डिब्बा, पैकेट बंद खाद्य पदार्थों पर GST ! सब हो जायेगा महंगा, व्यापक विरोध

सीएनई डेस्क प्री-पैक और प्री-लेबल वाले खाद्यान्न, दही, बटर मिल्क आदि आवश्यक चीजों पर 5 फीसदी जीएसटी (GST) लगाने के फैसले का प्रबल विरोध शुरू…

सीएनई डेस्क

प्री-पैक और प्री-लेबल वाले खाद्यान्न, दही, बटर मिल्क आदि आवश्यक चीजों पर 5 फीसदी जीएसटी (GST) लगाने के फैसले का प्रबल विरोध शुरू हो गया है। देश भर से व्यापारिक संगठन जीएसटी काउंसिल द्वारा लिए गए फैसले की कड़ी आलोचना कर रहे हैं।

संगठनों का कहना है कि इस फैसले से व्यापार पर बुरा असर पड़ेगा। बता दें कि कन्फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स (कैट) ने जीएसटी काउंसिल, केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण एवं सभी राज्यों के वित्त मंत्रियों से ये फैसला वापस लेने की अपील की है। ज्ञात रहे कि जीएसटी काउंसिल की सिफारिशें मंगलवार से लागू होने के बाद आटा, चावल, दही और पनीर समेत रोजमर्रा की वस्तुओं के दाम बढ़ जाएंगे।

जीएसटी के दायरे में डिब्बा बंद और पैकेट बंद फूड आ रहे हैं, जिसकी वजह से रसोई के बजट पर असर पड़ना तय है। जानकारी के अनुसार केंद्र सरकार ने पैकेट बंद, डिब्बा बंद, लेबल युक्त (फ्रोजन को छोड़कर) मछली, दही, पनीर, लस्सी, शहद, सूखा मखाना, सोयाबीन, मटर, गेहूं का आटा, गुड़ सहित अन्य अनाजों को जीएसटी के दायरे ला दिया है। हालांकि, जीएसटी काउंसिल की सिफारिशों के दायरे में खुला दूध, दही और पनीर बेचने वाले नहीं आएंगे। उधर, व्यापारियों ने कहा कि ठीक है इसका असर हम पर नहीं पड़ेगा, लेकिन बिक्री जरूर प्रभावित होगी।

व्यापारिक संगठनों की मांग है कि जब तक जीएसटी काउंसिल में यह निर्णय अंतिम रूप से वापस नहीं हो जाता, तब तक इस निर्णय को स्थगित रखा जाना चाहिए। सूत्रों के अनुसार देश भर के खाद्यान्न व्यापारी संगठनों के व्यापारी नेता इस मुद्दे पर एक संयुक्त रणनीति बनाने के लिए लगातार बातचीत कर रहे हैं। फैसले के लिए कैट ने राज्यों के वित्त मंत्रियों को ठहराया जिम्मेदार ठहराया है। उनका कहना है कि इस तरह के अतार्किक निर्णय के लिए राज्यों के वित्त मंत्री जिम्मेदार हैं। काउंसिल में यह निर्णय सर्वसम्मति से लिया गया और सभी राज्यों के वित्त मंत्री काउंसिल के सदस्य हैं। इस निर्णय का देश के खाद्यान्न व्यापार पर अनुचित प्रभाव पड़ेगा और देश के लोगों पर आवश्यक वस्तुओं को खरीदने पर अतिरिक्त वित्तीय बोझ पड़ेगा। यही नहीं व्यापारियों के साथ-साथ किसानों पर भी इसका बुरा असर पड़ेगा। विरोध कर रहे व्यापारी नेताओं का कहना है कि भारत में पहली बार आवश्यक खाद्यान्नों को टैक्स के दायरे के तहत लिया गया है। इस फैसले से छोटे निर्माताओं और व्यापारियों की कीमत पर बड़े कॉरपोरेट घरानों को फायदा होगा।

सरकार की नीति गरीब विरोधी, भारत को श्रीलंका बनते अब देर नहीं : सुशील साह

अल्मोड़ा। इधर सरकार के इस फैसले पर नगर व्यापार मंडल अध्यक्ष सुशील साह ने कड़ा विरोध दर्ज किया है। उन्होंने यहां जारी बयान में कहा कि सरकार द्वारा लगाए गए नए टैक्स डिब्बा बंद दही, लस्सी, छांछ समेत खान— पान की चीजों पर लगा दिया है। इसमें सभी जरूरी वस्तुओं को लिया गया है। जरूरी वस्तुओं पर टैक्स लगाना सरकार की मंशा भी दर्शाती है कि सरकार गरीब विरोधी है। किसी भी व्यापारिक संगठनों को बिना विश्वास में लिए इस प्रकार के फरमान को लागू कर देना भी यही दिखाता है कि सरकार केवल अपने कोष की चिंता कर रही है। गरीब और निर्धन लोग सरकार के लिए मात्र एक जनसंख्या है। उनके हितों की सरकार लागतार अनदेखी कर रही है। जहां एक ओर महंगाई आसमान चीरने को तैयार है, दूसरी ओर राहत देने के बजाय सरकार टैक्स को बड़ा रही है और उन सामानों पर भी टैक्स लगा रही है जो अति आवश्यक की श्रेणी में आते हैं। जिसका सीधा असर गरीब तबके पर पड़ रहा है। आज जिस स्थिती में श्रीलंका पहुंचा है और पूरी अर्थव्यवस्था चरमरा गई है, अगर सरकार की यही व्यापार विरोधी और गरीब विरोधी नीति चलती रही तो जल्द ही भारत भी श्रीलंका बनने में समय नहीं लगाएगा।

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