अल्मोड़ा में फैला अफ्रीकन स्वाइन फीवर (ASF), बड़ी तादाद में सूअरों की मौत

अब तक 300 के करीब सूअरों की मौत का दावा
जानिये कितनी खतरनाक है यह बीमारी
सीएनई रिपोर्टर, अल्मोड़ा
African Swine Fever (ASF)
अल्मोड़ा की वाल्मीकि बस्तियों में कुछ सूअर अचानक अज्ञात बीमारी की चपेट में आकर मरने लगे हैं। एनटीडी व कुछ अन्य इलाके में कुछ मृत सूअर देखे गये हैं। जिस कारण यहां भी अफ्रीकन स्वाइन फीवर फैलने का अंदेशा है। सफाई कर्मचारी संघ के प्रदेश महासचिव राजपाल पवार ने बड़ी तादाद में सूअरों की मौत पर गंभीर चिंता जाहिर करते हुए प्रभावित पशुपालकों की सुध लेने की मांग की है।
उल्लेखनीय है कि अफ्रीकन स्वाइन फीवर पालतू और जंगली सूअरों को होने वाली एक तीव्र संक्रामक वायरल रोग है। कहा जाता है कि यह बीमारी अफ्रीकी देशों से होते हुए भारत पहुंची है। देश भर में बीते कुछ माह में इस बीमारी ने पांव पसारने शुरू कर दिये हैं।
इधर कुछ दिनों से बाल्मिकी बस्ती एनटीडी व पतालदेवी में कुछ सूअरों के अचानक अज्ञात बीमारी से मरने की सूचना है। बताया जा रहा है कि शुरूआती लक्षणों में पालतू सूअर अचानक तीव्र ज्वर से ग्रसित होने के बाद खाना-पीना छोड़ दे रहे हैं और फिर उनकी मौत हो जा रही है।
इधर पशु चिकित्साधिकारी डॉ. कमल दुर्गापाल ने बताया कि कुछ दिन पूर्व एक-दो पशुओं के मरने की सूचना थी। उन्होंने बताया कि इस तरह से सूअरों की मौत अफ्रीकन स्वाइन फीवर के चलते होती है। इसमें पशु अचानक खाना छोड़ देगा, उसे बुखार आयेगा तथा कमजोरी होगी। डॉ. दुर्गापाल ने बताया कि फिलहाल अल्मोड़ा में इससे बचने की वैक्सीन उपलब्ध नहीं है, लेकिन बचाव करना ही सुरक्षा का पहला इंतजाम है।
उन्होंने कहा कि यदि पशु पालकों को अपने पशु में इस तरह के लक्षण दिखते हैं तो उसे तुरंत अन्य पशुओं से अलग कर दें। बीमारी के लक्षण वाले पशु को क्वारंटीन किये जाने की जरूरत है। साथ ही उसका खाना-पानी अन्य पशुओं को नहीं दिया जाये, जिससे यह वायरल फीवर अन्य पशुओं में नहीं फैल पाये। उन्होंने सुझाव दिया कि पशु पालक अपने पशुओं को यदि बीमारी से बचाना चाहते हैं तो साफ-सफाई का भी विशेष ध्यान रखें।
300 के करीब सूअरों की हो गई है मौत, संबंधित विभाग उदासीन – राजपाल पवार
देवभूमि उत्तराखंड सफाई कर्मचारी संघ के प्रदेश महासचिव राजपाल पवार ने कहा कि विगत दो से तीन माह में लगभग 300 सूअर अज्ञात बीमारी से मर चुके हैं, जिससे पशु पालकों को भारी आर्थिक क्षति पहुंची है। उन्होंने यह मामला जिलाधिकारी व मुख्य पशु चिकित्साधिकारी के संज्ञान में डाल दिया है। इसके बावजूद कोई कार्रवाई नहीं की गई है।
प्रदेश महासचिव राजपाल पवार ने कहा कि एनटीडी, राजपुरा, पातालदेवी व धारानौला में विगत तीन माह से लगातार पालतू सूअर मर रहे हैं। कई पशु पालकों ने लोन लेकर यह काराबोर शुरू किया है और उन्हें भारी आर्थिक क्षति पहुंची है। ऐसे पशु पालकों को मुआवजा दिया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि सबसे हैरानी की बात तो यह है कि यदि गाय-भैंसों व कुत्तों को कोई पशु रोग फैलता है तो स्वास्थ्य विभाग की टीम कैंप लगाती है और टीककरण किया जाता है, लेकिन जब इस तरह का गंभीर रोग अल्मोड़ा में सूअरों में फैला है तो कोई कैंप प्रभावित क्षेत्रों में नहीं लगाये जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि वह पशुपालन विभाग से आग्रह करते हैं कि जल्द ही इस बीमारी से बचाव के लिए कोई कारगर कदम उठाये जायें। उन्होंने कहा कि आज से आठ-दस साल पहले भी ऐसा ही रोग फैला था, लेकिन तब भी कोई कार्रवाई नहीं हुई थी।
अफ्रीकन स्वाइन फीवर के कुछ लक्षण –
पशु को तेज बुखार की शिकायत होती है।
इंसानों की तरह पशुओं में भी अवसाद के लक्षण दिखने लगते हैं।
उसकी भूख में अचानक कमी आती है और भोजन छोड़ देता है।
त्वचा में रक्तस्राव और डायरिया भी देखा जाता है।
त्वचा लाल या काली पड़ने लगती है।
पशु को सांस लेने में तकलीफ और खांसी भी होती है।
ऐसा फैला यह रोग –
सूअरों को होने वाला यह रोग पहली बार साल 1920 के दशक में अफ्रीका में पाया गया था। जिसके बाद यूरोप के कुछ हिस्सों, दक्षिण अमेरिका और कैरीबियन में यह संक्रमण फैला। इसमें सूअरों की मृत्यु दर लगभग 95-100 प्रतिशत रहती है। इस बुखार का कोई इलाज़ नहीं है, इसलिये इसके प्रसार को रोकने का एकमात्र तरीका प्रभावित जानवरों को मारना अथवा उसे पूरी तरह आइसोलेटेट कर देना होता है।
यह भी जानिये –
अफ्रीकी स्वाइन फीवर से इंसान को कोई खतरा नहीं रहता, क्योंकि यह केवल जानवरों से जानवरों में फैलते वाला रोग है।
अफ्रीकन स्वाइन फीवर, विश्व पशु स्वास्थ्य संगठन (World Organisation for Animal Health/OIE) के एनिमल हेल्थ कोड में सूचीबद्ध एक बीमारी है।
हाल में इससे बचने के लिये ICAR-IVRI ने एक सेल कल्चर CSF वैक्सीन विकसित की है।
यह नया टीका टीकाकरण के 14 दिन से 18 महीने तक सुरक्षात्मक प्रतिरक्षा प्रदान करता है।