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अल्मोड़ा : भू—पर्यटन की नई थीम और अनुसंधान परियोजना

कसारदेवी में दो दिनी अंतर्राष्ट्रीय सेमिनार में गहन मंथन

सीएनई रिपोर्टर, अल्मोड़ा

सतत् भू-पर्यटन, जैव विविधता एवं लोक धरोहरों के संरक्षण पर आधारित अंतर्राष्ट्रीय सेमिनार यहां कसारदेवी अल्मोड़ा में शुरू हो गया है। रामलाल आनंद कालेज दिल्ली द्वारा आहूत इस दो दिनी सेमिनार के पहले दिन आज विषय विशेषज्ञों ने भू-विज्ञान के आधुनिक महत्व एवं भारतीय भूगोल की विशेषताओं और चुनौतियों पर विचार रखे। भू पर्यटन की नई थीम की दिशा में उठ रहे कदमों के तहत यह सेमिनार हो रहा है।

गौरतलब है कि पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय भारत सरकार द्वारा हिमालयी अध्ययन मिशन के तहत रामलाल कालेज द्वारा इस क्षेत्र में एक अनुसंधान परियोजना संचालित की जा रही है। जिसमें प्रमुख रूप से भू-पर्यटन की नई थीम पर कार्य हो रहा है। परियोजना संचालकों का प्रयास है कि इस क्षेत्र को भू-पर्यटन के क्षेत्र में नवीन पहचान दिलाई जाए। साथ ही यहां की पुरातन धरोहरों का संरक्षण कर यहां नवीन पर्यटन व आजीविका के विकल्प देकर हिमालयी गांवों के पलायन रोकने के उपाय सुझाए जाएं।

परियोजना प्रमुख प्रो. सीमा गुप्ता ने बताया कि वन्य जीवों की समस्या को देखते हुए इस क्षेत्र में सोलर फेंसिंग संरक्षित खेती ग्रामीणों को खूब भा रही है। साथ ही स्थानीय स्तर पर गांवों में पुरातन भवनों को होम स्टे के रूप में विकसित किया जा रहा है। ऐतिहासिक और भू-ज्ञान की दृष्टि से महत्वपूर्ण स्थानों को चिन्हित कर भू-पर्यटन व शिक्षा को बढ़ावा दिया जा रहा है। उन्होंने बताया कि भविष्य में यूनेस्को चार्टर के अनुरूप परियोजना क्षेत्र को भू–पार्क के रूप में पहचान दिलाने का प्रयास है।

उत्तराखण्ड सेवा निधि के पद्मश्री डॉ. ललित पाण्डे ने नव शोधार्थियों से समाज में रहकर सघन और मौलिक शोध करने का आह्वान किया और हिमालय और केवल यहां के गांवों की खूबसूरती को ही महिला मण्डित न करके यथार्थ विषयों पर अनुसंधान करने की आवश्यकता बताई। राष्ट्रीय हिमालयी अध्ययन मिशन नोडल अधिकारी इंजीनियर किरीट कुमार ने बताया कि मिशन के तहत विभिन्न हिमालयी राज्यों में सतत् पर्यटन के विभिन्न मॉडलों पर कार्य किया जा रहा है। हमें हिमालयी राज्यों में सतत् पर्यटन के व्यवहारिक प्रारूपों पर कार्य करते हुए यहां के पर्यटक स्थलों की धारण क्षमताओं का भी ठोस मूल्यांकन करना होगा। उन्होंने पर्यटन नीति के लिए सुझाव देते हुए कहा कि हमें पर्यावरणीय, ग्रामीण तंत्र आधारित और आपदा जोखिम रहित मॉडलों पर कार्य करने की आवश्यकता है। साथ ही पर्यटकों की आवाजाही का प्रबंधन, वृहद जागरूकता, अच्छे प्रारूपों का प्रसार, समुदाय आधारित उपक्रमों व उद्यमों को प्रोत्साहित कर पयर्टन अनुकूलित नियमों व व्यवस्थाओं को स्थापित करना होगा।

सेमिनार में पहले दिन यूनेस्को प्रतिनिधि बैनो बोइर, ब्राजील साओ विश्वविद्यालय से डॉ. ग्लोरिया गार्सिया, दिल्ली विश्वविद्यालय से प्रो. एनसी पंत, डॉ. विमल सिंह, हिमालयन आर्क से मिस मालिका विर्दी, पंजाब विश्वविद्यालय से डॉ. गुरमीत कौर, जॉगर्फीकल सर्वे ऑफ इण्डिया से पूर्व डीडीजी डॉ. एससी त्रिपाठी, मैग्लूर विश्वविद्यालय से डॉ. शंकर, अल्मोड़ा मैग्नेसाइट से प्रबंध निदेशक योगेश शर्मा, आईएसईआर भोपाल से प्रो. एसके टण्डन, डॉ. प्रभास के पाण्डे, प्रो. राकेश कुमार गुप्ता, मुख्य विकास अधिकारी अल्मोड़ा अंशुल सिंह सहित अनेक लोगों ने भू-विज्ञान के आधुनिक महत्व, भारत के भूगोल की विशेषताओं और चुनौतियों के साथ संभावनाओं पर विचार रखे। इस मौके पर भू-पर्यटन, आजीविका और अन्य गतिविधियों में संलग्न स्थानीय ग्रामीणों ने भी अपने विचार रखे।

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