पार्टी की जांच के बाद दावा : बिन्दुखत्ता के ‘माले’ नेताओं पर मुकदमा आरएसएस-पुलिस सांठगांठ का नतीजा

बिन्दुखत्ता। 3 जुलाई को पुलिस द्वारा भाकपा (माले) नेताओं किशन बघरी और ललित मटियाली पर मुकदमा संघ-भाजपा और पुलिस सांठगांठ से किया गया था। यह…

बिन्दुखत्ता। 3 जुलाई को पुलिस द्वारा भाकपा (माले) नेताओं किशन बघरी और ललित मटियाली पर मुकदमा संघ-भाजपा और पुलिस सांठगांठ से किया गया था। यह दावा भाकपा (माले) द्वारा की गई जांच के बाद संगठन की ओर से किया गया है। जांच में जनता के बीच से भी जानकारी ली गई। जिसमें जनता ने पुलिस के व्यवहार को आपत्तिजनक बताया। गौरतलब है कि 3 जुलाई को कार रोड बिन्दुखत्ता में पुलिस द्वारा चालान काटने का बिन्दुखत्ता के नागरिकों और व्यापारियों द्वारा इस आधार पर विरोध किया गया था कि कोरोना लॉकडाउन के दौरान बाज़ार में मंदी चल रही है, ऐसे में चालान काटकर लोगों के लिए और भी दिक्कत में न डाला जाय। सिर्फ इतनी सी बात बहस पर संगीन धाराओं में मुकदमा दर्ज कर जेल भेजने की लालकुआं पुलिस की कार्यवाही प्रथम दृष्टया ही संदिग्ध प्रतीत हो रही थी, लेकिन भाकपा (माले) ने पूरे मामले की जांच करने के बाद ही प्रतिक्रिया व्यक्त करना उचित समझा।
जांच में यह बात खुलकर सामने आयी है कि माले नेताओं पर मुकदमा थोपने की कार्यवाही पुलिस द्वारा आरएसएस के दबाव में की गई। यही नहीं आरएसएस के एक कार्यकर्ता ने तो ललित मटियाली पर हमला करने की भी कोशिश की। पूरी जांच में पता चला कि संघ के कार्यकर्ता ने दूर खड़े ललित मटियाली पर हमला किया। जिसके बाद पुलिस ने ललित मटियाली व किशन बघरी को ही पकड़ लिया। जो असली अभियुक्त है उसके इशारे पर पीड़ित के खिलाफ ही मुकदमा दर्ज करवा दिया। यानी संघ कार्यकर्ताओं और पुलिस ने आपसी मिलीभगत से उनको गिरफ्तार कर मुकदमा दर्ज कर दिया। जबकि पुलिस द्वारा कोरोना काल में चालान काटने का हल्द्वानी से लेकर हर जगह व्यापारियों द्वारा विरोध और आपत्ति दर्ज की जा रही है। कहीं कोई मुकदमा दर्ज नहीं हुआ, लेकिन बिन्दुखत्ता में आपत्ति दर्ज करने मात्र पर संगीन मुकदमे दर्ज किया जाना बहुत कुछ बता देता है। भाकपा (माले) द्वारा जांच के पश्चात बिन्दुखत्ता कमेटी की पार्टी कार्यालय में हुई बैठक में घटना की जांच पर चर्चा के दौरान यह बातें सामने आई।
बैठक में बोलते हुए भाकपा (माले) जिला सचिव डॉ कैलाश पाण्डेय ने सवाल किया कि, “भाजपा के राज में पुलिस को सुझाव देना या आपत्ति दर्ज करना भी क्या अपराध की श्रेणी में डाल दिया गया है? खेती-किसानी के मौसम में व धीरे धीरे बाजार अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने की कोशिशों के बीच गांव में चालान न करने और कोरोना को लेकर जागरूकता फैलाने की दोनों भाकपा(माले) कार्यकर्ताओ ने पुलिस से अपील की थी। लेकिन पुलिस ने संघ कैडर की तरह व्यवहार करते हुए माले नेताओं पर ही मुकदमा दर्ज कर दिया गया जो कि शर्मनाक है।”
उन्होंने कहा कि, “उत्तराखंड को पुलिस स्टेट में बदलने की संघ-भाजपा की कोशिश आंदोलन और असहमति दर्ज करने वाले लोगों के खिलाफ दमन के औजार का काम करेगी। इसका जनता की आवाज उठाने वाले सभी लोगों को विरोध करना चाहिए।”
बैठक के माध्यम से उत्तराखंड राज्य सरकार से मांग की गई कि किशन बघरी और ललित मटियाली के ऊपर राजनीतिक द्वेष के चलते थोपे गए मुकदमे को वापस लेने की कार्यवाही करें। यह भी तय किया गया कि भाकपा (माले) इस मामले की शिकायत मानवाधिकार आयोग व पुलिस के उच्चाधिकारियों से भी करेगी।
बैठक में डॉ कैलाश पांडेय, भुवन जोशी, विमला रौथाण, बिशनदत्त जोशी, ललित मटियाली, गोविंद जीना, पुष्कर दुबड़िया, किशन बघरी, कमल जोशी, गोपाल गड़िया, ललित जोशी, नैन सिंह कोरंगा,हरीश भंडारी, धीरज, निर्मला शाही, गोपाल बोरा आदि पार्टी सदस्य मौजूद रहे।

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