बागेश्वर न्यूज : चिकित्सालय में दो जून की रोटी और सिर पर छत का जुगाड़ हो गया कृष्णा कांडपाल के लिए, इलाज का पता नहीं, जनरल वार्ड खाली लेकिन बर्न वार्ड में किया गया है भर्ती

बागेश्वर। जिला अस्पताल के पास दो दिन पहले बदहवास हालत में मिले बुजुर्ग की हालत स्थिर है। चिकित्सालय में कुछ दिनों के लिए उनके दो…

बागेश्वर। जिला अस्पताल के पास दो दिन पहले बदहवास हालत में मिले बुजुर्ग की हालत स्थिर है। चिकित्सालय में कुछ दिनों के लिए उनके दो जून की रोटी और सिर ढंकने के लिए छत का जुगाड़ हो गया है लेकिन ​वे जिस हालत में यहां पहुंचाए गए थे उसमें ज्यादा सुधार होता नहीं दिख रहा है। जनरल वार्ड के लगभग सभी बेड खाली होने के बावजूद उन्हें बर्न वार्ड में बेड दिया गया है।

ऐसा क्यों किया गया यह किसी को नहीं मालूम। दो दिन पहले तक उनकी सेहत के लिए परेशान दिख रहे सामाजिक व राजनैतिक कार्यकर्ता भी अब उनका हाल जानने नहीं फटक रहे।


जिला अस्पताल में उन्हें रख तो लिया गया है, लेकिन उनकी तबीयत पर लगातार नजर रखने वाला कोई नजर नहीं आ रहा। उनके ठीक सामने सामने चाय के गंदे डिस्पोजल कप पड़े हुए हैं,जिस चारपाई पर उन्हें लिटाया गया है उसके हालत
भी ठीक नहीं है। छोटे से कमरे में कहीं दूध तो कहीं चाय गिरी हुई है। वक्त
की मार खाये इस बुजुर्ग की आंखों में दर्द साफ देखा जा सकता है। दो दिन
पहले जिला अस्पताल के पास वृद्ध कृष्णानंद कांडपाल बदहवास हालात में बैठे
मिले थे।

नगर के कुछ जागरुक व्यक्तियों ने उन्हें इस हालत में देखा तो तत्काल जिला अस्पताल में भर्ती करवाया और साथ में कुछ खाने पीने की व्यवस्था भी की गई। इसके बाद बुजुर्ग कृष्णानंद को कुछ होश आया और उन्होंने बताया कि वे 15 साल की नौकरी भारतीय सुरक्षा बल में कर चुके हैं। वो कांडा तहसील के मुसोली गांव के रहने वाले हैं और उनके परिवार में कोई भी नहीं है।

बुजुर्ग की दिमागी हालत कैसी है या उन्हें क्या परेशानी है ये तो जिला अस्पताल के डॉक्टर ही बता सकते हैं,लेकिन उनकी हालत देखकर लग नहीं रहा है कि उन्हें अस्पताल में लेटने और खाने के अलावा कोई इलाज मिल रहा है। क्योंकि बुजुर्ग की हालत जस की तस है। वहीं कुछ लोगों से जानकारी मिली है कि लॉक—डाउन से पहले वे नगर के भागीरथी क्षेत्र में चाय की दुकान में पानी लाने का काम करते थे। लॉकडाउन के दौरान उस दुकान को किराने की दुकान में तब्दील कर दिया गया। जिस पर बुजुर्ग को रोड में आने को मजबूर होना पड़ा।

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