दीपक पाठक, बागेश्वर
आजादी के बाद करीब सात दशक का वक्त पार हो गया। सरकार विकास के दावों का ढिंढोरा पीटते नहीं थकती। मगर ऐसे उदाहरण कम नहीं हैं, जो इन दावों की हवा निकाल देते हैं। ऐसा ही एक नमूना कांडा तहसील के जेठाई क्षेत्र का तिपोला गांव बना है, जहां के वाशिंदे आज भी सिर बोझ लेकर मीलों पैदल चलने को मजबूर हैं। बार—बार गुहार के बावजूद इन ग्रामीणों को आज तक एक अदद सड़क नसीब नहीं हो सकी।
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पिथौरागढ़ जनपद की सरहद पर बागेश्वर जिले का तल्ला तिपोला गांव बसा है। जहां के ग्रामीण आजादी के सत्तर सालों बाद भी बड़ा कष्टमय जीवन जी रहे हैं। ग्रामीणों का कहना है कि यहां लगभग 50 से अधिक परिवार निवास करते हैं और गांव की आबादी लगभग 250 के करीब है। मुख्य सड़क तक पहुंचने के लिए ग्रामीणों को लगभग पांच किलोमीटर की दूरी पैदल नापनी पड़ती है। राह में नदी पार करते हुए बड़ी मुश्किलों के बाद अपने गांव तक पहुंच पाते हैं। घरेलू इस्तेमाल का सामान हो, खाद्य सामग्री हो या फिर गैस सिलेंडर, इन सिर में ढोकर ग्रामीण बड़ी मशक्कत से घर तक पहुंचा पाते हैं।
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सबसे अधिक मुश्किल तब पैदा हो जाती है, जब मरीजों या प्रसव पीड़ा से पीड़ित महिला को अस्पताल ले जाने के लिए मुख्य सड़क तक लाना होता है। मगर तंत्र की बेरुखी कहें या राजनेताओं व जनप्रतिनिधियों की अनदेखी, किसी ने इस पीड़ा को नहीं समझा। वर्ष 2006 में इस गांव के लिए काफी अनुनय—विनय के बाद एक सड़क स्वीकृत हुई। व्यवस्था का आलम ये है कि सर्वे के बाद भी सड़क नहीं बन सकी।
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क्षेत्र के सामाजिक कार्यकर्ता श्याम सिंह पिलख्वाल, आनन्द सिंह पिलख्वाल, राजन सिंह पिलख्वाल, दयाल सिंह पिलख्वाल, कमलेश सिंह पिलख्वाल ने बताया कि उक्त समस्या बेहद पीड़ादायक व सोचनीय है। अब अपनी पीड़ा को लेकर ग्रामीण बुधवार को जिलाधिकारी से मिलेंगे। उन्होंने कहा है कि यदि इसके बाद सड़क जल्द बनने की उम्मीद नहीं जगी या सड़क नहीं बनी, तो ग्रामीण के पास उग्र आंदोलन के अलावा कोई विकल्प नहीं बचेगा।
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