— अनूठी है नवमी पर कन्या पूजन की परंपरा
चन्दन नेगी, अल्मोड़ा
शारदीय नवरात्र में लोगों खासकर महिलाओं ने नौ दिनों तक मां भगवती का उपवास रखा, ताकि मां भगवती खुश रहकर मनवांछित फल बख्शे। परंपरानुसार आज नवमी को घर—घर में कन्या पूजन कार्यक्रम हुए, क्योंकि नौवीं नवरात्र को सिद्धिदात्री की पूजा होती है। मगर नगर के मोहल्लों में नवरात्र व्रत धारण करने वाली महिलाओं को कन्या पूजन कार्यक्रम के लिए 02 से 10 वर्ष तक की कन्याएं जुटाना मुश्किल हो गया। अधिकांश लोगों ने यत्र—तत्र के घरों से कन्याओं को बुलाया और घरों में बमुश्किल कन्याएं जुट सकी। कई लोगों को निराश भी होना पड़ा और जितनी कन्याएं मिल सकी, उनका ही पूजन कर दिया।
शास्त्रों के अनुसार इस नवरात्र में रखे जाने वाले व्रत तभी पूर्ण माने जाते हैं, जब कन्याओं को भोजन कराया जाए। हिंदू धर्म में वेद—पुराणों में कन्या पूजन का उल्लेख है। तभी यह परंपरा कायम है। परंपरानुसार नवमी के दिन कन्या पूजन सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। इसमें 2 से 10 वर्ष की उम्र की कन्याओं का पूजन सर्वश्रेष्ठ माना गया है। जिनकी संख्या कम से कम नौ होना जरूरी होता है। इन नौ कन्याओं को मां दुर्गा के नौ रूपों की तरह माना जाता है।
घरों में कन्याओं को बुलाकर सादर सत्कार किया गया। उनके हाथ—पैर धोये और सिर पर लाल चुनरी ओढ़ाते हुए टीका चंदन किया और मां दुर्गा का रूप मानते हुए चरण स्पर्श कर आशीर्वाद लिया। इसके बाद पूड़ी, हलवा, खीर, चने, फल इत्यादि व्यंजन उनके सम्मुख परोसे।
कन्याएं ढूंढते रहे लोग
आज नवमी को पूजन के लिए लोग कन्याएं ढूंढते रहे। घरों में पूजन थाल सजाकर कन्याओं का लंबा इंतजार करना पड़ा। जिस घर में कन्या होने का पता चला, उस घर में जा—जा कर लोगों ने बमुश्किल नौ कन्याएं जुटाईं। यह समस्या आज हर मोहल्ले में देखने में आई। कन्याएं जुटाने के लिए लोगों को परेशानी का सामना करना पड़ा। इस कारण पूजन में कई घरों में विलंब भी हुआ। कुछ मोहल्लों में तो कन्याओं की एक ही टोली घर—घर में घूमी।
क्यों नहीं मिली कन्याएं
कन्या पूजन के लिए कन्याएं का उपलब्ध नहीं होने का कारण लोग अलग—अलग मानते हैं। यहां लोअर माल रोड निवासी ज्योति देवड़ी का कहना है कि कुछ कन्याएं अपने अभिभावक के साथ ही अन्य घरों में जाना चाहती हैं, मगर अभिभावक द्वारा साथ नहीं जाने या साथ नहीं मिलने से कन्याएं पूजन में जाने से कतराती हैं। वहीं खोल्टा निवासी प्रेमा बिष्ट कहती हैं कि इसकी वजह कोरोना है। उनका कहना है कि कोरोना के भय से लोगों ने अपनी कन्याओं को दूसरे घरों में भेजने से परहेज किया। वहीं नरसिंहबाड़ी निवासी गृहिणी सरोज का कहना है कि 02 से 10 साल की बेटियों की संख्या कुछ मोहल्लों में कम हो सकती है, इस वजह से भी परेशानी रही। ऐसे मोहल्लों में पूजन के लिए कन्याओं को लोग पहले ही निमंत्रण दे देते हैं। जहां निमंत्रण होता है, वहीं कन्याएं पहुंची। कुछ लोगों का मानना यह भी है कि कुछ लोग आधुनिकता के चक्कर में अपनी कन्याओं को पूजन के लिए भेजने से बचते हैं।
ये है असल मान्यता
कन्या पूजन में 02 से 10 साल की कन्याओं को शामिल करने के पीछे भी विशेष मान्यता जुड़ी जुड़ी है। मान्यता के अनुसार 02 वर्ष की कन्या कन्याकुमारी, 03 वर्ष की कन्या त्रिमूर्ति, 04 वर्ष की कन्या कल्याणी, 05 वर्ष की कन्या रोहिणी, 06 वर्ष की कन्या कालिका, 07 वर्ष की कन्या चंडिका, 08 वर्ष की कन्या शांभवी, 09 वर्ष की कन्या मां दुर्गा तथा 10 वर्ष की कन्या सुभद्रा के रूप में मानी गई हैं।