सोचनीय: कोरोना ने नौकरी छीनी, जंगली जानवरों ने उजाड़ा स्वरोजगार

✒️ लेटी गांव के राजेंद्र सिंह पर पड़ी दोहरी मार
✒️ सुअर खेती रौंद गए, तो गुलदार ने मारी मुर्गियां
सीएनई रिपोर्टर, बागेश्वर/पहाड़ में जंगली जानवरों से पहुंच रही भारी क्षति का एक ताजा उदाहरण जनपद के लेटी गांव में प्रकाश में आया है। इस गांव के राजेंद्र की कोरोना काल में नौकरी चले गई, तो वह गुजरात से गांव आ गए और खेती कार्य शुरू करने के साथ ही रिश्तेदारों से कर्जा लेकर मुर्गी व बकरी पालन का स्वरोजगार खड़ा किया, लेकिन जब रात—दिन की मेहनत के बाद आय अर्जन का वक्त आया, तो फिर बड़ा झटका लगा। खेती जंगली सुअरों ने रौंद डाली और बकरियां व मुर्गियां गुलदार ने ग्रास बना ली। झटके पर तगड़ा झटका लगने से उनके सामने बड़ा संकट पैदा हो गया है।
कर्ज लेकर खड़ा किया स्वरोजगार
लेटी गांव निवासी राजेंद्र सिंह गुजरात में सालों से प्राइवेट नौकरी कर रहे थे और अपना व परिवार का भरण पोषण कर रहे थे। लेकिन कोरोना काल का ऐसा झटका आया कि नौकरी चले गई, तो वे गांव आए और यहीं रोजगार का साधन जुटाने की जुगत की। तब उन्होंने स्वरोजगार की ठानी और गांव में कृषि कार्य शुरू किया और नाते—रिश्तेदारों से धनराशि उधार लेकर मुर्गी पालन का कारोबार खड़ा किया। कुछ बकरियां भी पाल ली।

गुलदार का निवाला बनी 15 मुर्गियों व दो बकरियां
रात दिन मेहनत के बाद खेतों में उनकी खड़ी फसल जंगली सुअरों ने रौंद डाली। इसके बाद बीते बुधवार की रात गुलदार ने उनके मुर्गी बाड़े की जाली तोड़ी और 15 मुर्गियां मार डाली। इससे पहले गुलदार ने उनकी दो बकरियां मारी थी। ऐसे में मेहनत से उनका जमाया कारोबार जंगली जानवरों द्वारा नष्ट किया है। इससे राजेंद्र सिंह बेहद व्यथित हैं। उनके इस नुकसान से ग्राम प्रधान गोविंद ड्यारकोटी भी दुखी हैं और उन्होंने प्रभावित राजेंद्र सिंह को मुआवजा देने की मांग उठाई है। उन्होंने प्रवासी उत्तराखंडियों के लिए ठोस नीति बनाने की जरूरत भी बताई है।
क्या कहते हैं राजेंद्र
जंगली जानवरों के नुकसान से पीड़ित लेटी गांव के राजेंद्र सिंह का कहना है कि पहाड़ के युवा महानगरों में प्राइवेट नौकरी में काफी मेहनत करते हैं, लेकिन वहां उन्हें उस मेहनत का पूरा लाभ नहीं मिलता, बल्कि उल्टा उनका शोषण होता है। कोरोनाकाल में भी ऐसे ही कई युवाओं को नौकरी छूटने से तगड़ा झटका लगा। उन्होंने कहा कि गांव में आकर कुछ नया करने की सोची, तो उसमें भी कई दिक्कतें हैं। उन्होंने वन विभाग से मुआवजा देने की भी मांग की है।