भारत को मिला ‘प्रचंड’, स्वदेशी कॉम्बैट हेलिकॉप्टर (LCH) ने भरी उड़ान

👉 आकाश में अब भारतीय वायुसेना का दबबदा, दुश्मनों के हौंसले हुए पस्त Creative News Express (CNE) The Indian Air Force Monday formally inducted the first indigenously…

👉 आकाश में अब भारतीय वायुसेना का दबबदा, दुश्मनों के हौंसले हुए पस्त

Creative News Express (CNE)

The Indian Air Force Monday formally inducted the first indigenously developed multirole light combat helicopters (LCH), named Prachand

आज महाअष्टमी, सोमवार का दिन भारतीय सेना के लिए गौरव का क्षण है, जब इंडियन एयरफोर्स को स्वदेशी लाइट कॉम्बैट हेलिकॉप्टर (LCH) मिल गया है। सेना का 22 साल पहले देखा गया सपना आज पूरा हुआ है और अब आकाश में भी भारतीय वायुसेना का रूतबा चलेगा। हिदुस्तान के पास अब एक ऐसा हेलिकॉप्टर है जो अपने कैनन से हर मिनट में 750 गोलियां दाग दुश्मनों के हौंसलों को पस्त कर देगा।

उल्लेखनीय है कि इंडियर एयरफोर्स का आज सोमवार को Indigenous Light Combat Helicopter (LCH) मिल गया है। दुश्मनों पर आकाश मार्ग से भारी पड़ने वाले इस हेलिकॉप्टर को प्रचंड नाम दिया गया है। महाअष्टी पर प्रचंड एयरफोर्स के बेड़े में शामिल किया गया। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने इस LCH ने आज इस हेलिकॉप्टर में उड़ान भरी। उन्होंने कहा कि ”प्रचंड को वायुसेना में शामिल करने के लिए नवरात्र से अच्छा समय और राजस्थान की धरती से अच्छी जगह नहीं हो सकती है। यह भारत का विजय रथ है। LCH सारी चुनौतियों पर खरा उतरा है। दुश्मनों को आसानी से चकमा दे सकता है।” हमने 22 साल पहले जो सपना देखा था, वो अब पूरा हो चुका है।

जानिये प्रचंड की खासियतें

⏩ तपता रेगिस्तान हो या बर्फीले पहाड़ हर परिस्थिति में भर सकता है उड़ान।

⏩ कैनन से हर मिनट में दागी जा सकती हैं 750 गोलियां।

⏩ एंटी टैंक और हवा में मारने वाली मिसाइलें से भी लैस।

राजनाथ सिंह ने LCH को विजय रथ की भी संज्ञा दी है। उन्होंने कहा कि आने वाले समय में सुपर पावर वाले देशों में भारत का नाम अग्रणी होगा। बता दें कि 3885 करोड़ रुपए की लागत से बने कुल 15 LCH भारतीय सेना में शामिल किये जायेंगे। इसमें से 10 आज वायु सेना को मिल गए हैं। इसके संचालन के लिए वायु सेना के 15 पायलट्स को विशेष ट्रेनिंग दी गई है।

ज्ञात रहे कि इन 22 साल में 10 से ज्यादा बार इसके ट्रायल हो चुके हैं। सियाचिन से लेकर रेगिस्तानी इलाके तक के माहौल में इसे परखा गया और अब इसकी पहली स्क्वाड्रन मिल चुकी है। उल्लेखनीय यह भी है कि कारगिल युद्ध में इसकी महसूस की गई थी जरूरत। याद दिला दें कि साल 1999 में कारगिल युद्ध के दौरान सेना के पास अगर यह होता तो ऊंचे पर्वतमाला की चोटियों पर छिपे हुए पाकिस्तानी दुश्मनों के बंकरों को काफी पहले ही उड़ा दिया जा सकता था। साल 2004 में इस प्रोजेक्ट पर काम शुरू हुआ था और 2006 में HAL ने सार्वजनिक घोषणा की थी कि वह हल्का लड़ाकू हेलिकॉप्टर बनाने जा रही है। होते-होते साल दर साल बीते और 01 जुलाई 2012 को चैन्नई के पास इसका पहला फुल स्केल ट्रायल शुरू हुआ था। इसके कुछ दिन बाद HAL ने LCH के दूसरे प्रोटोटाइप का ट्रायल समुद्र की सतह के ऊपर करना शुरू कर दिया। इस ट्रायल में फ्लाइट परफॉर्मेंस, भार वहन करने की क्षमता व इसके पंखों को परखा गया। आखिरकार कड़े परीक्षणों के बाद भारतीय वायुसेना को अपना ‘प्रचंड’ मिल ही गया है।


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