कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को महिलाएं अपने पति के मंगल, दीर्घायु एवं अखंड सुहाग की प्राप्ति के लिए निर्जला व्रत रखती हैं। करवा चौथ का व्रत पति-पत्नी के अखंड प्रेम और त्याग की चेतना का प्रतीक है। इस दिन महिलाएं व्रत रखकर दिनभर भगवान से अपने पति के मंगल के लिए प्रार्थना करती हैं। महिलाएं दिनभर व्रत रखकर शुभ मुहूर्त में चंद्रमा के साथ-साथ शिव-पार्वती, गणेश और कार्तिकेय की भी पूजा करती हैं। आज के समय में करवा चौथ व्रत नारी शक्ति का प्रतीक पर्व है। व्रत पूजा के दौरान महिलाएं करवा चौथ व्रत की कथा पढ़ती हैं। कहा जाता है कि व्रत कथा के पढ़े बिना व्रत अधूरा रहता है।
प्राचीन समय में करवा नामक स्त्री अपने पति के साथ एक गांव में रहती थी। एक दिन उसका पति नदी में स्नान करने गया। नदी में मगरमच्छ उसका पैर पकड़कर अंदर ले जाने लगा। तब पति ने अपनी सुरक्षा के निमित्त अपनी पत्नी करवा को पुकारा। उसकी पत्नी ने भागकर पति की रक्षा के लिए एक धागे से मगरमच्छ को बांध दिया। धागे का एक सिरा पकड़कर उसे लेकर पति के साथ यमराज के पास पहुंची। करवा ने बड़े ही साहस के साथ यमराज के प्रश्नों का उत्तर दिया।
यमराज ने करवा के साहस को देखते उसके पति को वापस कर दिया। साथ ही करवा को सुख-समृद्धि का वर दिया और कहा ‘जो स्त्री इस दिन व्रत करके करवा को याद करेगी, उनके सौभाग्य की मैं रक्षा करूंगा। कहा जाता है कि इस घटना के दिन कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि थी। तभी से करवा चौथ का व्रत रखने की परंपरा चली आ रही है।