दीपावली पर तांत्रिक परंपराएं और जीव बलि
उल्लू-कछुए जैसे जीवों के लिए क्यों काल बन जाती है अमावस्या की रात?
दीपावली पर उल्लू की बलि एक क्रूर अंधविश्वास है ! जानें क्यों जीव हत्या से माँ लक्ष्मी कभी प्रसन्न नहीं होतीं और ऐसा करने वालों का सर्वस्व क्यों समाप्त हो जाता है। तंत्र और धर्म में जीव बलि का वास्तविक अर्थ क्या है।
दीपावली, यानी दीपों का पर्व, जो अंधकार पर प्रकाश की विजय का प्रतीक है। यह रात माँ लक्ष्मी के आगमन की होती है, जो सुख, समृद्धि और सौभाग्य लेकर आती हैं। लेकिन विडंबना यह है कि यही पवित्र अमावस्या की रात कुछ मासूम जीवों, विशेषकर उल्लू और कछुए के लिए ‘काल’ बन जाती है। सदियों से चली आ रही एक क्रूर और खोखली तांत्रिक परंपरा के चलते, यह मान्यता फैल गई है कि दीपावली की रात उल्लू या अन्य जीवों की बलि देने से देवी लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं, और घर में धन का वास चिरकाल तक बना रहता है।
यह एक ऐसा अंधविश्वास है, जो न केवल धर्म और नैतिकता के विरुद्ध है, बल्कि हमारे वन्यजीवों के लिए भी एक गंभीर खतरा है।
लक्ष्मी का वाहन… बलि का शिकार क्यों?
उल्लू को माता लक्ष्मी का वाहन ‘उलूक वाहिनी’ कहा जाता है। वह रात्रिचर होने के बावजूद गहन अंधकार में भी देख सकता है। इसे विवेक, दूरदर्शिता और अप्रत्याशित धन का प्रतीक माना जाता है। लेकिन कुछ अज्ञानी और स्वार्थी लोग इस मान्यता को विकृत कर देते हैं। वे सोचते हैं कि उल्लू को अपने पास रख लेने या उसकी बलि देने से ‘वाहन’ सदा के लिए ‘लक्ष्मी’ को उनके घर बांध लेगा।
लेकिन, सच इसके बिलकुल विपरीत है!
जो लोग लक्ष्मी के वाहन की हत्या या उसे यातना देते हैं, वे कैसे सोच सकते हैं कि धन की देवी उन पर कृपा करेंगी? यह मान्यता न केवल शास्त्रों का अपमान है (जिनमें कहीं भी जीव बलि का उल्लेख नहीं है), बल्कि माँ लक्ष्मी के मूलभूत स्वरूप—समृद्धि, करुणा और न्याय—के भी विरुद्ध है।
बलि देने से प्रसन्नता नहीं, सर्वस्व समाप्त होता है!
कोई भी देवी-देवता, जो जीवन का स्रोत है, एक निर्दोष और निरीह प्राणी की हत्या से प्रसन्न नहीं हो सकता। हिंदू धर्म, जिसमें ‘अहिंसा परमो धर्मः’ का सिद्धांत सर्वोपरि है, वहां धन और समृद्धि के लिए किसी जीव की क्रूरतापूर्ण हत्या को कैसे स्वीकार किया जा सकता है?
- लक्ष्मी चली जाती हैं: लक्ष्मी जी को चंचला कहा जाता है। वे वहाँ कभी नहीं ठहरतीं, जहाँ क्रूरता, लालच और हिंसा का वास होता है। उल्लू की बलि या किसी भी जीव की हत्या एक जघन्य पाप है, जो तत्काल ही उस स्थान से सभी शुभ ऊर्जाओं को नष्ट कर देता है। धन का आगमन हो भी जाए, तो वह अस्थिर रहता है और विनाशकारी साबित होता है।
- कर्मों का फल: तंत्र-शास्त्र का वास्तविक अर्थ ‘त्याग’ से है—अपने भीतर के काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद और मात्सर्य जैसे अवगुणों की बलि देना। पशु बलि तो केवल अज्ञानता पर आधारित है। जो व्यक्ति निर्दोष जीव की हत्या कर धन मांगता है, उसे केवल पाप और उसके भयानक कर्म फल मिलते हैं। शास्त्रों के अनुसार, जीव हत्या करने वाले का सर्वस्व समाप्त हो जाता है। उसे न केवल सामाजिक और कानूनी दंड मिलता है, बल्कि उसका जीवन, स्वास्थ्य और परिवार भी अशांत हो जाता है।
जागृति ही असली प्रकाश है
दीपावली का त्योहार हमें प्रकाश की ओर बढ़ने का संदेश देता है—यह प्रकाश, विवेक और करुणा का है, अंधविश्वास और क्रूरता का नहीं। उल्लू या किसी भी जीव की बलि या तस्करी भारतीय वन्यजीव संरक्षण अधिनियम के तहत एक गंभीर अपराध है, जिसके लिए कठोर कारावास और जुर्माने का प्रावधान है।
याद रखें: असली लक्ष्मी केवल निर्मल हृदय, ईमानदारी और सद्व्यवहार से प्रसन्न होती हैं। किसी बेज़ुबान की जान लेने से नहीं! यदि आप सचमुच माँ लक्ष्मी का आशीर्वाद चाहते हैं, तो इस दीपावली पर किसी जीव को जीवनदान दें, उसकी रक्षा करें, और अपने भीतर के लोभ और अंधविश्वास की बलि दें—यही सच्ची पूजा है। अंधकार से बाहर निकलें और ज्ञान का दीप जलाएं।

दीपावली पर उल्लुओं का शिकार रोकने के लिए वन विभाग हुआ सतर्क
देहरादून। दीपावली के दौरान उल्लुओं के शिकार को रोकने के लिए वन विभाग ने विशेष कदम उठाए हैं। रविवार से देहरादून के मालसी जू में उल्लुओं पर कड़ी निगरानी रखी जाएगी। इसके लिए रातभर जू के पास चार वनकर्मी तैनात रहेंगे और जिलेभर में गश्त बढ़ा दी जाएगी।
जू में तीन अलग-अलग प्रजातियों के कुल 10 उल्लू हैं, जो वन्यजीव संरक्षण अधिनियम के तहत संरक्षित हैं। वनकर्मी लोगों से अपील कर रहे हैं कि वे उल्लुओं के शिकार से जुड़ी अंधविश्वास वाली धारणा को छोड़ें। डिप्टी रेंजर विनोद लिंगवाल ने बताया कि उल्लू की सुरक्षा के लिए विभाग पूरी तरह से सक्रिय है और खासकर दीपावली के दौरान यह सुनिश्चित किया जाएगा कि उल्लुओं का शिकार न हो।
इसके साथ ही जू और जंगल के आसपास पटाखे जलाने पर भी रोक लगा दी गई है। वन विभाग का मानना है कि पटाखों की तेज आवाज और रोशनी से वन्यजीवों में भय पैदा होता है और वे अपने घरों से बाहर उड़ जाते हैं, जिससे उन्हें खतरा हो सकता है।
इसके अलावा, उल्लुओं की सुरक्षा के लिए लच्छीवाला रेंज में ‘हंट फॉर हेल्प’ अभियान भी चलाया जा रहा है, जिसका उद्देश्य उल्लुओं के अवैध शिकार और व्यापार को रोकना है। विभाग शिकार और तस्करी के नेटवर्क पर नजर रखे हुए है और ड्रोन से निगरानी की जाएगी।
विभाग ने चेतावनी दी है कि उल्लू के शिकार या तस्करी में शामिल किसी भी व्यक्ति के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी।
