HomeDelhiसमलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने से सुप्रीम कोर्ट का इनकार

समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने से सुप्रीम कोर्ट का इनकार

नई दिल्ली | सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने की गुहार मंगलवार को ठुकरा दी। मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने समलैंगिक विवाह को मान्यता देने की मांग तीन-दो के बहुमत से खारिज कर दी जबकि हिंसा, जबरदस्ती या हस्तक्षेप के किसी भी खतरे के बिना सहवास के उनके अधिकार को बरकरार रखा।

संविधान पीठ ने बहुमत के फैसले में कहा कि कानून समान लिंग वाले जोड़ों के विवाह के अधिकार को मान्यता नहीं देता है। इस पर कानून बनाना संसद पर निर्भर है। मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति कौल ने विवाह के अधिकार को पढ़ा और ऐसे समान लिंग वाले जोड़ों को परिणामी लाभ देने के अपने अधिकार को बरकरार रखा।

दूसरी ओर न्यायमूर्ति भट्ट, न्यायमूर्ति कोहली और न्यायमूर्ति नरसिम्हा ने समान लिंग वाले जोड़ों की शादी को मान्यता देने से इनकार कर दिया। संविधान पीठ के सदस्यों ने हालांकि एकमत से केंद्र सरकार के इस बयान को रिकॉर्ड में लिया कि वह समलैंगिक जोड़ों को दिए जाने वाले अधिकारों और लाभों को सुव्यवस्थित करने के लिए एक समिति का गठन करेगी।

बच्चा गोद लेने के मामले में न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति कौल ने समलैंगिक जोड़ों को अधिकार दिया, लेकिन अन्य तीन न्यायाधीशों इस दृष्टिकोण से असहमति जताई और समलैंगिक तथा अविवाहित जोड़ों को गोद लेने से बाहर रखने वाले सीएआरए नियमों की वैधता को बरकरार रखा।

न्यायमूर्ति चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति संजय किशन कौल, न्यायमूर्ति एस रवींद्र भट, न्यायमूर्ति हेमा कोहली और न्यायमूर्ति पी एस नरसिम्हा की संविधान पीठ ने 10 दिनों तक संबंधित पक्षों की दलीलें सुनने के बाद 11 मई 2023 को फैसला सुरक्षित रख लिया था।

याचिकाकर्ताओं ने दलील दी थी कि समलैंगिक विवाह को मान्यता न देना समानता, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और गरिमा के अधिकारों का उल्लंघन है। याचिका में यह भी कहा गया कि शीर्ष अदालत को इस समुदाय की सामाजिक सुरक्षा और अन्य कल्याणकारी लाभों तक पहुंच के लिए उचित निर्देश भी पारित करने चाहिए।

केंद्र सरकार ने याचिकाकर्ताओं का पुरजोर विरोध किया था। सरकार ने दलील देते हुए कहा था कि याचिकाकर्ताओं की मांग को अनुमति देने से व्यक्तिगत कानूनों के मामले में बेहद खराब स्थिति उत्पन्न हो जाएगी।

शीर्ष अदालत में सरकार ने यह भी कहा था कि इस विषय को विधायिका द्वारा (केवल इसके व्यापक परिणामों के कारण) ही संभाला जा सकता है। केंद्र सरकार ने यह भी दावा किया था सिर्फ सात राज्यों ने समलैंगिक विवाह के मसले पर उसके सवाल का जवाब दिया है। इनमें राजस्थान, आंध्र प्रदेश और असम ने ऐसे विवाहों के लिए कानूनी मंजूरी की मांग करने वाले याचिकाकर्ताओं के तर्क का विरोध किया है।

संविधान पीठ के समक्ष सुनवाई के दौरान वरिष्ठ वकील, ए एम सिंघवी, राजू रामचंद्रन, के वी विश्वनाथन (अब उच्चतम न्यायालय न्यायाधीश के रूप में पदोन्नत), आनंद ग्रोवर और सौरभ किरपाल ने 21 याचिकाकर्ताओं का पक्ष रखा।

RELATED ARTICLES

Leave a reply

Please enter your comment!
Please enter your name here

- Advertisment -

Most Popular

Recent Comments