघ देचौरी रेंज से होते हुए पंगूट (नैनीताल) पहुंच रहे हैं। इसी तरह दाबका वैली से विनायक (नैनीताल), मोहान- कुनखते से बेतालघाट और अल्मोड़ा वन प्रभाग के जंगल में पहुंच रहे हैं। चंपावत जिले में चंपावत की पहाड़ियों में इनके पहुंचने वाले इलाकों का पता चला है।

यहां यह भी बता दें कि यदि कभी आने वाले सालों में अल्मोड़ा जनपद के पहाड़ी इलाकों में बाघ पहुंच गये तो यहां रहने वाले गुलदारों के लिए बड़ा संकट पैदा हो सकता है। चूंकि बाघ अपने इलाके बड़े दायरे में बनाते हैं और उनका यह स्वभाव है कि वह अपने इलाके में किसी प्रतिद्वंद्वी को बर्दाश्त नहीं कर सकते। पहाड़ों में गुलदारों की बहुत बड़ी तादात है। यदि यहां बाघ पहुंचने लगे तो वह सबसे पहले गुलदारों को खत्म करेंगे।


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