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हिमालयी क्षेत्र में अनियोजित दोहन पर जताई गंभीर चिंता, जननायक डा. शमशेर सिंह बिष्ट की पुण्यतिथि पर वेबिनार

सीएनई रिपोर्टर, अल्मोड़ा
जननायक डा. शमशेर सिंह बिष्ट की दूसरी पुण्यतिथि पर वेबिनार आयोजित किया गया। मुख्य वक्ता भूगर्भ शास्त्री डॉ. नवीन जुयाल ने हिमालयी क्षेत्र में प्राकृतिक संसाधनों के दोहन पर गहरी चिंता जताई और कहा कि पिछली आपदाओं से सबक लेते हुए भावी परियोजनाएं बननी चाहिए। जबरन जोखिम की स्थिति को बुलावा नहीं देना चाहिए। इस शमशेर स्मृति व्याख्यान—2020 का मुख्य विषय हिमालय का पारिस्थितिकीय तंत्र एवं चारधाम परियोजना था।
व्याख्यान में मुख्य वक्ता भूगर्भ शास्त्री डॉ. नवीन जुयाल ने हिमालय की भौगोलिक परिस्थिति, चारधाम परियोजना और उत्तराखंड के जंगलों के जानबूझकर दोहन पर चिंता जताई और कहा कि सभी को वर्ष 2004, 2010  व 2013 की प्रमुख आपदाओं से सबक लेना होगा। उन्होंने कहा कि चारों तीर्थस्थल उच्च भूकंपीय जोखिम वाले जोन पांच में स्थित हैं। चारधाम पारियोजना का बड़ा प्रभाव उत्तराखंड में वन संसाधनों और हरित आवरण में कमी होना है। उन्होंने कहा कि राज्य में हाल में हुए भूस्खलनों ने साबित कर दिया है कि एक बार फिर साबित करते हैं कि क्षेत्र में निर्माण कितना जोखिमभरा है। उन्होंने एचपीसी की एक टीम की रिपोर्ट का हवाला देते हुए उन्होंने बताया कि हिमालयी क्षेत्र में बड़े पैमाने पर चलने वाले आधुनिक उपकरण और मशीनों ने आसपास के गांवों को भारी नुकसान पहुंचाया है। उन्होंने कहा कि चारधाम खिंचाव पर 5.5 मीटर की एक मध्यवर्ती सड़क चौड़ाई खींची जानी चाहिए। यह वह चौड़ाई है, जो आइआरसी पहाड़ी रास्तों के लिए सुझाई है। उन्होंने प्राकृतिक दोहन पर नियंत्रण और सुरक्षा की दृष्टि से कार्य करने पर जोर दिया।
कार्यक्रम की अध्यक्षता राजीव लोचन साह व संचालन डा. शेखर पाठक ने की। इस मौके पर जयमित्र बिष्ट ने मुख्य वक्ता का समर्थन करते हुए कहा कि सड़कों के चौड़ीकरण के नाम पर जंगलों का दोहन कर पर्यावरण को भारी क्षति पहुंचाई जा रही है। जिसका परिणाम हमें भूस्खलन के रूप में दिख रहा है। जिसमें जानमाल की क्षति होती है। इस मौके पर स्व. शमशेर सिंह बिष्ट समेत स्वामी अग्निवेश, त्रेपन सिंह चौहान, हीरा सिंह राणा, पुरूषोत्तम असनोड़ा, सुरेंद्र पुंडीर को श्रद्धांजलि दी गई। वेबिनार में अजयमित्र बिष्ट, अजय सिंह मेहता, रवि चोपड़ा, चंदन सिंह घुघत्याल, डा. एसपी सती, डा. उमा भट्ट, ताराचंद्र त्रिपाठी, विनोद पांडे, डा.बी आर पंत, गिरजा पाठक, जगत सिंह रौतेला, डॉ. दिवा भट्ट, प्रफुल्ल पुरोहित, प्रेम पिरम, गंगा असनोड़ा, डा. स्वप्निल श्रीवास्तव, डीके जोशी, कैलाश तिवारी आदि देश के विभिन्न क्षेत्रों से आंदोलनकारी, पर्यावरणविद, सामाजिक कार्यकर्ता और वैज्ञानिकों ने भागीदारी की।

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