सुयालबाड़ी में मिला पुरावशेष चंद काल का होने को लेकर आम राय नही, केवल ‘आमलक’ के आधार पर किसी काल का सिद्ध करना दुष्कर

सीएनई रिपोर्टर अल्मोड़ा/सुयालबाड़ीसुयालबाड़ी के प्राचीन शिव मंदिर के निकट सड़क खुदाई के दौरान मिले आमलक को मीडिया रिपोर्टों में चंद काल का बताए जाने को…

सीएनई रिपोर्टर अल्मोड़ा/सुयालबाड़ी
सुयालबाड़ी के प्राचीन शिव मंदिर के निकट सड़क खुदाई के दौरान मिले आमलक को मीडिया रिपोर्टों में चंद काल का बताए जाने को लेकर एक राय नही बन पा रही है। राजमाता जियारानी समाज के चंदन मनराल ने यहां जारी बयान में कहा कि चंद शासकों ने कोई भी इस प्रकार के मंदिर नहीं बनाए गए थे। उनके द्वारा जो मंदिर बनाए गए हैं केवल चंपावत बालेश्वर मंदिर और नंदा देवी मंदिर अल्मोड़ा है। यह मंदिर जो बने हैं कत्यूरी वंश के समय के हैं। उन्होंने कहा कि 12वीं शताब्दी तक चंद वंश कत्यूरी वंश के अधीन रहे हैं। सुयालबाड़ी के सुयाल पंडित लोग कत्यूरी वंश के अनुयाई हैं और रानी जिया की पूजा करते हैं। तेरहवीं शताब्दी से पूर्व में जितने भी मंदिर बने हैं सब कत्यूरी राजाओं द्वारा बनाए गए। केवल बालेश्वर मंदिर और हाथ कटिया नौला चंपावत चंदों द्वारा बनाए गए हैं। चंदों ने मुख्य रूप से मंदिरों का रखरखाव ही किया है। इधर इतिहासकार एमडी जोशी ने कहा कि जहां तक पुरावशेष का प्रश्न है यह उत्तर भारतीय मंदिर स्थापत्य के शीर्ष भाग का एक अंग है। मोटे तौर पर उत्तर भारतीय वास्तु शास्त्र के आधार पर निर्मित मंदिर के तीन प्रमुख भाग होते हैं — मण्डोवर, शिखर और मस्तक। सुयालबाड़ी से प्रकाश में आया पुरावशेष मस्तक का अंश है। जो नीचे से ऊपर की ओर क्रमश: ग्रीवा/कंठ, आमलक, कर्परी/चन्द्रिका, कलश एवं आयुष भागों से बनाया जाता है। सुयालबाड़ी का पुरावशेष ‘आमलक’ है। इसके प्रकाश में आने से केवल यह कहा जा सकता है कि अतीत में यहां वास्तु शास्त्र के आधार पर एक मंदिर बनाया गया था। इतिहासकार एमडी जोशी ने यह भी कहा कि वह ‘आमलक’ की तिथि नही बता सकते हैं, क्योंकि यह वर्तमान में भी बनाये जाते हैं। अयोध्या में निर्माणाधीन श्रीराम मंदिर इसका प्रमाण है।

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