नैनीताल : विधानसभा में 2000 से अभी तक की नियुक्तियों को चुनौती

नैनीताल| उत्तराखंड विधानसभा सचिवालय में अवैध नियुक्तियों का जिन्न एक बार फिर बाहर आ गया है। इस मामले को लेकर एक जनहित याचिका दायर की…

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नैनीताल| उत्तराखंड विधानसभा सचिवालय में अवैध नियुक्तियों का जिन्न एक बार फिर बाहर आ गया है। इस मामले को लेकर एक जनहित याचिका दायर की गई है। वर्ष 2000 से अभी तक की नियुक्तियों को चुनौती दी गई है। उच्च न्यायालय ने विधानसभा सचिवालय व निलंबित सचिव मुकेश सिंघल को नोटिस जारी कर जवाब देने को कहा है।

मामले को देहरादून निवासी डॉक्टर बैजनाथ की ओर से चुनौती दी गई है। इस प्रकरण की सुनवाई मुख्य न्यायाधीश विपिन सिंह सांगी संधि और न्यायमूर्ति मनोज कुमार तिवारी की युगलपीठ में हुई। इस मामले में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी, पूर्व विधान सभा अध्यक्ष यशपाल आर्य, गोंविन्द सिंह कुंजवाल व प्रेम चन्द्र अग्रवाल के अलावा केंद्र सरकार, राज्य सरकार, सचिव कार्मिक, केन्द्रीय निर्वाचन आयोग, राज्य निर्वाचन आयोग, गृह सचिव, वित्त सचिव, केन्द्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई), केन्द्रीय व राज्य सतर्कता आयोग को भी पक्षकार बनाया गया है।

याचिकाकर्ता की ओर से कहा गया कि विधानसभा सचिवालय में सन् 2000 से अब तक सैकड़ों अवैध नियुक्तियां की गई हैं। वर्ष 2001 में 53, 2002 में 28, 2003 में 5, 2004 में 18, 2005 में 8, 2006 में 2, 2007 में 27, 2008 में 1, 2013 में 1, सन् 2014 में 7, 2016 में 149, 2020 में 6 और वर्ष 2021में 72 अवैध नियुक्तियां की गई हैं।

विभिन्न पदों पर कुल 396 नियुक्तियां की गई हैं। याचिकाकर्ता की ओर से यह भी कहा गया कि इन नियुक्तियों में नियमों व प्रावधानों का पालन नहीं किया गया है। पदों को भरने के लिए कोई विज्ञप्ति जारी नहीं की गई। याचिकाकर्ता की ओर से सचिव विधान सभा मुकेश सिंघल की नियुक्ति को भी चुनौती दी गई है और कहा गया है कि उनकी नियुक्ति नियम विरुद्ध है। उन्हें नियम विरुद्ध पदोन्नति दी गई है।

विधानसभा की ओर से कराई गई जांच में भी सभी नियुक्तियां अवैध घोषित की गई हैं परन्तु जांच के बाद विधानसभा सचिवालय की ओर से वर्ष 2016 के बाद नियुक्त कर्मचारियों को हटा दिया गया। जनहित याचिका में वर्ष 2000 से अभी तक की सभी नियुक्तियों व सचिव सिंघल की नियुक्ति को रद्द करने की मांग की गई है।

अदालत ने विधानसभा सचिवालय के अलावा मुख्यमंत्री व अन्य लोगों व संस्थाओं को पक्षकार बनाने पर एतराज़ जताया। सरकार की ओर से कहा गया कि याचिका राजनीति से प्रेरित है। इस मामले में एक जनहित याचिका उच्च न्यायालय में लंबित है।

अदालत ने अंत में संशोधन कर सभी पक्षकारों के नाम हटाने के निर्देश याचिकाकर्ता को दिये हैं तथा विधानसभा सचिवालय और निलंबित सचिव मुकेश सिंघल को ही नोटिस जारी कर जवाब देने को कहा है। अदालत ने इस मामले को पूर्व जनहित याचिका के साथ जोड़ दिया है।

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