बागेश्वर। कांडा पड़ाव में अंग्रेजों के जमाने में यह बिल्डिंग बोर्डिंग हाउस के नाम से फेमस थी बोर्डिंग हाउस के बाद 1973 में प्राइमरी पाठशाला का भवन क्षतिग्रस्त होने के कारण इसे बोर्डिंग हाउस में खोला गया, बाद में प्राइमरी हाउस का नया भवन बनने के बाद शिफ्ट कर दिया गया फिर इसमें डिग्री कॉलेज खोला गया 1979 से 1982 तक डिग्री कॉलेज चला इसके बाद बागेश्वर शिफ्ट कर दिया गया इसमें आईटीआई खुला उत्तराखंड आजाद होने तक आईटीआई यहां पर चला।
जिसके बाद नए भवन धपोली में शिफ्ट कर दिया गया। आज 20 साल हो चुके हैं सरकारी संपत्ति को देखने के लिए कोई भी नहीं है अब इस बिल्डिंग की हालत खस्ता हो चुकी है बोर्डिंग हाउस की छत पर से तख्ते, बल्ली, टीन, खिड़की, दरवाजे सब कुछ चुराया जा चुका है इस बोर्डिंग हाउस की बिल्डिंग चिनाई में मांस और चूने का उपयोग किया गया था अब तक सही सलामत हैं।
आने वाले कुछ वर्षों में यहां एक भी पत्थर बचेगा, बोर्डिंग हाउस की दुर्दशा इतनी बदतर हो चुकी है यहां दिन में जाने से ही आदमी कतराते हैं स्थानीय लोगों ने बोर्डिंग हाउस को भूत बंगला बना दिया है यहां पर रात्रि पूजा की जाती हैं यह बोर्डिंग हाउस सुसाइड प्वाइंट भी बन चुका है। क्षेत्र की जनता चाहती है सरकार बोर्डिंग हाउस में सुधार करें या तो जीजीआईसी को सुपुर्द कर दिया जाए।