अल्मोड़ा : पाटिया में बग्वाल, 40 मिनट तक चला पत्थरयुद्ध

सीएनई रिपोर्टर, अल्मोड़ा। ऐतिहासिक गांव पाटिया में इस बार भी बग्वाल खेली गई। जो की करीब 40 मिनट तक चली। गौरतलब है कि विकासखंड के…

पाटिया में बग्वाल, 40 मिनट तक चला पत्थरयुद्ध

सीएनई रिपोर्टर, अल्मोड़ा। ऐतिहासिक गांव पाटिया में इस बार भी बग्वाल खेली गई। जो की करीब 40 मिनट तक चली।

गौरतलब है कि विकासखंड के पाटिया गांव में सैकड़ों वर्षों से बग्वाल खेलने की पंरपरा चली आ रही है। इस बार भी बग्वाल खेलने की प्रथा इस बार भी पूरे रस्मो रिवाज के साथ मनायी गयी।

चार गांव के योद्धाओं ने लिया हिस्सा

आज हुई बग्वाल में चार गांव के योद्धाओं ने हिस्सा लिया। सदियों पुरानी परंपरा को कायम रखते हुए पत्थर युद्ध खेला गया। बग्वाल कुछ अंतराल तक चली। यह युद्ध किसी एक ग्राामीण द्वारा नदी में पानी तक पहुंचने के बाद शांत हो गया। कोटयूड़ा की ओर से विकी बिष्ट के पचघटिया में पानी पीने के साथ ही बग्वाल का समापन हो गया। इसके बाद पाटिया के राजा पिलखवाल ने पचघटिया में पानी पिया और दोनो पक्षों द्वारा एक दूसरे पर पानी छिड़कने के साथ ही बग्वाल का समापन हो गया।

सैकड़ों लोग बने पत्थर युद्ध के गवाह

पाटिया क्षेत्र के पचघटिया में खेले गये इस बग्वाल में पाटिया, भटगांव, जाखसौड़ा कोटयूड़ा और कसून के ग्रामवासियो ने भाग लिया। जबकि क्षेत्र के दर्जनो गांवो से आये सैकड़ों लोग इस पत्थर युद्ध के गवाह बने।

अगेरा मैदान के गायखेत में हुई बग्वाल

पाटिया और कोट्यूड़ा के बीच मूलतः खेले जाने वाले इस पत्थर युद्ध में कोटयूड़ा के साथ कसून जबकि पाटिया के साथ जाखसौड़ा और भटगांव के योद्धाओं ने शि्रकत की। पत्थर युद्ध का आगाज पाटिया गांव के अगेरा मैदान के गाय खेत में गाय की पूजा के साथ शुरू हुआ।

पानी पीने की रस्म के साथ युद्ध समाप्त

मान्यता के अनुसार पिलख्वाल खाम के लोगों ने चीड़ की टहनी खेत मे गाड़कर बग्वाल की अनुमति मांगी। इसके बाद मैदान को पार करके पचघटिया (नदी का नाम) तक पहुंच कर पाटिया खाम के महेन्द्र पिलख्वाल के पानी पीने की रस्म के बाद यह युद्ध समाप्त हो गया।

इसके बाद लोगों ने एक दूसरे को बधाई दी और अगली बार मिलने का वादा कर विदा ली। प्राचीन समय में केवल ठाकुर (क्षत्रिय) लोगों द्वारा इस बग्वाल को खेला जाता था। लेकिन अब समय बीतने के साथ ही हर जाति का व्यक्ति और युवा इस पत्थर युद्ध में पूरे जोशो खरोश के साथ शिरकत करता है।

कई रोज पूर्व से शुरू हो जाती है पत्थर युद्ध की तैयारी

यह पत्थर युद्ध कबसे और क्यों खेला जा रहा है इस बारे में नयी और कुछ पुरानी पीढ़ी को भी बहुत अधिक पता नहीं है। पुरखों की इस पंपरा को निभाने के लिए आज भी लोग पूरा समय देते हैं। सम्बन्धित क्षेत्र के युवाओं में पिछले कई दिन से इस युद्ध के आयोजन के लिए तैयारी प्रारम्भ हो जाती है।

वर्षों पूर्व की परंपरा

मान्यता है कि वर्षों पूर्व किसी आतताई को भगाने के लिए देानों गावों के लोगों ने एकजुट होकर उसे पत्थरों से भगाया था। बाद में उसके भाग जाने और पानी पीने की मोहलत देने के अनुरोध पर ही गांव वासियों ने उसे छोड़ा था।

हालांकि नई पीढ़ी इस कहानी के बारे में भी ज्यादा नहीं जानती है। पत्थर युद्ध नदी के दोनों छोरों से खेला जाता है और जिस टीम का व्यक्ति सबसे पहली पानी पीने पहुंच जाता है वही टीम विजयी घोषित हो जाती है। इसके साथ ही युद्ध का समापन हो जाता है।

चोटिल योद्धा दवा का नहीं करते इस्तेमाल

इस युद्ध की सबसे बढ़ी खासियत यह है कि युद्ध के दौरान पत्थरों से चोटिल हो जाने वाला योद्धा किसी दवा का इस्तेमाल नहीं करता बल्कि बिच्छू घास के उबटन को घाव पर लगाया जाता है।

बताना जरूरी है कि सदियों से आपसी आयोजन से चल रही इस परंपरा को उभारने और चंपावत के देवीधूरा की तर्ज पर इसका प्रचार प्रसार करने के लिये प्रशासन द्वारा कोई ठोस पहल नहीं की जा सकी है, इसीलिए यह आयोजन प्रसिद्धी नहीं पा सकी है।

40 मिनट तक चली बग्वाल

अल्मोड़ा। पाटिया में बग्वाल मिनट तक चली। इस अनूठे पत्थर युद्ध में कई योद्धा चोटिल हुए। कोट्यूडा की ओर से विक्की बिष्ट, पाटिया खाम की ओर से राजा पिलख्वाल ने अगुवाई की।इस मौके पर पाटिया के ग्राम प्रधान हेमंत कुमार,कोट्यूड़ा के ग्राम प्रधान भुवन चंद्र आर्य, कसून के ग्राम प्रधान सुंदर मटियानी, भट्टगांव के ग्राम प्रधान सुनीता भट्ट, बंशीलाल, सरपंच देवेंद्र सिंह बिष्ट, सामाजिक कार्यकर्ता हेम चन्द्र पांडे, पूरन चंद्र पांडे, पनी राम, दयाल राम आदि मौजूद रहे।

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