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शारदीय नवरात्र विशेष! जानिए खास महत्व और मां दुर्गा के नौ स्वरूप, व्रतों का लाभ


👉 सुख-समृद्धि, यश, कीर्ति में वृद्धि, तो होता है विघ्नों व विपत्तियों का नाश
👉 पढ़िये सीएनई का आलेख!!

सीएनई डेस्क विशेष
भारत में हिंदुओं के प्रमुख त्योहारों में नवरात्रि पर्व भी प्रमुखता से शुमार है। यूं तो हर साल नवरात्रियां चार बार आती हैं। इन चार नवरात्रों में केवल दो नवरात्रों चैत्र नवरात्र तथा पितृपक्ष के बाद आने वाली शारदीय नवरात्रों का खासा महत्व माना जाता है। आषाढ़ व पौष मास में पड़ने वाली शेष दो नवरात्रि गुप्त मानी जाती है। जो तंत्र मंत्र विद्या सीखने व साधना करने के लिए उपयुक्त कही जाती है। दरअसल, नवरात्रि का शाब्दिक अर्थ नौ रातों से जुड़ा है। खासकर चैत्र व शारदीय नवरात्रों में हिंदू धर्म के लोग नौ दिनों का व्रत रख मां दुर्गा के नौ रुपों की विशेष पूजा-अर्चना करते हैं। यूं तो देवी दुर्गा को माता पार्वती का रूप माना जाता है। माता दुर्गा का जन्म ऊर्जा के रूप में हुआ था, ऐसा माना जाता है। हिंदू जन नवरात्रों में नौ दिनों में दुर्गा देवी के नौ रुपों शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी व सिद्धिदात्री की पूजा करते हैं। इस साल शारदीय नवरात्रि का आगाज आज यानी 26 सितंबर 2022 से होगा और 05 अक्टूबर को दशमी की तिथि भी पड़ेगी। जिसे विजयादशमी के रूप में मनाया जाता है। (आगे पढ़िये…)


मां दुर्गा के नौ रूपों की पूजा का महत्व
देवी दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा नवरात्रि के नौ दिन एक-एक कर होती है और प्रत्येक रूप की पूजा विधि पृथक-पृथक हैं। जानिये नौ स्वरूप व पूजा विधिः-

Shardiya Navratri 2022

पहला दिनः शैलपुत्री-प्रतिप्रदाः नवरात्रि के पहले दिन शैलपुत्री की पूजा होती है। यह दुर्गा का प्रथम स्वरूप मानी जाती है। हिमालय पर्वत की पुत्री होने के कारण इनका नाम शैलपुत्री पड़ा। शैलपुत्री स्वरूप को देसी गाय के घी का भोग लगता है। मान्यता है कि इस दिन व्रत धारण कर शैलपुत्री देवी को भोग लगाने से आरोग्यता प्राप्त होती है। Shardiya Navratri 2022 : मां दुर्गा की आप पर होगी कृपा, ऐसे करें पूजन Click Now

दूसरा दिनः ब्रह्मचारिणी-द्वितीयाः मां दुर्गा के दूसरे स्वरूप को ब्रह्मचारिणी के रूप में जाना जाता है। कहा जाता है कि मां दुर्गा का यह तपस्विनी स्वरूप है। मान्यता के अनुसार माता पार्वती ने भगवान शंकर को वर के रूप में पाने के लिए घोर तपस्या व साधना की। इसी कारण उनका नाम ब्रह्मचारिणी पडा। इस रूप की पूजा में प्रमुख रूप शक्कर का भोग लगाया जाता है। कहते हैं कि व्रत रखकर इस रूप की पूजा करने से व्रती व उसके परिवार के सदस्यों की उम्र बढ़ती है।

तीसरा दिनः चंद्रघंटा-तृतीयाः नवरात्रि के तीसरे रोज मांग दुर्गा चंद्रघंटा स्वरूप में पूजी जाती है। चंद्रघंटा स्वरूप में माता के माथे पर तिलक व अर्धचंद्र सुशोभित होता है। इस स्वरूप की पूजा में माता चंद्रघंटा को दूध से तैयार मिठाई व खीर का भोग लगता है। माना जाता है कि इस स्वरूप की पूजा से मनोवांछित फल प्राप्त होता है और परिवार में सुख-समृद्धि आती है। (आगे पढ़िये…)

