हमारी संस्कृति: प्रकृति के संरक्षण का संदेश देता है हरेला पर्व, उत्तराखंड की अनूठी परंपराओं में से एक (विस्तार से जानिये हरेले का महत्व – पढ़िये सीएनई का विशेष आलेख)

चन्दन नेगी, अल्मोड़ानैसर्गिक सौंदर्य से भरपूर उत्तराखंड को यूं ही देवभूमि की संज्ञा नहीं दी गई, बल्कि देवी-देवताओं का वास यहां रहा, इसलिए देवभूमि कहा…

चन्दन नेगी, अल्मोड़ा
नैसर्गिक सौंदर्य से भरपूर उत्तराखंड को यूं ही देवभूमि की संज्ञा नहीं दी गई, बल्कि देवी-देवताओं का वास यहां रहा, इसलिए देवभूमि कहा जाता है। उत्तराखण्ड अपने तीर्थ स्थलों तथा पर्यटक स्थलों के लिए पूरे विश्व में प्रसिद्ध है। उत्तराखंड को लोक कलाओं और लोक परम्पराओं का हृदय स्थल माना जाता है। यहां की संस्कृति व लोक परंपराएं विविधता लिये हुए हैं। प्रत्येक परंपरा या तीज/त्यौहार के पीछे कुछ ना कुछ खासियत अवश्य है। ऐसे ही हरेला पर्व भी विशेष पर्व माना जाता है। इसे मनाने का तरीका स्वयं में अनूठा है।
हरेला खासकर उत्तराखंड के कुमाऊँ में मनाया जाने वाला पर्व है। यह हरियाली व सुख-समृद्धि का पर्व माना जाता है। हरेला के दिन लोग अच्छी फसल पैदावार व धन-धान्य के लिए विशेष प्रार्थना करते हैं। यह पर्व उत्तराखण्ड के मूल निवासियों को प्रकृति से जोड़ता है। माना जाता है कि इस दिन से चहुँओर हरियाली फलेगी और कृषि व फलोत्पादन में खूब बरकत होगी। इसी कारण इस दिन पौधारोपण को महत्व दिया जाता है। इस दिन हर घर फूल, फलदार व अन्य प्रजाति के पौधों का रोपण जरूर करता है। कुछ लोगों की मान्यता है कि इस भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह हुआ था। भगवान शिव का वास हरिद्वार और उनका ससुराल हिमालय दोनों ही देवभूमि में हैं। ऐसे में उत्तराखंड भगवान शिव की विशेष कृपादृष्टि मानी जाती है। कुल मिलाकर यह पर्व प्रकृति के संरक्षण के लिए बेतहाशा प्रेरित करने वाला है और यहीं सन्देश देता है।
साल में तीन बार आता है हरेलाः- हरेला पर्व एक साल में तीन बार मनाया जाता है। पहला हरेला चैत्र मास के प्रथम दिन बोया जाता है, जो नौ दिन बाद कटता है। दूसरा हरेला श्रावण मास शुरू होने से नौ दिन पहले बोया जाता है और दस दिन बाद श्रावण के प्रथम दिन काटा जाता है। तीसरा आश्विन मास में नवरात्र के पहले दिन बोया जाता है और दशहरे के दिन कटता है। इनमें से श्रावण मास को पड़ने वाला हरेला ज्यादा महत्वपूर्ण माना जाता है, क्योंकि उत्तराखंड पहाड़ों का राज्य है और भगवान शिव का वास भी पहाड़ में ही है। साथ ही श्रावण मास भगवान शिव का अत्यधिक पसंद का मास माना जाता है।
ये बीज बोये जाते हैंः- श्रावण मास वाले हरेले को टोकरी या बड़े कटोरे के आकार के विशेष पात्र में बोया जाता है। खासकर इसके लिए रिंगाल की टोकरी इस्तेमाल की जाती है। इसमें मिट्टी डालने के बाद गेहूँ, जौ, धान, गहत, भट्ट, उड़द, सरसों आदि प्रमुख बीज बोेये जाते हैं। यही नहीं इन बीजों की संख्या पांच या सात होनी होनी चाहिए। इसके बाद इसमें रोज शुद्ध जल छिड़का जाता है। नौंवे दिन इनकी पाती (एक स्थानीय वनस्पति) की टहनी से गुड़ाई की जाती है और दसवें दिन काटा जाता है। अक्सर इतने दिनों में हरेले के पौंधों की ऊंचाई लगभग 5-6 इंच तक बढ़ जाती है। सूर्य के प्रकाश के अभाव में अंदर ये पौधे पीले रंग के होते हैं। इन्हीं पौधों को हरेला पुकारते हैं।
डिकारे बनाने की खास परंपराः- श्रावण मास के हरेले पर देवी-देवताओं की कलात्मक मूर्तियों खास कर शिव परिवार की मूर्तियों को विशेष रूप से सजाया जाता है और उन्हें पूजा जाता है। इन्हीं सजी मूर्तियों को डिकारे की संज्ञा दी गई है। खासकर देवी-देवताओं की कलात्मक मूर्तियां शुद्ध मिट्टी की बनाई जाती हैं, जिन्हें प्राकृतिक रंगों से सजाया जाता है।
हरेला काटने व चढ़ाने की विधि भी अनूठीः- हरेला गृह स्वामी द्वारा विशेष पूजा व मंत्रोच्चार के साथ काटा जाता है। हरेले को तिलक-चन्दन-अक्षत लगाकर मंत्र के अभिमंत्रित किया जाता है। इसमें रोग व शोक के निवारण के लिए मंत्र – “प्राण रक्षक वनस्पते, इदा गच्छ नमस्तेस्तु हर देव नमोस्तुते” का स्मरण किया जाता है। स्थानीय भाषा में इसे हरेला पतीसना बोला जाता है। इसके बाद इसे मंदिर में देवी-देवताओं को अर्पित किया जाता है। घर के सभी लोग तिलक-अक्षत लगाकर इसे सिर में रखते हैं। घर के बच्चों को हरेला चढ़ाया जाता है। वरिष्ठ सदस्य महिला या पुरूष बच्चों के पैर, घुटने, कन्धे, बाजू में छूते हुए हरेले को बच्चों के सिर में रखते हैं। साथ ही उन्हें इन पंक्तियों का उच्चारण करते हुए स्वरुप आशीर्वाद देते हैं- ‘जी रये, जागि रये, यौ दिन, यौ मास भेटने रये, धरती जस चाकव है जये, आकाश जस उच्च है जये, स्यूं जस तराण है जो, स्यावेकि जसि बुद्धि है जो, दूब हुंगर जये, सिल पिसी भात खये, जांठि टेकि बाजार जये।। अर्थात दीर्घायु बनो, सदैव तंदरूस्त रहो, खूब फलो-फूलो, धरती जैसा चैड़ा व धैर्यवान बनो, आकाश के बराबर ऊंचे होवो, सिंह जैसी ताकत हो जाए, सियार जैसी तेज बुद्धि हो जाये, दूब जैसे फैल जाओ आदि-आदि।

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