हरेक माता-पिता को अपने बच्चों से उम्मीद होती है कि वे परीक्षाओं में अच्छे अंक लाकर उनका नाम रोशन करेंगे। यदि अंक अधिक आते हैं, मसलन नब्बे से सौ प्रतिशत के बीच में, तो बच्चे का नाम फोटो सहित अखबार में छापा जाता है। मिठाई बांटी जाती है। बांटी भी जानी चाहिये, भाई खुशी का मौका है! लेकिन जिनके नम्बर कम होते हैं उनके चेहरे लटके नहीं होने चाहिये। अच्छा नहीं लगता है। मानव स्वभाव होता ही ऐसा है कि उसे कुछ भी हो, ज्यादा ही चाहिये। मकान, दुकान, धन-दौलत…सब कुछ दूसरे से ज्यादा। लेकिन अगर ज्यादा अंक न पा सकें तो कोई बात नहीं, दुनिया इतने में ही थोड़े खत्म हो जाती है।
बेरीनाग और चौखुटिया और बागेश्वर से खबर आ रही हैं कि चार छात्राओं ने फेल होने पर विषपान कर अपनी जीवन लीला खत्म कर ली है। कोटाबाग में भी एक छात्रा ने विषपान कर जान देने की कोशिश की व कालाढ़ूंगी का छात्र रिजल्ट आने के बाद से घर से लापता हो गया है। बच्चों! जो जीता है वहीं पास-फेल होता है। इस बार पास नहीं हो सके तो अगली बार हो जाओगे। इस बार कम तो अगली बार ज्यादा अंक आ सकते हैं। कोई भगवान के घर से लिखाकर थोड़ा लाया है कि उसके हमेशा ही कम अंक आयेंगे। कम अंक आने पर बच्चों को अपनी कापी खुलवाने की सुविधा भी है। रेग्यूलर नहीं तो ओपन स्कूल से पढ़ सकते हैं। रास्ते कहाँ बंद हुए हैं? कहीं नहीं! दसवीं में कम अंक हैं तो बारहवी में ज्यादा आ जाऐंगे, बीए, बीएससी में आ जाऐंगे। चिंता किस बात की? हाँ, परिश्रम पूरा करना चाहिये। सफलता एक रात में नहीं मिलती है।
जो सतत् प्रयास करता है भगवान उसकी मदद करते हैं। मान लिया कि आपको खूब पढ़ने के बावजूद भी याद नहीं होता है, खूब लिखने के बावजूद अच्छे अंक नही मिले तो भी घबराना नहीं है। जब घबराहट निकल जाती तो याद होना शुरू हो जाता है, फिर अच्छे अंक कहीं नहीं गये। जिन बच्चों को अच्छे अंक मिलते हैं वे कक्षा एक-दो से ही परिश्रम कर रहे होते हैं। ऐसा नहीं है कि कम अंक लाने वाले व फेल होने वालों की दुनिया अंधकारमय हो जाती है। जब ये बच्चे एक बार ठान लेते हैं कि उनको बेहतर करना है तो भविष्य में बहुत बड़ी सफलता हासिल करते हुए देखा गया हैं। वे टापरों को भी पछाड़ देते हैं। तृतीय श्रेणी धारक कई लोग आइएएस में चयनित हुए हैं।
डाक्टर, वकील, प्रवक्ता, अध्यापक बने हैं व सफल राजनेता बने हैं। इसके पीछे इनकी लगन थी, अटूट परिश्रम था। बच्चों को ये पता होना चाहिये कि कुछ भी बनने के लिये प्रतियोगी परीक्षा देनी होती है। जिसमें कई-कई टापर व उच्च अंक प्राप्त करने वाले छात्र भी कई-कई बार अनुत्तीर्ण होने के बाद सफलता हासिल करते हैं। फेल होना व कम अंक लाना कोई अपमान की बात नहीं है, जिससे बचने के लिये आत्मघाती कदम उठाया जाय। बड़े-बड़े अपराधी सीना तानकर चल सकते हैं तो आपको अपने मन में नकारात्मक विचारों को आने ही नहीं देना चाहिये। यदि रिजल्ट के कारण तनाव होता है, नींद नहीं आती है, खाने का मन नहीं करता है, हमेशा सोये रहने का मन करता है तो आपको अपने बड़ों से बात करनी चाहिये। अपनी पीड़ा को अकेले नहीं झेलना चाहिये। आखिर माँ-बाप, दादा-दादी कब काम आयेंगे।
माता-पिता की जिम्मेदारी है कि वे बच्चे से बात करें, उसे अकेला न छोड़ें। जरूरत पड़े तो मनोचिकित्सक की सलाह लेने से भी पीछे नहीं हटना चाहिये। आज का युग वैज्ञानिक युग हैै। सब चीजों का समाधान है। हाँ, देर लग सकती है। आप तो स्कूल गये हैं। दसवीं अथवा बारहवीं में पास हो चुके हो। यदि नहीं हो पाये तो भी आप उन लाखों बच्चों से अच्छे हो जिन्हें स्कूल का मुँह देखने तक का मौका नहीं मिलता। मेरी एक कविता इस प्रकार है-
सावित्री ने दी सतीत्व परीक्षा,
अग्नि परीक्षा दी सीता ने।
बोर्ड परीक्षा बच्चों ने दी,
पास-फेल की रीता रे!
पास-फेल की रीता रे!!
किसी का दर्जा चढ़ गया उपर,
ठहर गया किसी का रे!
रूक कर भी जो बढ़ता आगे,
जीवन उसी ने जीता रे।
जीवन उसी ने जीता रे।
कभी परीक्षा देते छात्र,
कभी परीक्षक लेते रे!
पल-पल परीक्षा लेता ईश्वर,
भगवन कैसी लीला रे!!
भगवन कैसी लीला रे!!
पास सदा नहीं होते सब,
फेल कभी कुछ होते रे!
फिर-फिर परीक्षा देना यारो,
आत्मघात मत करना रे!!
आत्मघात मत करना रे!!
लाल सिंह वाणी
अध्यापक, राइका राजपुरा, हल्द्वानी