अल्मोड़ा: हिमालय के समृद्ध इतिहास, कला व संस्कृति को बचाए रखना जरूरी—रावल

✒️ सोबन सिंह जीना विश्वविद्यालय में अंतर्राष्टीय सेमिनार आयोजित ✒️ संस्कति व कला के संरक्षण पर जोर, दर्जनों शोध पत्र पढ़े सीएनई रिपोर्टर, अल्मोड़ा: हिमालयी…

हिमालय के समृद्ध इतिहास, कला व संस्कृति को बचाए रखना जरूरी—रावल

✒️ सोबन सिंह जीना विश्वविद्यालय में अंतर्राष्टीय सेमिनार आयोजित
✒️ संस्कति व कला के संरक्षण पर जोर, दर्जनों शोध पत्र पढ़े

सीएनई रिपोर्टर, अल्मोड़ा: हिमालयी इतिहास, संस्कृति व कला समृद्ध है, जिसे बचाए रखना बेहद जरूरी है। यह बात सुदूर प्रश्चिमी प्रदेश नेपाल के पूर्व मुख्यमंत्री राजेंद्र सिंह रावल ने कही। श्री रावल आज सोबन सिंह जीना विश्वविद्यालय के कैंपस में आयोजित अंतर्राष्ट्रीय सेमिनार में बतौर मुख्य अतिथि बोल रहे थे। सेमिनार में कई विशेषज्ञों ने संस्कृति व कला के संरक्षण पर जोर दिया और दर्जना शोध पत्र पढ़े गए।

सोबन सिंह जीना विश्वविद्यालय के इतिहास, संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग द्वारा गणित विभाग के सभागार में अंतर्राष्ट्रीय सेमिनार का उद्घाटन मुख्य अतिथि सुदूर पश्चिमी प्रदेश नेपाल के पूर्व मुख्यमंत्री राजेंद्र सिंह रावल व अन्य ​अतिथियों ने संयुक्त रुप से दीप प्रज्वलित कर किया। मुख्य अतिथि सुदूर पश्चिमी प्रदेश नेपाल के पूर्व मुख्यमंत्री राजेन्द्र सिंह रावल ने भाषा, समाज, संस्कृति पर आधारित सेमिनार आयोजन की सराहना करते हुए कहा कि अपनी संस्कृति को लेकर सजग रहना होगा। उन्होंने कहा कि हमारा इतिहास, संस्कृति, कला, खानपान बहुत समृद्ध है, जिसे बचाये जाने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि आज इतिहास के पुनर्लेखन की आवश्यकता है। इस मौके पर महाराष्ट्र के पूर्व राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने ऑनलाइन शामिल होकर सेमिनार की सफलता को शुभकामनाएं प्रदान कीं।

विशिष्ट अतिथि पद्मश्री एवं लोक कला संग्रहालय भीमताल के निदेशक डॉ. यशोधर मठपाल ने कहा कि उत्तराखंड में लेखन परंपरा प्राचीन समय से विद्यमान रही है। वैदिक साहित्य के संरक्षण के प्रयास होने चाहिए। हस्तकलाओं, लोक कलाओं के ऐतिहासिक पक्ष को भी उन्होंने विस्तार से समझाया। उन्होंने कहा कि अर्जित विज्ञान, लोक विज्ञान के सामने फीका है। विशिष्ट अतिथि भारतीय इतिहास संकलन के कार्यकारी राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रो. ईश्वर शरण विश्वकर्मा ने हिमालयन फोक कल्चर विषयक सेमिनार की सराहना की और शुभकामनाएं दी।

उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता करते हुए विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. सतपाल सिंह बिष्ट ने कहा की सम्पूर्ण हिमालय में पारंपरिक चिकित्सा पद्धति के क्षेत्र में अपार संभावनाएं हैं। हिमालय में मेडिशनल प्लांट को लेकर ज्ञान शोधार्थियों के बीच जाना चाहिए। उन्होंने आगे कहा कि लोक के विभिन्न आयामों का प्रसार एवं संरक्षण किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय में ऐसे सेमिनार होने को गर्व की बात बताते हुए सभी आगंतुकों का स्वागत किया। इससे पूर्व सेमिनार के संयोजक प्रो. वीडीएस नेगी ने अतिथियों का स्वागत करते हुए बताया कि आईसीएचआर, भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण आदि के सहयोग से यह अंतरराष्ट्रीय सेमिनार का आयोजित हो रहा है। जिसमें हिमालयी लोक के विविध आयामों को प्रस्तुत किया जाएगा।

आधार व्याख्याता प्रोफेसर देव सिंह पोखरिया ने कहा कि हिमालयी भाषाओं ने विश्व को जोड़ा है। संस्कृति के विकास में भाषा प्रमुख स्थान रखती है। हिमालयी संस्कृति के निर्माण में भाषाओं का योगदान है। उन्होंने हिमालयी भाषा /बोलियों की समानता, एकता और संवैधानिक भाषाओं की स्थिति पर प्रकाश डाला। साथ ही फोक,आदिम एवं जन को स्पष्ट कर लोक पर प्रकाश डाला। पद्मश्री बसंती देवी ने उत्तराखंड को उत्कृष्ट बनाने के लिए कार्य करें। नशा मुक्त समाज बनाएं। उन्होंने कल्चर को बढ़ावा देने की बात कही।

आयोजक सचिव डॉ. गोकुल देउपा ने अतिथियों का आभार जताया। सेमिनार का संचालन विद्वान प्रो. एसए हामिद ने किया। इस मौके पर सेमिनार सोवेनियर एवं भारत के स्वाधीनता संग्राम में उत्तराखंड का योगदान पुस्तक का अतिथियों का लोकार्पण किया। सेमिनार के शुभारंभ में आयोजकों ने अतिथियों को पुष्प कुछ देकर एवं शाल ओढ़ाकर सम्मानित किया। संगीत विभाग द्वारा संगीतमय प्रस्तुतियां दी गयी। बाद के तकनीकी सत्रों में दर्जनों शोध पत्र पढ़े गए। इस सेमिनार में कई देशों से शोधार्थी मौजूद रहे। सेमिनार ऑनलाइन एवं ऑफलाइन दोनों मोड में संचालित हुआ। डॉ. आस्था नेगी, डा. लक्ष्मी वर्मा, डॉ. रवि कुमार, डॉ. प्रेम प्रकाश पांडे, डॉ. रवींद्र नाथ पाठक, डॉ. सुनील पंत आदि कई लोगों ने व्यवस्थाओं में सहयोग किया।

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