Almora Special: रसोईघर से शुरू लैब आज एक नामी उच्च संस्थान

❗आज विवेकानंद पर्वतीय कृषि अनुसंधान संस्थान अल्मोड़ा के 100वें स्थापना दिवस पर विशेष 👉 प्रसिद्ध पादप वैज्ञानिक प्रो. बोसी सेन ने 1924 में रखी थी…

आज विवेकानंद पर्वतीय कृषि अनुसंधान संस्थान अल्मोड़ा के 100वें स्थापना दिवस पर विशेष

❗आज विवेकानंद पर्वतीय कृषि अनुसंधान संस्थान अल्मोड़ा के 100वें स्थापना दिवस पर विशेष

👉 प्रसिद्ध पादप वैज्ञानिक प्रो. बोसी सेन ने 1924 में रखी थी नींव

चन्दन नेगी, अल्मोड़ा

जिला मुख्यालय अल्मोड़ा में मौजूद गिने-चुने उच्च संस्थानों में से एक विवेकानंद पर्वतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (Vivekananda Hill Agricultural Research Institute Almora) है। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के अधीन यह नामी संस्थान किसी परिचय का मोहताज नहीं है। इस संस्थान की नींव कोलकाता के रसोईघर में प्रयोगशाला के रुप में पड़ी थी। पौधों में जीवन की खोज करने वाले प्रसिद्ध वनस्पति वैज्ञानिक सर जगदीश चंद्र बोस के सहयोगी नामी पादप वैज्ञानिक प्रोफेसर बोसी सेन ने सन् 1924 में प्रयोगशाला शुरूआत की और वैज्ञानिकों की अथक मेहनत का परिणाम रहा कि इस प्रयोगशाला ने पीछे मुड़कर नहीं देखा बल्कि प्रगति के पायदान चढ़ते हुए यहीं लैब ने देश के उच्च कृषि कृषि संस्थान के रूप साख बनाई और तमाम उपलब्धियां अर्जित करते हुए निरंतर विकास के पथ पर अग्रसर है। आज संस्थान अपना 100वां स्थापना दिवस मना रहा है।

कोलकाता से अल्मोड़ा स्थानांतरित लैब

स्वामी विवेकानंद के अनुयायी रहे प्रसिद्ध वैज्ञानिक प्रो. बोसी सेन ने कोलकाता के आठ बोस पाड़ा के एक रसोईघर में 4 जुलाई, 1924 को विवेकानंद प्रयोगशाला स्थापित की। इसकी स्थापना के लिए स्वामी विवेकानंद के महाप्रयाण दिवस चुना। पहाड़ में कृषि विकास एवं शोध के उद्देश्य से सन् 1936 में स्थायी रूप से यह लैब कोलकाता से अल्मोड़ा स्थानांतरित की गई और पर्वतीय कृषि पर नये शोध व प्रयोगों का सिलसिला चल पड़ा। यह लैब सन् 1959 में उत्तर प्रदेश शासन के अधीन हुई। सन् 1960 में तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के सुझाव पर उच्च पर्वतीय क्षेत्रों में कृषि विकास के लक्ष्य से इसके अधीन लेह लद्दाख में नई कार्ययोजना पर काम हुआ और लैब केंद्र सरकार के रक्षा विभाग के अधीन कार्य करने लगी। पद्म विभूषण प्रो. बोसी सेन जीवन के आखिरी दिनों तक लैब के अवैतनिक निदेशक रहे। सन् 1974 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की इच्छा एवं पद्म विभूषण डॉ. एमएस स्वामीनाथन के प्रयासों से यह प्रयोगशाला कृषि अनुसंधान परिषद दिल्ली का अंग बन गई और इसका नाम विवेकानंद पर्वतीय कृषि अनुसंधान संस्थान पड़ा। इस संस्थान को उत्तर पश्चिम हिमालय क्षेत्र (उत्तराखंड, हिमाचल, जम्मू व कश्मीर) कार्यक्षेत्र मिला। तब से संस्थान पर्वतीय क्षेत्र में फसल सुधार, सुरक्षा, उत्पादन वृद्धि व नई तकनीकों के प्रचार-प्रसार में जुटा है।

