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हलद्वानी न्यूज : राष्ट्रीय आह्वान पर आशाओं की तीन दिवसीय हड़ताल शुरू

जगमोहन रौतेला

हल्द्वानी । राष्ट्रीय स्तर पर स्कीम वर्कर्स यूनियनों व आशाओं के राष्ट्रीय फेडरेशनों के संयुक्त रूप से 7-8-9 अगस्त को अपनी मांगों के संबंध में तीन दिवसीय हड़ताल के आह्वान को उत्तराखंड में लागू करते हुए आशाओं को न्यूनतम वेतन, स्थायीकरण, लॉकडाउन भत्ता, पेंशन, बीमा सुरक्षा और सम्मान के मुख्य सवालों पर उत्तराखंड राज्य में आशाओं के सवालों को उठाते हुए ऐक्टू से संबद्ध उत्तराखंड आशा हेल्थ वर्कर्स यूनियन द्वारा तीन दिन की राष्ट्रीय हड़ताल शुरू कर दी। आज आंदोलन के पहले दिन शारीरिक दूरी के मानकों का पालन करते हुए महिला अस्पताल हल्द्वानी में धरना-प्रदर्शन व पूर्ण कार्य बहिष्कार किया गया।

काम का लेंगे पूरा दाम, लड़कर लेंगे हक और सम्मान नारे के साथ आशाओं ने केंद्र और राज्य सरकार पर आशाओं को बंधुआ मजदूर की तरह इस्तेमाल करने का आरोप लगाया। इस अवसर पर यूनियन प्रदेश महामंत्री ने कहा कि, “आशाओं को मातृ-शिशु मृत्यु दर को कम करने के लिए नियुक्त किया गया था लेकिन उसके बाद आशाओं पर विभिन्न सर्वे और काम का बोझ लगातार बढ़ाया गया है। दिक्कत यह है कि काम तो आशाओं से लिया जाता है किंतु उसका भुगतान नहीं किया जाता। यानी आशाओं को सरकार ने मुफ्त का कार्यकर्ता समझ लिया है।

काम बढ़ाना है तो उसका भुगतान भी उसी हिसाब से दिया जाना चाहिए, आशाओं द्वारा इस मांग को उठाये जाने में क्या गलत है?” हल्द्वानी नगर अध्यक्ष रिंकी जोशी ने कहा कि, “आशाओं के सवालों पर सहानुभूतिपूर्वक विचार करना तो दूर रहा सरकार आशाओं के ज्ञापनों का जवाब तक देना जरूरी नहीं समझती है। लगातार एमरजेंसी ड्यूटी कर रही आशाओं के प्रति सरकार का इस तरह का रवैया अफसोसजनक है।” उपजिलाधिकारी हल्द्वानी के माध्यम से उत्तराखंड के मुख्यमंत्री को आशाओं ने 11 सूत्रीय ज्ञापन भेजा। इसमें आशा वर्करों को सरकारी सेवक का दर्जा और न्यूनतम 21 हजार वेतन लागू किया जाय।

जब तक मासिक वेतन और कर्मचारी का दर्जा नहीं मिलता तब तक आशाओं को भी अन्य स्कीम वर्कर्स की तरह मासिक मानदेय फिक्स किया जाय। देय मासिक राशि और सभी मदों का बकाया सहित अद्यतन भुगतान किया जाय।
ज्ञापन में कहा गया है कि आशाओं के विविध भुगतानों में निचले स्तर पर व्याप्त भ्रष्टाचार व कमीशनखोरी पर लगाम लगायी जाय। इसके अलावा कोविड-19 कार्य में लगे सभी आशा वर्करों को पूर्ण सुरक्षा की व्यवस्था,आशा वर्करों को 10 हजार रू. कोरोना-लॉकडाउन भत्ता भुगतान करने, कोविड-19 कार्य में लगी आशा वर्करों का 50 लाख का जीवन बीमा और 10 लाख का स्वास्थ्य बीमा लागू करने, कोरोना ड्यूटी के क्रम में मृत आशा वर्करों के आश्रितों को 50 लाख का बीमा और 4 लाख का अनुग्रह अनुदान भुगतान करने और उड़ीसा की तरह ऐसे मृत कर्मियों के आश्रित को विशेष मासिक भुगतान किए जाने की मांग भी की गई है। मांग की गई है कि आशाओं को सेवानिवृत्त होने पर पेंशन का प्रावधान किया जाय।

यही नहीं सेवा(ड्यूटी) के समय दुर्घटना, हार्ट अटैक या बीमारी होने की स्थिति में आशाओं को सुरक्षा प्रदान करने के लिए नियम बनाया जाय और न्यूनतम दस लाख रुपये मुआवजे का प्रावधान किया जाय व आशाओं के साथ सम्मानजनक व्यवहार किये जाने की मांग भी की गई है। इन मांगों को लेकर तीन दिवसीय राष्ट्रीय हड़ताल में विभिन्न आशा यूनियनें संयुक्त रूप से पूरे राज्य में कार्यबहिष्कार व धरना-प्रदर्शन कर रही हैं। यूनियन ने चेतावनी दी कि यदि इन मांगों पर तत्काल कार्यवाही नहीं की गई तो हमें पूरे राज्य में अन्य आशा यूनियनों के साथ मिलकर उग्र अनिश्चिकालीन बहिष्कार व आंदोलनात्मक कार्यवाही को बाध्य होना पड़ेगा, जिसकी समस्त जिम्मेदारी राज्य सरकार की होगी।

धरने में रिंकी जोशी, रीना बाला, शांति शर्मा, प्रीति रावत,रेशमा, उमा दरमवाल, यशोदा बोरा, मिथिलेश, मुमताज, चम्पा मंडोला, भगवती, बीना जोशी, गंगा तिवारी, कमरुन्निशा, चम्पा मेहरा, कमला कंडारी,गीता थापा, पूनम बोरा, निशा, ममता,शाइस्ता, शकुंतला,मीनू, अनिता सक्सेना, जानकी थापा, प्रियंका, सलमा, प्रभा, शाहीन, दीपा पाण्डे, सायमा सिद्दीकी, सुनीता देवी, गंगा आर्य, अंजना, सावित्री, विमला पाण्डे, शिव कुमारी आदि बड़ी संख्या में आशा वर्कर्स मौजूद रहीं।

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