प्याज बीज उत्पादन हेतु कन्दों का चुनाव व भंडारण

डा० राजेन्द्र कुकसालमोबाइल नंबर –9456590999 भंडारण हेतु मध्यम आकार व पतली गर्दन वाले कन्दों का ही चुनाव करें। उत्तराखंड राज्य को जैविक प्रदेश बनाने का…

डा० राजेन्द्र कुकसाल
मोबाइल नंबर –
9456590999

भंडारण हेतु मध्यम आकार व पतली गर्दन वाले कन्दों का ही चुनाव करें। उत्तराखंड राज्य को जैविक प्रदेश बनाने का प्रयास किया जा रहा है। कई जनपदो विकास खण्डों को जैविक क्षेत्र भी घोषित किया जा चुका है। जैविक खेती के लिये आवश्यक है कि हमारे पास परम्परागत रूप से उत्पादित जैविक फसलों का बीज हो। पहाड़ी क्षेत्रों में परम्परागत कृषि से मिली प्राकृतिक धरोहर प्याज बीज की स्थानीय किस्मों को यहां के कृषक खोते जा रहे हैं।

प्याज Allium cipa राज्य के पर्वतीय क्षेत्र की एक महत्व पूर्ण व्यवसायक फसल है जिसका उत्पादन यहां कई पीढ़ियों से परम्परागत रूप से किया जाता आ रहा है। पहाड़ी क्षेत्रों के कृषक प्याज का बीज क्षेत्र विशेष में उत्पादित प्याज कि फसल से स्वस्थ एवं आकृषित प्याज के वल्वों/कन्दौ से उत्पादित करता आ रहा है। बीज उत्पादन में कृषक किसी भी रसायनिक खाद/ रसायनिक दवा प्रयोग भी नही करता है। यह बीज आनुंवाशिक रुप से शुद्द होता है।

स्थानीय रुप से उत्पादित प्याज का बीज क्योंकि एक ही जलवायु में कई पीडियों से उगाया जा रहा है इस प्रकार यह बीज जलवायु के अनुकूल Acclimatized होता है। स्थानीय रूप से क्षेत्र विशेष की जलवायु व मिट्टी में उत्पादित प्याज बीज से प्याज का उत्पादन अच्छा होता है फसल पर कीट व बीमारी का कम प्रकोप होता है,सूखा सहने की छमता अधिक होती है साथ ही उत्पादित प्याज़ फसल का भन्डारण कृषक वर्ष भर अपने उपयोग हेतु घरों के ढैपरों (कमरे के अन्दर ऊपर बनी दुच्छत्ती) में करते आ रहे हैं।

विगत कुछ वर्षों से उद्यान विभाग, जलागम / विभिन्न परियोजनाओं एवं स्वयंम सेवी संस्थाओं द्वारा योजनाओं में उन्नतशील किस्मों के नाम पर कम कीमत पर या निशुल्क प्याज बीज का स्थानीय प्याज उत्पादको को वितरण किया जा रहा है। इन बीजौं से उत्पादित प्याज फसल मै प्याज़ बल्व/कन्द बनने से पहले ही bolting (फूल के डन्ठल) आने शुरु हो जाते है जिससे उत्पादन काफी कम होता है । फसल पर कीट व्याधि का प्रकोप अधिक होता है साथ ही कन्दों (प्याज वल्व) की भन्डारण क्षमता काफी कम समय के लिये होती है जिस कारण उत्पादित प्याज़ के कन्द भन्डारण करने पर शीघ्र ही सड़ने लगते हैं या शीघ्र अंकुरित होकर नष्ट होने लगते हैं।

प्याज एक पर-परागित फसल है जिसमें मधु मक्खी या अन्य कीट परागण मै मदद करते है इसलिये बीज फसल उत्पादन हेतु न्यूनतम 400 मीटर कि अलगाव दूरी (Isolation distance) याने प्याज की एक किस्म से दूसरी किस्म कि दुरी 400 मीटर होनी चाहिये।

योजनाओं में दिये गये निम्न स्तर के बीजों से प्राप्त उत्पादित कन्दों से यदि कृषक प्याज बीज उत्पादन का प्रयास करता है और यदि क्षेत्र विशेष में अन्य कृषक स्थानीय किस्मों से प्याज बीज उत्पादन कर रहे तो दो किस्मों के बीच उचित अलगाव दूरी न होने के कारण उन कृषकों का उत्पादित होने वाला स्थानीय प्याज बीज की आनुवांशिक शुद्दता परागण के कारण प्रभावित होती है जिस कारण स्थानीय किस्म का पहाडी प्याज बीज अशुद्ध व विलुप्त होता जा रहा है।

वर्तमान में स्थानीय पहाडी प्याज बीज उपलब्ध न होने के कारण पहाड़ी क्षेत्रों में प्याज उत्पादन काफी घटा है। इसलिये आवश्यक है कि स्थानीय कृषकों द्वारा परम्परागत रुप से उत्पादित प्याज बीज जो की अधिक उपज देने के साथ क्षेत्र विशेष की जलवायु के अनुकूल है का उत्पादन बढ़ाया जाय जिससे प्याज की इन स्थानीय किस्मों का संरक्षण भी किया जा सके।

