ईडी निदेशक संजय मिश्रा का सेवा विस्तार अवैध – सुप्रीम कोर्ट

नई दिल्ली | सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के निदेशक संजय कुमार मिश्रा के एक-एक वर्ष के दो कार्यकाल विस्तार को अवैध…

ईडी निदेशक संजय मिश्रा का सेवा विस्तार अवैध - सुप्रीम कोर्ट

नई दिल्ली | सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के निदेशक संजय कुमार मिश्रा के एक-एक वर्ष के दो कार्यकाल विस्तार को अवैध करार दिया। शीर्ष अदालत ने हालांकि, व्यापक सार्वजनिक हित के मद्देनजर 31 जुलाई 2023 तक उन्हें वर्तमान पद पर बने रहने की अनुमति दे दी। यानी सरकार को इस पद पर किसी अन्य अधिकारी की नियुक्ति करने के लिए एक निश्चित समय अवधि की मोहलत दे दी है।

न्यायमूर्ति बी आर गवई, न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति संजय करोल की पीठ ने यह फैसला सुनाया। पीठ हालांकि, केंद्र सरकार के केंद्रीय सतर्कता आयोग (संशोधन) अधिनियम 2021 और दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना (संशोधन) अधिनियम 2021 की वैधता को दी गई चुनौती को खारिज कर दिया।

इन दोनों संशोधित अधिनियमों में केंद्रीय जांच एजेंसियों – केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) और प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के निदेशक के पद का कार्यकाल पांच वर्षों तक विस्तार की अनुमति दी गई है। शीर्ष अदालत के इस फैसले से साफ हो गया है कि सीबीआई और ईडी प्रमुख के पद के अधिकारी का सेवा विस्तार अधिकतम पांच वर्षों तक करना कानून सम्मत है।

शीर्ष अदालत ने अपने आदेश में कहा कि उसने पाया कि आठ सितंबर 2021 के (कॉमन कॉज़ मामले में) उसके पिछले फैसले में जारी किए गए परमादेश का उल्लंघन करते हुए मिश्रा को 17 नवंबर 2021 और 17 नवंबर 2022 को एक-एक वर्ष की अवधि के लिए विस्तार दिया गया था।

पीठ ने कहा, केंद्र सरकार परमादेश का उल्लंघन करते हुए आदेश जारी नहीं कर सकती थी। न्यायमूर्ति गवई ने कांग्रेस नेता रणदीप सिंह सुरजेवाला और डॉ. जया ठाकुर, टीएमसी नेता साकेत गोखले एवं महुआ मोइत्रा, वकील एम एल शर्मा, कृष्ण चंदर सिंह तथा सामाजिक कार्यकर्ता विनीत नारायण व स्वयंसेवी संस्था- कॉमन कॉज द्वारा ईडी निदेशक के कार्यकाल के विस्तार को चुनौती देने वाली अलग-अलग याचिकाओं पर 103 पृष्ठों में अपना फैसला दिया।

संशोधनों के बाद केंद्र सरकार को ईडी निदेशक का कार्यकाल पांच सालों तक बढ़ाने का अधिकार है। पीठ ने (कॉमन कॉज मामले) अपने फैसले में कहा सरकार पर दो साल की अवधि से अधिक प्रवर्तन निदेशक नियुक्त करने पर कोई प्रतिबंध नहीं है। पीठ ने साथ ही यह भी स्पष्ट किया कि एक अधिनियम द्वारा परमादेश को रद्द करना अस्वीकार्य विधायी अभ्यास होगा।

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