एक जिंदगी की करुण कहानी : “आजीविका का साधन भीख और आसरा बना फूटपाथ” ; हंसी की जिंदगी ने बदली दुखदाई करवट

सीएनई रिपोर्टर, अल्मोड़ा‘कोई नहीं जानता कि जिंदगी कब कौन सी करवट बदल ले’; ऐसा अक्सर कहा जाता है। हंसी प्रहरी के जिंदगी की करुण कथा…

सीएनई रिपोर्टर, अल्मोड़ा
‘कोई नहीं जानता कि जिंदगी कब कौन सी करवट बदल ले’; ऐसा अक्सर कहा जाता है। हंसी प्रहरी के जिंदगी की करुण कथा भी इसी बात को पुख्ता करती है। एक समय में पढ़ाई—लिखाई, छात्र राजनीति और रचनात्मक गतिविधियों में अग्रणी रही होनहार हंसी प्रहरी की जिंदगी में ऐसे दयनीय हालात पैदा हो गए, जिसकी कभी किसी ने कल्पना तक नहीं की। प्राइवेट तौर पर कई नौकरियां कर चुकी हंसी प्रहरी की आजीविका का साधन आज भीख रह गई और फूटपाथ उसका रहने का आसरा। यहां तक कि उसके फूटपाथ ही उसके मासूम बच्चे की पाठशाला बनकर रह गया है। उसकी जिंदगी की कहानी वर्तमान में बेहद पीड़ादायक है।
उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले के हवालबाग ब्लाक अंतर्गत गोविंदपुर क्षेत्र का गांव है रणखिला। इसी गांव में हंसी की पैदाइश है। पिता की मेहनत—मजदूरी से चले इस गरीब परिवार में जन्मी हंसी पांच भाई—बहिनों में सबसे बड़ी है। ताल्लुक भले ही गरीब परिवार से हो, मगर हंसी दिमाग की धनी रही है। बचपन से ही गांव में उसकी प्रखर बुद्धि और पढ़ाई में अव्वल रहने की चर्चाएं आम रहीं। पिता ने अपनी गुंजाइश के अनुसार उसे पढ़ाने—लिखाने के लिए कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। ग्रामीण क्षेत्र से ही इं​टर की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद हंसी कुमाऊं विश्वविद्यालय के एसएसजे परिसर अल्मोड़ा में बीए की पढ़ाई के लिए पहुंची। प्रवेश मिलने के बाद वह पढ़ाई की लगन में लग गई। सिर्फ पढ़ाई ही नहीं उसने कालेज के दिनों में ही रचनात्मक गतिविधियों में खुलकर हिस्सा लिया। इन रचनात्मक गतिविधियों ने उसे चर्चाओं में ला दिया और छात्र हितों के लिए कुछ करने की तमन्ना मन में जागी, तो वह छात्रसंघ के चुनाव में छात्रा उपाध्यक्ष के लिए चुनाव में खड़ी हो गई। तमाम छात्रों का समर्थन प्राप्त हुआ और वह छात्रा उपाध्यक्ष बनीं। यह बातें वर्ष 1997 से वर्ष 2000 के मध्य की हैं। हंसी ने एसएसजे परिसर अल्मोड़ा से डबल एमए किया। हंसी ने अंग्रेजी और राजनीति विज्ञान से मास्टर डिग्री ली है। उसे अंग्रेजी, हिंदी व संस्कृति आदि भाषाओं में बेहतर पकड़ है। अपने जज्बे के बलबूते हंसी ने स्वयं को शैक्षणिक, सांस्कृतिक, रचनात्मक गतिविधियों में अग्रणी बनाए रखा और इसी हुनर के चलते हंसी ने एसएसजे कैंपस अल्मोड़ा में अस्थाई तौर पर करीब 4 साल तक लाइब्रेरियन की नौकरी की। इसके बाद कुछ तक हंसी ने अलग—अलग जगहों प्राइवेट नौकरी भी की। शादी भी हुई और दो नन्हें बच्चे पुत्र—पुत्री भी हैं। ​बेटी की पर​वरिश नानी कर रही है, तो 6 साल के बेटे को खुद के पास ही रखा है।
हंसी की जिंदगी सही पटरी पर चल ही रही थी, कि अचानक एक दशक पहले जिंदगी ने करवट लेनी शुरू कर दी। स्वास्थ्य भी खराब रहने लगा, जिससे कोई नौकरी करने जैसी स्थिति भी नहीं रही। ना जाने ऐसी कौन सी वजह पैदा हो गई, कि उसकी वैवाहिक जिंदगी में जबर्दस्त उतार—चढ़ाव आ गए। उसने हालातों का मुकाबला करने का प्रयास किया, मगर थक—हार गई। अंतत: अटूट आस्था की नगरी हरिद्वार का रुख किया। तब से उसकी परिवार से दूरी बन गई। दयनीय हालात देखिये कि कभी रचनात्मक गतिविधियों में अग्रणी, छात्र राजनीति में सक्रिय व नौकरीपेशा एक उच्च शिक्षा प्राप्त बेटी पर वक्त की ऐसी मार पड़ी कि आज भीख उसकी आजीविका का साधन और फूटपाथ रहने का आसरा। वह हरिद्वार में गंगा घाट के इर्द—गिर्द, सड़कों व स्टेशनों पर भीख मांगने को मजबूर है। उसका मासूम बच्चे की पाठशाला भी फूटपाथ बना है। मां हंसी उसे फूटपाथ पर पढ़ाती—सिखाती है। वह भी मानो फूटपाथ की जिंदगी में घुलमिल गया हो।
यूं तो हंसी करीब 9 सालों से हरिद्वार में भीख मांगकर खुद व 6 वर्षीय बेटे का पेट पाल रही है, लेकिन उसकी करुण कथा तब उजागर हो रही है, जब मीडिया को उसके हालातों का पता चला। मीडिया को दिए गए बयानों के अनुसार भले ही हंसी फटेहाल जिंदगी से जूझ रही है, फिर भी अपने कारण मायके व ससुराल वालों को किसी प्रकार भी प्रभावित करना नहीं चाहती। वह परिवार की बातें भी उजागर करना नहीं चाहती। वह अपने ज्ञान को अपने बच्चों को देना चाहती है। हंसी की तमन्ना है कि उसके बच्चे पढ़ें—लिखें और खुद को स्थापित करें। हंसी ने जीवन की राह आसान हो, इसके लिए बार—बार मुख्यमंत्री से मदद की गुहार लगाई। यहां तक कि मदद की उम्मीद में सचिवालय और विधानसभा तक चक्कर तक काटे। मगर कोई हाथ मदद को आगे नहीं बढ़ा।

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