अनुसंधानों व कृषि विकास में अनेकों उपलब्धियां

अब तक धान्य, तिलहनी, दलहनी, नगदी व सब्जियां आदि के करीब 188 नई प्रजातियां संस्थान विकसित कर चुका है। अपने नवीन शोधों, अन्वेषणों व अनुसंधानों के बदौलत संस्थान अनेक पुरस्कार हासिल कर चुका है। हर वर्ष 4 जुलाई को उल्लास के साथ संस्थान का स्थापना दिवस मनाया जाता है। 10 दशक का लंबा सफर तय करते हुए संस्थान ने विकास व शोध की लंबी फेहरिस्त तैयार की हैं और इस बार यह संस्थान 100वां स्थापना दिवस मना रहा है।

आम खाने की अनूठी परंपरा

स्थापना दिवस पर संस्थान में अनूठी परंपरा यहां दशकों से चली आ रही है। वह परंपरा है अतिथियों को भरपेट आम खिलाना। दरअसल, स्वामी विवेकानंद के अनुयायी होने के कारण प्रो. बोसी सेन समाजोत्थान में खासी रुचि रखते थे। वह स्थापना दिवस पर मजदूरों व कम वेतन पाने वालों को भरपेट आम खिलाते थे। उन दिनों यहां बेहद कमी से मजदूरों को आम नहीं मिलते थे और स्थापना दिवस पर प्रो. सेन उन्हें भरपेट खाने को आम परोसते थे। यह परंपरा कायम है और इस दिन को संस्थान का आम दिवस भी कहा जाता है।

अब तक अर्जित सम्मान

👉 अंतरराष्ट्रीय स्तर का वाइपो गोल्ड मेडल।
👉 भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद से दो बार सरदार पटेल सर्वश्रेष्ठ संस्थान पुरस्कार।
👉 प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन में उत्कृष्ट कार्य पर टीम अवार्ड।
👉 नई किस्मों व तकनीकों से फसल उत्पादन में वृद्धि पर का टीम अवार्ड।
👉 मडुवा व मादिरा थ्रेशर के लिए मेरीटोरियस इन्वेंशन अवार्ड।
👉 कृषि तकनीकों के विकास व प्रसार पर महेंद्रा समृद्धि इंडिया एग्री अवार्ड।
👉 उर्वरता प्रबंधन अनुसंधान पर कृभको बारानी खेती का प्रथम पुरस्कार।
👉 सफेद गिडार प्रबंधन के लिए पर्यावरण सम्मत नई प्रौद्योगिकी इजाद करने पर सामाजिक नवाचार पुरस्कार।
👉 धान के रोग व कृषि उत्पादकता बढ़ाने वाली उन्नत तकनीकें बताने वाली पुस्तकों के लिए परिषद क डॉ. राजेंद्र प्रसाद पुरस्कार।

ये हैं प्रमुख उपलब्धियां

👉 भारत की पहली संकर मक्का की प्रजाति का विकास।
👉 द्विउद्देश्यीय (दाना एवं चारा) गेहूं प्रजातियों का विकास।
👉 सामान्य मक्का का गुणवत्ता युक्त प्रोटीन वाला मक्का में रूपांतरण मडुवा व मादिरा की
कुटाई को विवेक थ्रेशर कम पर्लर तथा धान के लिए पैडी थ्रेशर का विकास।
👉 सार्वजनिक क्षेत्र की प्रथम चेरी टमाटर किस्म वीएल चेरी।
👉 वीएल प्याज 67 तथा अतिशीघ्र पकने वाले दाने वाली बेबीकार्न वीएल मक्का का विकास व विमोचन।
👉 कुरमूला कीट एवं गिडारों के नियंत्रण की तकनीकी विकसित।
👉 चीड़ के नीचे लगने वाली घासों की पहचान।
👉 पर्यावरण की दृष्टि से उपयोगी वीएल स्याही देवी हल, वीएल सोलर डायर, वीएल धान थ्रेसर, वीएल मंडुवा व मादिरा थ्रेसर आदि विविध लघु कृषि यंत्र का विकास एवं वाणिज्यीकरण से उनकी उपलब्धता।
👉 वर्ष 2021-22 में राज्य सरकारों की 166.46 कुंतल वीएल जनक बीज की मांगों के सापेक्ष 170.73 कुंतल जनक बीज का उत्पादन कर आपूर्ति की गई।
👉 केंद्र सरकार की योजनाओं के तहत 24 राज्यों में वीएल बीज तथा 16 राज्यों में वीएल लघु कृषि यंत्र पहुंचा दिए गए हैं।

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