विश्व कुष्ठ उन्मूलन दिवस पर विशेष : ‘लाइलाज नहीं कुष्ठ रोग, मल्टी ड्रग थेरेपी है कुष्ठ रोग का कारगर इलाज’

CNE REPORTER टिहरी से डाॅ. भारत गिरी गोसाईं का विशेष आलेख – विश्व कुष्ठ दिवस की स्थापना 1954 में फ्रांस के प्रसिद्ध लेखक राउल फोलेरे…

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टिहरी से डाॅ. भारत गिरी गोसाईं का विशेष आलेख –

विश्व कुष्ठ दिवस की स्थापना 1954 में फ्रांस के प्रसिद्ध लेखक राउल फोलेरे द्वारा की गई थी। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जनवरी के अंतिम रविवार को विश्व कुष्ठ उन्मूलन दिवस मनाया जाता है, जिसका मुख्य उद्देश्य कुष्ठ रोग के बारे में जन जागरूकता बढ़ाना है। राष्ट्रपति महात्मा गांधी द्वारा कुष्ठ रोगियों को समाज की मुख्यधारा में जोड़ने के अथक प्रयासों की वजह से भारत में हर वर्ष 30 जनवरी उनकी पुण्यतिथि को कुष्ठ रोग निवारण दिवस के रूप में मनाया जाता है।

कुष्ठ रोग क्या है ? 

यह एक संक्रमण रोग हैं जिसके रोगाणु की खोज 1873 में डॉ. गेर हार्ड लाउडेड हेनसेन द्वारा की गई थी। इसलिए कुष्ठ रोग को हेनसेन रोग भी कहा जाता है। यह एक बहुत पुरानी बीमारी है। भारतीय ग्रंथों के अनुसार लगभग 600 ईसा पूर्व इस रोग का उल्लेख किया गया है। कुष्ठ रोग वंशानुगत रोग नही है। यह केवल जीवाणु द्वारा फैलता है, जिसके प्रभाव से लाखों लोग दिव्यांग बन गई हैं। यह एक वैश्विक महामारी हैं, जिसका असर पिछड़े हुए देशों में सर्वाधिक है।

कुष्ठ रोग का कारण :

कुष्ठ रोग माइक्रोबैक्टेरियम लेप्राई नामक बैक्टीरिया के कारण होता है। यह रोग तभी फैलता है जब आप ऐसे मरीजों के नाक व मुंह के तरल के बार-बार संपर्क में आते हैं। जीवाणु के संपर्क में आने के बाद लक्षण दिखाई देने में आमतौर पर 3 से 5 साल का समय लग जाता है। जीवाणु के संपर्क में आने तथा लक्षण दिखाई देने की बीच की अवधि को ‘इनक्यूबेशन पीरियड’ कहा जाता है।

कुष्ठ रोग का प्रभाव :

विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार विश्व में प्रतिवर्ष 20 लाख से अधिक लोग कुष्ठ रोग से प्रभावित होते हैं। विश्व में सर्वाधिक कुष्ठ रोगी भारत में पाए जाते हैं। ब्राजील द्वितीय एवं इंडोनेशिया तृतीय स्थान पर है। भारत में कुष्ठ रोग के 1 लाख 20 हजार से 1 लाख 30 हजार नए मामले हर साल सामने आते हैं।

कुष्ठ रोग से प्रभावित अंग : यह रोग मुख्य रूप से मानव त्वचा एवं श्वसन तंत्र को प्रभावित करता है।

कुष्ठ रोग के लक्षण :

कुष्ठ रोग का प्रमुख लक्षण त्वचा के रंग व स्वरूप में परिवर्तन होना है। त्वचा पर घाव होना, रंगहीन दाग होना भी कुष्ठ रोग का संकेत है। समय पर यदि कुष्ठ रोग का उपचार न किया जाए तो यह पूरे शरीर में फैल सकता है जिससे शरीर के कई अंग सुन हो सकते हैं। आंखों या पैर में दर्द, त्वचा में लाली होना, गांठ का होना आदि कुष्ठ रोग के प्रमुख लक्षणों में एक है। शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली का कमजोर होना, पर्याप्त मात्रा में पौष्टिक भोजन ना मिलना, लंबे समय तक दूषित भोजन व पानी का प्रयोग करना भी कुष्ठ रोग का प्रमुख कारण है।

कुष्ठ रोग की प्रकार सामान्यत :

कुष्ठ रोग तीन प्रकार के होते हैं  1. तंत्रिका कुष्ठ रोग — इस रोग से मनुष्य के शरीर की प्रभावित अंगों की संवेदनशीलता समाप्त हो जाती है। 2. ग्रंथि कुष्ठ रोग — इस रोग के कारण त्वचा में विभिन्न रंग के चकत्ते, दाग धब्बे पड़ जाते हैं तथा कुछ समय पश्चात गांठ में परिवर्तित हो जाते हैं। 3. मिश्रित कुष्ठ रोग — इस रोग में रोगी के प्रभावित अंगों की समाप्त संवेदनशीलता के साथ-साथ त्वचा में दाग धब्बे पड़ जाते हैं।

कुष्ठ रोग का उपचार :

