लालकुआं। किसान विरोधी बिल के विरोध में किसान सगठनों द्वारा बुलाया गया भारत बंद के समर्थन में किसान कांग्रेस पार्टी के कार्यकर्ताओं ने तहसील कार्यालय पहुंचकर सरकार के खिलाफ जमकर नारेबाजी करते हुए राष्ट्रपति के नाम प्रेषित ज्ञापन रजिस्ट्रार कानूनगो मोहित बोरा को सौंपा।
यहां किसान कांग्रेस के प्रदेश महामंत्री गिरधर बम के नेतृत्व में तहसील पहुंचे दर्जनों कार्यकर्ताओं ने किसान संगठनों द्वारा बुलाये गए भारत बंद का समर्थन करते है केंद्र सरकार के खिलाफ जमकर नारेबाजी की जिसके बाद कार्यकर्ताओं ने रजिस्ट्रार कानूनगो मोहित बोरा राष्ट्रपति के नाम ज्ञापन सौंपा।
इस मौके पर गिरधर बम ने कहा कि किसान हमारा अन्नदाता है और केंद्र व प्रदेश की डबल इंजन सरकार लगातार किसानों के विरोध में फैसले ले रही है ऐसे में इस सरकार को तो पलभर भी सत्ता में रहने का अधिकार नहीं है। उन्होंने कहा कि किसान अपनी बात राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री के सामने रखना चाहते हैं लेकिन उन्हें आन्दोलन को मजबूर किया जा रहा है उन्होंने कहा कि किसान की एक ही और जायज मांग है कि सरकार एमएसपी समाप्त करे, किसान विरोधी कानूनों को वापस ले लेकिन सरकार उनकी बात मानने को तैयार नहीं है उन्होंने कहा कि आज भारत बंद को सफल बनाने के लिए तमाम दल, संगठन किसानों के साथ खड़े हैं। उन्होंने कहा कि किसान अन्नदाता है सबको उनका साथ देना चाहिए।
उन्होंने ने कहा कि इस किसान विरोधी सरकार को सत्ता में रहने का कतई अधिकार नहीं है। सरकार को चाहिए कि हमारे अन्नदाता के पक्ष में किसान विरोधी बिल को वापस लाए उन्होंने कहा कि आज पूरा देश किसानों के पक्ष में लामबंद है। सरकार को किसानों के पक्ष में तत्काल इस कानून को वापस लेना चाहिए उन्होंने कहा कि यह सरकार अम्बानी अडानी की सरकार है इसे आम जनता से कोई लेना देना नहीं है।
हल्द्वानी में बेअसर रहा भारत बंद
वहीं किसानों के भारत बंद का असर आज हल्द्वानी में बेअसर रहा, हल्द्वानी बाजार में अधिकतर दुकानें खुली रही और आम जनता भी खरीददारी करती नज़र आई, हालांकि एहतियात के तौर पर पुलिस बाजार में अलर्ट मोड़ पर नज़र आई, किसानों ने आरोप लगाया की व्यापारी उनका साथ नहीं दे रहे हैं, यह केवल किसानों का आंदोलन नहीं बल्कि केंद्र सरकार द्वारा बनाये गए काले कानूनों के विरोधी में भारत बंद बुलाया गया है।
उधर प्रांतीय उद्योग व्यापार मंडल ने कहा की किसानों ने बाजार बंद के लिए कोई समर्थन नही मांगा और व्यापारियों की तरफ से किसानों के आंदोलन को केवल नैतिक समर्थन दिया गया है।