चौथा दिनः कुष्मांडा-चतुर्थीः नवरात्रि का चौथा दिन माता कुष्मांडा को समर्पित है जिन्हें देवी दुर्गा का चैथा अवतार माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि कुष्मांडा अवतार में देवी दुर्गा के गर्भ से ही ब्रह्मांड की उत्पत्ति हुई थी। ब्राह्मणों का मानना है कि देवी कुष्मांडा को मैदे की पूरी यानी कि मालपुए का भोग लगाना चाहिए ऐसा करने से परिवार के सारे शोक और विघ्न दूर हो जाते हैं तथा परिवार में सुख समृद्धि आ जाती है।

पांचवां दिनः स्कंदमाता-पंचमीः दुर्गा का पांचवा रूप स्कंदमाता का है। इसकी पूजा में भोग के दौरान प्रमुख रूप से केले का चढ़ावा होता है। माना जाता है कि कार्तिकेय की माता स्कंदमाता की पूजा से स्वास्थ्य तंदरूस्त रहता है और जटिल रोगों से छुटकारा मिलता है।

छठा दिनः कात्यायनी-षष्टीः मां दुर्गा छठे रूप में कात्यायनी स्वरूप में पूजी जाती है। ऋषि कात्यायन की पुत्री होने के कारण उनका कात्यायनी नाम पड़ा। कात्यायनी को सुंदर रूप व श्रृंगार देने वाली माना जाता है। नवरात्रि में पूजा में कात्यायनी को शहद का भोग लगाया जाता है।

सातवां दिनः कालरात्रि-सप्तमीः माता कालरात्रि का सातवां स्वरूप माना जाता है। आमतौर पर मां काली नाम से पुकारा जाता है। मां कालरात्रि काल व बुरी शक्तियों का विनाश करने वाली माना जाता है। माता कालरात्रि को पूजा में गुड़ का भोग लगाते हैं। इनकी पूजा से अकाल मृत्यु व परिवार पर आने वाली सभी विपदाओं का नाश होता है।

आठवां दिनः महागौरी-अष्टमीः आठवें रूप में मां दुर्गा को महागौरी नाम से पुकारा जाता है। महागौरी को नारियल का भोग लगता है। कहा जाता है कि इनकी पूजा से निःसंतान को संतान मिलती है और घर-परिवार में सुख-समृद्धि आती है।

नौवां दिनः सिद्धिदात्री-नवमीः माता दुर्गा के नौवे स्वरुप का नाम सिद्धिदात्री है। माना जाता है कि यहीं सिद्धि दाता है। नवरात्रि के अंतिम दिन विधि विधान से गुड़ व तिल का भोग लगाते हुए इनकी पूजा की जाती है। इससे सभी कार्य सिद्ध होते हैं और दुर्घटना व अकाल मृत्यु भी टल जाती है।

नवरात्रि व्रत का महत्व

नवरात्रि का व्रत शुभ फलदाई होता है। यह व्रत कलश स्थापना के साथ रखा जाना बेहद बेहतर माना जाता है। पूरी विधि से नवरात्रि व्रत रखकर मां दुर्गा की पूजा व दुर्गा सप्तशती का पाठ करने से माता सभी भक्तों के कष्ट दूर करती है और परिवार में सुख-समृद्धि लाती है। मान्यता है कि नवरात्रि का व्रत धारण करने से धन, समृद्धि, यश, कीर्ति में वृद्धि होती है और विघ्न व विपत्तियों का नाश होता है।

दुर्गा पूजा महोत्सव

शारदीय नवरात्रों में देश के विभिन्न जगहों पर दुर्गा पूजा महोत्सव का आयोजन भी भक्तजन मिलकर करते हैं। जिसमें दुर्गा का पंडाल बनाकर उसमें मां दुर्गा की मूर्ति स्थापित की जाती है। साथ ही कलश स्थापना होती है। नौ दिनों तक दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा होने के बाद 10वें दिन दशहरे के दिन पंडाल में स्थापित दुर्गा मूर्ति की शोभायात्रा निकाली जाती है और मूर्ति को जल में विसर्जन किया जाता है।


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