उत्तराखंड में लगभग 4 हजार हैक्टेयर क्षेत्र में प्याज की खेती की जाती है इसके लिए लगभग 300 कुन्तल प्याज बीज की प्रति बर्ष आवश्यकता पड़ती है। पहाड़ी क्षेत्रों के लिए लम्बी प्रकाश अवधि वाली प्याज (पहाड़ी प्याज ) के बीज से ही अच्छा उत्पादन लिया जा सकता है। पर्वतीय क्षेत्रौ मै प्याज की फसल अप्रेल/मई में तैयार हो जाती है जिसके कन्दों को बीज उत्पादन हेतु अक्टुबर/नवम्बर तक भन्डारित कर सुरक्षित रखना होता है।

बीज उत्पादन हेतु प्याज कन्दों का भंडारण-

  • प्याज कन्दों का भंडारण किस्म, कन्द की सुप्तावस्था, कीट और रोग का प्रकोप और कटाई पूर्व व उपरांत प्रबंधन के तरीके और भंडारण परिस्थिति आदि पर निर्भर करता है।
  • आम तौर पर, हल्के लाल रंग की किस्में गहरे लाल, सफेद और पीले रंग की किस्मों की तुलना में अधिक भंडारण क्षमता रखती हैं।
  • प्याज की फसल तैयार होने पर पत्तियों का ऊपरी भाग सूखने लगता है उस समय पतियों को गर्दन (पतियों का भूमि की सतह का भाग) के पास से भूमि में गिरा देना चाहिए जिससे प्याज के कन्द ठीक से पक सकें तभी कन्दों की खुदाई करें।
  • प्याज की फसल को पत्ते पीले रंग में बदलने तथा गर्दन पतली होने तक पौधों को खेतों में सुखाना चाहिए फिर पर्याप्त वायुसंचार के साथ छाया में सुखाया जाना चाहिए। छाया में सुखाने से कन्दों की सूरज की तीखी किरणों से रक्षा होती है, रंग में सुधार आता है और बाहरी सतह सूख जाती है।
  • तेज धूप से प्याज की बाहरी सतह निकल जाती है, धूप से रंग खराब हो जाता है, और प्याज सिकुड़ते जाते है।
  • मध्यम आकार (50-80 मि.मी.) के स्वस्थ ,पतली गर्दन वाले समान रंग रूप के प्याज कन्दों का ही बीज उत्पादन हेतु भंडारण के लिए चयन करें। मोटी गर्दन वाले कन्द भन्डारण में शीघ्र ही सड़ने लगते हैं या उनमें शीघ्र अंकुरण होने लगता है।
  • परम्परागत रूप से पहाड़ी क्षेत्रों में कृषक प्याज कन्दों को कमरों के ऊपर बनी हवा दार दुछत्ती ( ढैपर, टांड) में खुले में भंडारण करते हैं। जिसे समय समय पर पलटते रहते हैं साथ ही खराब सड़े गले व शीघ्र अंकुरित होने वाले प्याज कन्दों को तुरंत हटाते रहते हैं।
  • भंडारण के लिए प्याज को 40-50 कि.ग्रा. की जूट (टाट) की जाली नुमा बोरियां, प्लास्टिक की जालीदार थैलीयां या प्लास्टिक , बांस, रिंगाल या भीमल की टोकरीयों में भी हवा दार कमरों जिनका तापमान 25 – 30 डिग्री सेल्सियस के बीच हो के अन्दर रख सकते हैं।
  • प्याज़ की अधिक उपज लेने एवं जैविक खेती को प्रोत्साहन देने के उद्देश्य से स्थानीय रुप से उत्पादित चयनित प्याज कन्दौ से ही प्याज बीज का उत्पादन करने का प्रयास किया जाना चहिये

इस दिशा में विवेकानंद पर्वतीय कृषि अनुसंधान संस्थान अल्मोड़ा ने हिमोत्थान परियोजना के माध्यम से वी.एल.-3 स्थानीय चयनित प्याज की उन्नत शील प्रजाति का उत्तरकाशी एवं बागेश्वर जनपदों के कुछ कृषकों के यहां प्याज बीज उत्पादन की पहल की है। सेवा इंटरनेशनल संस्था सिमली कर्ण प्रयाग द्वारा भी इस बर्ष प्याज बीज उत्पादन हेतु वी. एल. -3 किस्म के प्याज कन्दों का उत्पादन किया गया है, बीज हेतु इन कन्दों का रोपण माह सितम्बर अक्टूबर में विभिन्न क्षेत्रों में किया जायेगा। किन्तु यह प्रयास ना काफी है।

प्याज उत्पादक क्षेत्रों के कृषकों को भी प्याज के अधिक उत्पादन हेतु स्वंयम भी अधिक से अधिक स्थानीय उन्नत किस्मों के प्याज बीज का उत्पादन उचित अलगाव दूरी रखते हुए करना चाहिए।

लेखक –
वरिष्ठ सलाहकार, कृषि/ उद्यान – एकीकृत आजीविका सहयोग परियोजना उत्तराखंड।

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