सीएनई रिपोर्टर, अल्मोड़ा
जहां पिरुल रोजगार देगा, वहीं इस रोजगार से वनों में आग की घटनाएं कम होंगी। सरकार द्वारा पिरुल परियोजना पर काम शुरू करने से ऐसी उम्मीद सुदृढ़ हो गई है। पिरुल से अब जैविक ईंधन समेत फाइल कवर, मीटिंग फोल्डर, कैरी बैग, नोट पैड इत्यादि तैयार होगा, जो ग्रामीणों के आजीविका का साधन बनेगा। हिमालीय आजीविका सुधार परियोजना के तहत जीबी पंत राष्ट्रीय हिमालयी पर्यावरण संस्थान कोसी कटारमल, अल्मोड़ा ने किसानों को इसके लिए तैयार किया जा रहा है। उन्हें प्रशिक्षण देकर तकनीकी व व्यवहारिक प्रशिक्षण देने का काम चल रहा है, ताकि वे इसे रोजगार के रूप में अपनाकर आजीविका का साधन बना सकें।
पर्यावरण संस्थान के ग्रामीण तकनीकी परिसर में प्रसार प्रशिक्षण केंद्र हवालबाग, अल्मोड़ा के तत्वावधान में गत दस दिनों के अंदर ही दो—दो दिन के तीन प्रशिक्षण शिविर आयोजित हो चुके हैं। जिसमें पर्यावरण संस्थान के वैज्ञानिकों ने किसानों को पिरुल से जैविक ईंधन (बायो ब्रिकेट यानी कोयला) बनाने का तकनीकी सीख दी और इसका प्रयोग भी कराया। हवालबाग ब्लाक के 12 गांवों के किसानों के 15 समूहों के 150 किसान यह प्रशिक्षण ले चुके हैं। जिनमें 6 पुरुष और 144 महिला कृषक शामिल हुए। संख्या बता रही है कि महिलाएं इस लाभकारी रोजगार में रुचि ले रही हैं। प्रशिक्षण संस्थान की वैज्ञानिक एवं ग्रामीण तकनीकी परिसर के प्रभारी डा. हर्षित पन्त जुगरान के नेतृत्व में संचालित हुए हैं। इनके अलावा पर्यावरण संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं सामाजिक आर्थिक विकास केन्द्र के केन्द्र प्रमुख डा. जीसीएस नेगी व डा. देवेंद्र चौहान ने प्रशिक्षण दिया।
प्रशिक्षण में किसानों को पिरुल से कोयला बनाने की तकनीकी बेहतर तरीके से समझाई। यहां तक कि तकनीकी परिसर में बायोब्रिकेट बना रही महिला कृषकों से मिलाकर और डाक्यूमेंट्री दिखाकर बारीकियां
समझाई गई। वहीं प्रशिक्षार्थियों के हाथों एक—एक ब्रिकेट तैयार कराकर उन्हें प्रयोग भी कराया। इतना ही नहीं पिरुल तैयार होने वाले हैण्डमेड पेपर की प्रसंस्करण इकाई का भ्रमण कराया गया और पीरूल के उपयोग समझाते हुए इससे मोटा कागज तैयार कर इससे फाइल कवर, मीटिंग फोल्डर, कैरी बैग, नोट पैड इत्यादि बनाने की विस्तृत जानकारी दी गई है।
ऐसे प्रयास जारी रहे, तो उम्मीद की जा रही है कि पिरुल रोजगार का अच्छा जरिया बनेगा और इससे कई लोगों की आजीविका में बेहतरी आएगी। पर्यावरण संस्थान काफी समय से ऐसे प्रयासों में लगा है। यहां गौरतलब है कि गर्मियों में पिरुल से आग की घटनाएं तेजी से बढ़ती हैं, क्योंकि यह अत्यंत ज्वलनशील होता है। अब अगर लोगों ने इसे रोजगार का साधन बनाया, तो इसका इस्तेमाल हो जाएगा। जिससे जंगलों में आग की घटनाएं कम हो जाएंगी।