कविता : संध्या अद्भुत रूप दिखाए

काले काले मेघा आए, उमड़ घुमड़ कर नभ में छाएगगन मंडल में दौड़ लगाए, जोर—जोर से शोर मचाए।ढलते रवि की रक्तिम आभा, अस्तांचल में रंग…

काले काले मेघा आए, उमड़ घुमड़ कर नभ में छाए
गगन मंडल में दौड़ लगाए, जोर—जोर से शोर मचाए।
ढलते रवि की रक्तिम आभा, अस्तांचल में रंग दिखाए
पल में घटा घनघोर भयंकर, नभ में स्याह रंग भर जाए।
नभ में लघु बूंदें जुड़ जुड़ कर, नाद अति गंभीर मचाए
नभ से तुरत उतर उतर कर, तीव्र वेग से धरती को आए।
नीरव गगन को उद्वेलित कर, गर्जन घोर चहुं ओर सुनाए
संध्या काल दृश्य भयंकर, नभ से वारिद धरती को आए।
धरा नभ हुए एक सम, शांत मेघ रौद्र रूप दिखाए
चमक दमक दामिनी कड़कती, वारिद भैरव नाद सुनाए।
अवसान हुआ पुनः दिवस का, रवि अस्तांचल उतर आए
स्याह गगन मंडल में फिर, संध्या अद्भुत रूप दिखाए।

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