अगर कोई व्यक्ति कुष्ठ रोग से ग्रसित हैं तो सर्वप्रथम डॉक्टर से संपर्क कर सलाह लेना चाहिए। कुष्ठ रोग के निवारण के लिए सभी सरकारी अस्पतालों में मुफ्त दवा भी उपलब्ध है। डोपसोन, रिफामिपन, क्लोफेजिमिन रिमाकटाने आदि दवाइयां हैं, जो कि कुष्ठ निवारण में कारगर है। त्वचा-घाव बायोप्सी, त्वचा-स्क्रेपिंग तथा मल्टी ड्रग थेरेपी आदि  से कुष्ठ रोग  पर नियंत्रण पा सकते हैं।

भारत द्वारा कुष्ठ रोग निदान हेतु उठाय महत्वपूर्ण कदम :

भारत ने 1955 से राष्ट्रीय कुष्ठ नियंत्रण कार्यक्रम शुरू किया था। भारत वर्तमान में दुनिया में सबसे बड़ा कुष्ठ उन्मूलन कार्यक्रम चला रहा है जिसका मुख्य उद्देश्य कुष्ठ रोगों को प्राथमिक अवस्था में पहचान कर  नियमित उपचार द्वारा विकलांगता से बचाव करना है। साथ ही साथ स्वास्थ्य शिक्षा द्वारा समाज में इस रोग के संबंध में फैली गलत अवधारणाओं को दूर करना है। कुष्ठ रोग मरीजों को अक्सर छुआछूत और सामाजिक उत्पीड़न का सामना करना पड़ता है। आम धारणा है कि यह रोग छूने से फैलता है जबकि ऐसा नहीं है ।

बीते सालों में कुष्ठ निवारण को यह हुई पहल :

विश्व बैंक के पहले चरण 1993-94 से शुरू हुई राष्ट्रीय कुष्ठ उन्मूलन परियोजना का समर्थन भारत द्वारा किया गया। वैश्विक उन्मूलन हासिल करने के बाद वर्ष 2001 में भारत उन 14 देशों में शामिल था जो कुष्ठ निवारण को खत्म करने के लक्ष्य से चूक गई थे। दिसंबर 2005 में राष्ट्रीय स्तर पर 10 हजार जनसंख्या प्रति एक जनसंख्या से कम के रूप में परिभाषित कुष्ठ रोग उन्मूलन के लक्ष्य को प्राप्त किया। 2017 में जन जागरूकता को बढ़ाना बढ़ावा देने और भेदभाव के मुद्दों को हल करने के लिए ‘स्पर्श’ कुष्ठ जागरूकता अभियान शुरू किया गया। 2019 में लोकसभा में तलाक के लिए कुष्ठ रोग को हटाने के लिए एक विधेयक पारित किया। 2 अक्टूबर 2019 को महात्मा गांधी की 150वीं जयंती के उपलक्ष में राष्ट्रीय कुष्ठ उन्मूलन कार्यक्रम 9 अक्टूबर 2019 तक प्रति मिलियन लोगों की तुलना में कम से कम एक मामले में ग्रेट को कम करने की व्यापक योजना तैयार की है। वर्ष 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और राज्य सरकारों को कुष्ठ रोग के बारे में जागरूकता कार्यक्रम शुरू करने के निर्देश दिए हैं। कोर्ट ने कहा कि कार्यक्रम में उन लोगों की सकारात्मक छवि या वह कहानियां का उपयोग करना चाहिए जिन्हें ठीक किया गया है। भारत की सबसे पुरानी कुष्ठ संस्था ‘इंडियन एसोसिएशन ऑफ लेप्रोलॉजिस्ट’ को वर्ष 2016 से 2020 तक राष्ट्रीय कुष्ठ उन्मूलन कार्यक्रम का आधिकारिक भागीदारी की जिम्मेदारी दी गई है। 40 एनजीओ तथा 42 सरकारी मेडिकल कॉलेजों को विकलांगता सुधार के लिए पुनर्निर्माण सर्जरी प्रदान करने के लिए मजबूत किया गया।

कुष्ठ रोग का पता लगने पर मिलती है यह आर्थिक सहायता :

कुष्ठ रोगियों के लिए सर्जरी हेतु भारत सरकार द्वारा बीपीएल परिवारों को 05 हजार की आर्थिक सहायता देने की घोषणा की गई। देश में 612 कॉलोनी हैं, जहां कुष्ठ रोगी मुक्त निवास करते हैं। गांव में संदिग्ध कुष्ठ रोगियों की पहचान आशा (मान्यता प्राप्त सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता) द्वारा की जाती है। व्यक्ति में रोग की पुष्टि होने पर 250 रूपये, समय पर उपचार होने पर 400 से 600 रूपये तक का प्रोत्साहन राशि पाने का हकदार आशा होती है।

कोढ़ी शब्द का इस्तेमाल पर रोक :

कोढ़ी एक आपत्तिजनक एवं अपमानजनक शब्द हैं, जो कि समाज द्वारा कुष्ठ रोगियों के लिए प्रयोग किया जाता था। वर्ष 2009 में विश्व स्वास्थ्य संगठन की सद्भावना राजदूत योही सासाकावा ने इस शब्द के उपयोग को समाप्त करने का आह्वान किया था। जिसके परिणाम स्वरूप वर्ष 2010 से कोढ़ी शब्द का प्रयोग करना, मीडिया द्वारा इस शब्द का प्रयोग करना तथा सार्वजनिक आंकड़ों में इस शब्द का प्रयोग करना दंडनीय अपराध है।

Bharat Giri Gosain, Assistant Professor Botany, GDC Agrora Dharmandal, Tehri Garhwal, Uttarakhand


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