सीएनई रिपोर्टर, अल्मोड़ा
15 अक्टूबर से स्कूल खोले जाने के सरकार के फैसले का विरोध शुरू हो गया है। जहां, अधिकांश अभिभावकों ने अपने बच्चों को कोरोना संक्रमण के चलते स्कूल खोलने से साफ इंकार कर दिया है, वहीं कांग्रेस के नगर अध्यक्ष पूरन रौतेला ने भी मीडिया को जारी बयान में सरकार से जल्दबाजी में फैसला नही लेने को कहा है। उन्होंने सीधे तौर पर कहा कि ऐसे में स्कूल खोलकर क्या फायदा, जब न तो सरकार और ना ही विद्यालय प्रबन्धन संक्रमण नहीं फैलने का भरोसा दिला पा रहे हैं।
जारी बयान में अल्मोडा़ नगर कांंग्रेस कमेटी के अध्यक्ष पूरन सिंह रौतैला ने कहा कि जब तक कोरोना की वैक्सीन नहीं आ जाती एवम् कोरोना का प्रकोप कम नहीं हो जाता तब तक स्कूलों को नहीं खोला जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि स्कूल खोले जाने से बच्चों में संक्रमण का खतरा पैदा होगा वहीं अध्यापक भी इससे प्रभावित हो सकते हैं। उन्होंने कहा कि जहां आज प्रदेश में प्रतिदिन सैकड़ो कोविड-19 के मामले सामने आ रहे हैं ऐसे में स्कूलों का खोला जाना हानिकारक साबित हो सकता है। उन्होंने कहा कि प्रदेश सरकार स्कूल खोलने में बिल्कुल भी जल्दबाजी ना करें। स्कूलों के खोले जाने से भी ज्यादा महत्वपूर्ण अभी संक्रमण को रोकना है। उन्होंने कहा कि या तो स्कूल प्रबंधन जिम्मेदारी लें कि वो स्कूलों में इतनी समुचित व्यवस्था करेंगें कि किसी भी बच्चे को संक्रमण नहीं फैलेगा। उन्होंने कहा कि इस तरह से स्कूल खोलने का क्या फायदा जब तक ना तो सरकार और ना ही स्कूल प्रबन्धन जिम्मेदारी ले सके कि वो बच्चों को सुरक्षित रख पायेंगे। श्री रौतैला ने कहा कि वर्तमान में बच्चों का सुरक्षित रहना ज्यादा जरूरी है चाहे इसके लिए इस बार का सत्र ही शून्य करना पड़े। उन्होंने कहा कि जहां आज लगातार कोविड के मामले सामने आ रहे हैं, वहीं दूसरी ओर सरकार स्कूल खोलने की तैयारी कर रही है जो कि किसी भी तरह से सही नहीं है। उन्होंने कहा कि किसी भी कीमत पर कोविड की वैक्सीन आने तक या कोविड के समाप्त होने तक स्कूल ना खोले जाएं।
स्कूल संचालक अभिभावकों से मांग रहे एनओसी, बच्चों की सुरक्षा को खतरा : उनियाल
नेशनल एसोसिएशन फॉर पैरेंटस एंड स्टूडेंट्स राइट्स के राष्ट्रीय सचिव सुदेश उनियाल ने जारी बयान में कहा कि निजि स्कूल संचालक अभिभावकों से लिखित रूप में एनओसी मांग रहे हैं कि यदि स्कूल खुलने पर किसी बच्चे को कुछ हो गया तो उसकी संपूर्ण जिम्मेदारी अभिभावक की होगी। अभिभावकों का कहना है कि यदि ऐसा सहमति पत्र उन्होंने दे दिया तो लापरवाही पर किसी स्कूल पब्रंधक, प्रधानाचार्य या शिक्षक स्टॉफ पर वह मुकदमा दर्ज नही कर पायेंगे। यह सब यही दर्शाता है कि कि न तो सरकार और ना ही स्कूल प्रबंधन बच्चों की सुरक्षा की गारंटी लेने को तैयार है। आज की तारीख में अभिभावक अपने बच्चे को स्कूल भेजकर उनकी जान और भविष्य से खिलवाड़ नही कर सकते हैं। उन्होंने बकायदा मानवाधिकार आयोग को पत्र भेजकर स्कूल खोले जाने को लेकर आपत्ति जताई है।