रामनगर। प्रख्यात क्रांतिकारी जतीन्द्रनाथ दास की एक सौ सोलहवीं जयंती के मौके पर आज विभिन्न कार्यक्रम आयोजित किये गए। जतीन्द्रनाथ दास की 63 दिन की हड़ताल के बाद 13 सितम्बर 1929 को मृत्यु हो गयी थी। रचनात्मक शिक्षक मण्डल द्वारा पश्चिमी सांवलदे व सुंदरखाल में विभिन्न कार्यक्रमों के माध्यम से दास को याद किया गया। कार्यक्रम की शुरुआत उनके चित्र पर माल्यार्पण से हुई। ततपश्चात कार्यक्रम आयोजक नवेंदु मठपाल ने उनके जीवन व कार्यों पर बातचीत रखते हुए कहा आज उस महान क्रांतिकारी का जतीन्द्रनाथ दास जन्मदिन है जिसने सिर्फ 25 वर्ष की उम्र में ब्रिटिश साम्राज्यवाद के खिलाफ आमरण अनशन करते हुए अपनी शहादत दे दीं।
जतीन्द्रनाथ दास का जन्म 27 अक्टूबर 1904 में कलकत्ता में हुआ था।
इनके पिता का नाम बंकिम बिहारीदास और माता का नाम सुहासिनी देवी था। 1920 में इन्होंने मैट्रिक परीक्षा पास कर लिया। आगे की पढ़ाई कर ही रहे थे कि महात्मा गांधी ने ‘असहयोग आंदोलन’ शुरू कर दिया। जिसके बाद ये भी इस आंदोलन में कूद पड़े। इसके लिए उन्हें जेल भी जाना पड़ा, लेकिन कुछ दिनों बाद जब यह आंदोलन ख़त्म हो गया तो इनको जेल से रिहा कर दिया गया। आगे दोबारा से कॉलेज में अपनी पढ़ाई पूरी करने चले गए। उसी समय इनकी मुलाकात उस वक़्त के मशहूर क्रांतिकारी नेता शचीन्द्रनाथ सान्याल हुई। जिनसे ये काफी प्रभावित हुए और लगातार उनके संपर्क में बने रहे।
आगे सान्याल व अन्य क्रांतिकारियों ने एक संस्था का निर्माण किया, जिसको ‘हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन’ के नाम से जाना गया। इस संस्था को बनाने में दास ने अहम किरदार निभाया था। इसके सदस्य रहते हुए बंगाल में कई क्रांतिकारियों को जोड़ा और संस्था को मजबूत किया। अपने कामों से जल्द ही पार्टी में एक ऊंचा मुकाम हासिल कर लिया। सान्याल के करीब होने के बाद ये भगत सिंह और सुभाष चंद्र बोस के भी बड़े नजदीक हो गए थे। 1928 में दास नेता जी के साथ कोलकाता में कांग्रेस दल के लिए काम करने लगे।
आगे जब भगत सिंह ने उन्हें बम बनाने के लिए आगरा आने का निमंत्रण दिया, तो वो कोलकाता से आगरा चले आये। 1929 में जब भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने असेंबली पर बम फेंके वो बम जतिन्द्रनाथ दास के द्वारा ही तैयार किये गए थे। लाहौर षडयंत्र केस के तहत जेल में डाल दिया गया। वहां एक तरफ जहां ब्रिटिश कैदियों को अच्छी सहूलियतें मिलती थी, वहीं भारतीय कैदियों के साथ अमानवीय व्यवहार किया जा रहा, और फिर से इन्होंने जेल में अनशन शुरू कर दिया। अनशन के 63 वें दिन 13 सितम्बर 1929 को जतींद्रनाथ दास ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया। इनके अंतिम यात्रा में कई महान क्रांतिकारियों ने हिस्सा लिया।
इसमें सुभाष चंद्र बोस भी शामिल थे। जिस जगह पर ट्रेन रूकती वहां पर लोग इस शहीद को श्रद्धांजलि अर्पित करते और जब इनका शव कोलकाता पहुंचा तो 5 लाख से अधिक लोग इनके अंतिम यात्रा में शामिल हुए। ढेला की सांस्कृतिक टीम उज्यावक दगडी के ज्योति फर्त्याल, प्राची बंगारी, हिमानी बंगारी, मीनाक्षी कार्की द्वारा देशभक्ति के गीत प्रस्तुत किये गए। बच्चों ने जतीन्द्रनाथ दास का चित्र भी बनाया। प्रतिभागियों को दास के जीवन से सम्बंधित फ़िल्म भी दिखाई गई। कार्यक्रम के अंत में बच्चों को पुस्तकें भेंट की गयीं। इस मौके पर सुभाष गोला, गीतांजलि बेलवाल, आकिब, उदय आर्य, तानिया बेलवाल, अलसिया कसाद, आफरीन व गौरव सुप्याल मौजूद रहे।
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