अल्मोड़ा : प्राकृतिक नहीं, मानवकृत है जोशीमठ की आपदा : उलोवा

✒️ कत्यूरियों को बैजनाथ लानी पड़ी थी राजधानी उत्तराखंड लोक वाहिनी ने जोशीमठ त्रासदी पर गंभीर चिंता जाहिर करते हुए इसे मानवीकृत आपदा करार दिया…

जोशीमठ की आपदा

✒️ कत्यूरियों को बैजनाथ लानी पड़ी थी राजधानी

उत्तराखंड लोक वाहिनी ने जोशीमठ त्रासदी पर गंभीर चिंता जाहिर करते हुए इसे मानवीकृत आपदा करार दिया गया। वक्ताओं ने कहा कि जोशीमठ आदि काल से प्राकृतिक हलचल का इलाका रहा है। यहां बड़े निर्माण स्वीकार्य नही हैं। कत्यूरियों को भी अपनी राजधानी बदल कर बैजनाथ लानी पड़ी थी।

वाहिनी के वरिष्ठ नेता एडवोकेट जगत रौतेला की अध्यक्षता में हुई बैठक में वक्ताओं ने जोशीमठ आपदा को मानवीकृत आपदा बताया। कहा कि उत्तराखंड एक नया प्रदेश जरूर बना पर नीतियां दिल्ली से बनती रही। जिसका परिणाम है कि इन पहाड़ों को सहेजने व संवारने वाला यहां का निवासी अब इन पहाड़ों को सरकारी नीतियो व योजनाकारों की बदनियति के कारण छोड़ने के लिए बाध्य हैं। उन्होंने कहा कि 2006 मे वाहनी ने संपूर्ण उत्तराखंड में जल प्रबंधन की नीतियों के खिलाफ देहरादून से फलिन्डा की पैदल यात्रा कर सरकार को आगाह किया था कि वह पहाड़ का सीना फाड़कर विकास की इबादत ना लिखे।

वाहनी ने उत्तराखंड की हिमानी तथा गैर हिमानी नदियों के संरक्षण व संवर्धन के लिये आवाज उठाई थी, किंतु सरकारी तंत्र हर हाल में पहाडों का सीना चीरने, अरबों कॆ कर्ज से बनने वाली परियोजनाओं को बनाने में तब से लेकर अब तक आमादा है। एनटीपीसी की परियोजनाओं का ठेका ऐसी-ऐसी कंपनियों को दिया गया जिनके पास बांध व सुरंग बनाने की विशेषज्ञता ही नही थी। लिंको पैन बनाने वाली कंपनी बांध व सुरंग बनाने लगी। ये सारे सवाल तत्कालिक वाहनी के नेता शमशेर सिंह बिष्ट पूरे प्रदेश में उठाते रहे। ऑल वैदर रोड व एनटीपीसी की सुरंग व बांध आधारित परियोजनाओं ने ब्लॉस्ट व जेसीबी कटिंग के माध्यम से पहाड़ों को हिला कर रख दिया। ऑल वेदर रोड का मामला सुप्रीम कोर्ट में गया। निगरानी के लिये हाई पावर रवि चोपड़ा कमेटी बनाई गई पर सरकार ने देश की सुरक्षा का हवाला देकर कमेटी के सुझाव मानने से इंकार कर दिया।

उन्होंने कहा कि 2014 में केदारनाथ आपदा ने श्रीनगर तक को अपने आगोस मे ले लिया था। वाहनी ने कहा है कि पहाड़ के विकास व बिजली के निर्माण के लिये वाहनी ने अल्मोड़ा जनपद के रैस्ना गांव मे यूजर्स कंपनी का एक मॉडल बनाने की योजना बनाई थी। जिसे सरकार से स्वीकृति नही मिली। जिसे यदि अमल मे लाया जाता तो बिजली व लोगों की आर्थिकी हिमालय की रक्षा हो सकती थी। वाहनी की पहल पर ग्रामीणों ने अपनी कंपनियां भी बना ली थीं। इसके बावजूद सरकारें बड़े बांधों को बनाने के लिये जमीन का सीना चीरने व व पहाड़ के बचे-खुचे लोगो की जमीनों को बांधों मे डुबाने पर आमादा है। उन्होंने कहा कि जोशीमठ में आ रही प्राकृतिक आपदा जमीन के भीतर हो रही हलचल का प्रतीक है, जो की किसी बड़े बनाए गए बांध के कारण भी हो सकता है। जोशीमठ का इतिहास है कि यह प्राकृतिक हलचल का इलाका है। यहां बड़े निर्माण स्वीकार्य नही हैं। कत्यूरियों को भी अपनी राजधानी बदल कर बैजनाथ लानी पड़ी थी।

शंकराचार्य पीठ कई वर्षों तक इन्हीं आपदाओं के कारण विलुप्त रही। इसके बाबजूद भी जोशीमठ वैदिक सभ्यता, धार्मिक परंपराओं व भारत की मजबूत सीमा का परिचायक है। सरकार को यहां के निवासियों को मुआवजा व पुनर्वास करना चाहिये तथा जोशीमठ को सुरक्षित रखने के उपाय करने चाहिये। वाहनी की बैठक मे माधुरी मेहता, दयाकृष्ण कांडपाल, जंग बहादुर थापा, रेवती बिष्ट, जगत रौतेला, अजय मित्र सिंह बिष्ट, विशन दत्त जोशी, अजय मेहता, कुणाल तिवारी, सूरज टम्टा आदि शामिल थे। बैठक का संचालन पूरन चन्द्र तिवारी ने किया।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *