रामनगर : जयंती पर याद किये गए अशफ़ाक

रामनगर। प्रसिद्ध क्रांतिकारी अशफ़ाक उल्ला खां को आज उनकी एक सौ बीसवीं जयंती पर विभिन्न कार्यक्रमों के माध्यम से याद किया गया। शहीद चंद्रशेखर आजाद…



रामनगर। प्रसिद्ध क्रांतिकारी अशफ़ाक उल्ला खां को आज उनकी एक सौ बीसवीं जयंती पर विभिन्न कार्यक्रमों के माध्यम से याद किया गया। शहीद चंद्रशेखर आजाद स्मृति पुस्तकालय पूर्वी सांवलदे में हुए कार्यक्रमों की शुरुआत अशफ़ाक उल्ला खां के पुष्प पर माल्यार्पण से हुई। उसके पश्चात कार्यक्रम संयोजक नवेंदु मठपाल ने अशफ़ाक के जीवन के बारे में जानकारी देते हुए बताया अशफाक उल्ला खाँ का जन्म 22 अक्टूबर 1900 को उत्तर प्रदेश के शाहजहाँपुर में हुआ था। अशफाक उल्ला खाँ के पिता पुलिस विभाग में कार्यरत थे।

जिस समय महात्मा गांधी ने असहयोग आंदोलन का नेतृत्व किया था उस समय अशफाक उल्ला खाँ एक स्कूल छात्र थे। लेकिन इस आंदोलन का अशफाक पर काफी प्रभाव पड़ा औऱ वे भी आजादी के आंदोलन में कूद पड़े। पर चौराचोरी कांड के बाद अशफ़ाक गांधी से विमुख हो गए और क्रांतिकारी आंदोलन से जुड़ हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोशिएशन का हिस्सा बन गए। अशफाक उल्ला खाँ ने राम प्रसाद बिस्मिल (जो शाहजहांपुर के प्रसिद्ध क्रांतिकारी थे) के साथ मित्रता कर ली। बैठकें आयोजित की गई थी। जिसमें उन लोगों ने हथियार खरीदने के लिए ट्रेन में जा रहे सरकारी खजाने को लूटने का फैसला किया।

इस प्रकार 9 अगस्त 1925 को राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला, राजेन्द्र लाहिड़ी, ठाकुर, शचीन्द्र बख्शी, चंद्रशेखर आजाद, केशव चक्रवर्ती, बनवारी लाल, मुकुन्दी लाल, मनमथनाथ गुप्ता समेत कई क्रांतिकारियों ने काकोरी गाँव के नजदीक सरकारी खजाना ले जाने वाली ट्रेन को लूट लिया। इस घटना को इतिहास में प्रसिद्ध काकोरी ट्रेन डकैती के रूप में जाना गया।
इस लूटपाट के कारण राम प्रसाद बिस्मिल को 26 सितंबर 1925 की सुबह पुलिस द्वारा गिरफ्तार कर लिया गया था। अशफाक उल्ला अभी भी फरार थे। बाद में वे भी पकड़ लिए गए। अशफाक उल्ला खाँ को फैजाबाद जेल में बन्द कर दिया गया। काकोरी ट्रेन डकैती का मामला राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खाँ, राजेंद्र लाहिड़ी को मौत की सजा देने के साथ समाप्त हुआ। जबकि अन्य लोगों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई। अशफाक उल्ला खाँ को 19 दिसंबर 1927 को फांसी दी गई।

कार्यक्रम का संचालन करते हुए जितेंद्र कुमार ने कहा अशफाक उल्ला खाँ रामप्रसाद बिस्मिल की ही भांति शायरी भी करते थे। उनका उर्दू तखल्लुस/उपनाम ‘हसरत’ था। उर्दू के अतिरिक्त वे हिन्दी व अँग्रेजी में आलेख व कवितायें भी करते थे। भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के इतिहास में बिस्मिल और अशफाक की भूमिका निर्विवाद रूप से हिन्दू-मुस्लिम एकता का बेजोड़ उदाहरण है। जितेंद्र कुमार ने अशफ़ाक की शायरी का वाचन करते हुए कहा, बुज़दिलों को सदा मौत से डरते देखा, गो कि सौ बार रोज़ ही उन्हें मरते देखा।मौत से वीर को हमने नहीं डरते देखा, तख्ता-ए-मौत पे भी खेल ही करते देखा।
प्रतिभागी बच्चों द्वारा अशफ़ाक का चित्र भी बनाया गया। बच्चों को अशफ़ाक के जीवन पर दूरदर्शन द्वारा तैयार किया गया वर्त्तचित्र भी दिखाया गया।इस मौके पर तारा बेलवाल, दीप्ती, प्रीति, नीरज, दीपक, तेजस्व, पूजा व गायत्री मौजूद रहे।

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