भाजपा को झटका, सुप्रीम कोर्ट ने आप-कांग्रेस उम्मीदवार कुलदीप को घोषित किया चंडीगढ़ का मेयर

नई दिल्ली | सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को एक ऐतिहासिक फैसले में चंडीगढ़ मेयर के पद पर चुनाव अधिकारी के निर्णय को अवैध घोषित करते…

भाजपा को झटका, सुप्रीम कोर्ट ने आप-कांग्रेस उम्मीदवार कुलदीप को घोषित किया चंडीगढ़ का मेयर

नई दिल्ली | सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को एक ऐतिहासिक फैसले में चंडीगढ़ मेयर के पद पर चुनाव अधिकारी के निर्णय को अवैध घोषित करते हुए रद्द कर दिया और आम आदमी पार्टी-कांग्रेस पार्टी गठबंधन उम्मीदवार कुलदीप कुमार को विजेता घोषित किया।

मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ तथा न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने मेयर के पद पर अपेक्षाकृत कम पाषर्द संख्या वाली भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के उम्मीदवार मनोज कुमार सोनकर को 30 जनवरी के चुनाव में गैरकानूनी तरीके से विजयी घोषित करने संबंधी पीठसीन अधिकारी अनिल मसीह के फैसले को अवैध घोषित करते हुए पलट दिया। अदालत ने याचिकाकर्ता आम आदमी पार्टी-कांग्रेस पार्टी गठबंधन उम्मीदवार कुलदीप कुमार को विजेता घोषित कर दिया।

पीठ ने अपने विस्तृत फैसले में कहा कि उसने चुनाव परिणामों को रद्द करने के लिए पूर्ण न्याय करने के वास्ते संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत अपनी पूर्ण शक्ति का इस्तेमाल करते हुए यह निर्णय सुनाया। शीर्ष अदालत ने पाया कि पीठासीन अधिकारी ने याचिकाकर्ता ‘आप’ उम्मीदवार कुलदीप कुमार के पक्ष में डाले गए आठ मतों को जानबूझकर विकृत कर दिया था।

पीठ ने वोटों की गिनती से संबंधित वीडियो देखने और विकृत मतपत्रों की जांच करने के बाद पीठासीन अधिकारी मसीह को अदालत की अवमानना ​​​​के लिए ‘कारण बताओ नोटिस’ जारी किया, जिसमें कहा गया कि उन्होंने (मसीह) जानबूझकर और गैरकानूनी तरीके से मेयर चुनाव को बदल दिया।

पीठ ने फैसले में कहा, “चुनाव प्रक्रिया को रद्द करना उचित नहीं होगा, क्योंकि मुद्दा केवल पीठासीन अधिकारी द्वारा मतों की गिनती करने की थी।” पीठ ने सुनवाई के दौरान कहा कि पीठासीन अधिकारी द्वारा कानून की अनदेखी करते हुए ‘चिह्नित’ किए गए सभी आठ मतपत्र आम आदमी पार्टी के उम्मीदवार के पक्ष में गिने जाएंगे।

चुनाव अधिकारी द्वारा 30 जनवरी को मेयर के पद के लिए विजयी घोषित किये गए भाजपा के उम्मीदवार मनोज कुमार सोनकर ने मतपत्रों में छेड़छाड़ के आरोपों के बीच सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई शुरू होने से पहले ही इस्तीफा दे दिया था।

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को इस मामले में पंजाब सरकार की उस याचिका को भी अनुमति देने का संकेत दिया, जिसमें बदली हुई परिस्थितियों के मद्देनजर नए सिरे से मतदान के बजाय मतों की दोबारा गिनती की अनुमति देने की गुहार लगाई गई थी।

पीठ ने गत 30 जनवरी को हुई मतों की गिनती के दौरान चुनाव अधिकारी द्वारा मतपत्रों पर निशान लगाने के मामले में सुनवाई करते हुए कहा था कि चुनावी लोकतंत्र में हस्तक्षेप करना सबसे गंभीर बात है और इसके लिए मुकदमा चलाया जाना चाहिए।

सुप्रीम कोर्ट ने इस बीच आम आदमी पार्टी के तीन पार्षदों के रविवार को भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) में शामिल होने का मामला सामने आने के बाद इस कथित ‘खरीद-फरोख्त’ पर चिंता व्यक्त की थी और कहा था, ‘हम जानते हैं कि क्या हो रहा है। हम खरीद-फरोख्त को लेकर बेहद चिंतित हैं। जो हो रही है, वह बहुत परेशान करने वाली बात है।’

सुनवाई के दौरान पीठ ने चुनाव अधिकारी मसीह से भी पूछा कि उन्होंने मतपत्रों को विकृत क्यों किया। शीर्ष अदालत ने चुनाव अधिकारी से कहा, “वीडियो से यह पूरी तरह स्पष्ट है कि आप कुछ मतपत्रों को देखते हैं। ऊपर या नीचे क्रॉस का निशान लगाते और हस्ताक्षर करते हैं। इसके बाद मतपत्रों को ट्रे में रखते हैं।” पीठ ने उनसे पूछा, “आपने मतपत्र पर क्रॉस का निशान लगाया है। यह बहुत स्पष्ट है कि आप कुछ मतपत्रों पर क्रॉस का निशान लगा रहे हैं। आपने कुछ मतपत्रों पर क्रॉस का निशान लगाया है या नहीं।”

इस पर अधिकारी ने कहा, “आम आदमी पार्टी पार्षद इतना शोर मचा रहे थे- कैमरा! कैमरा! कैमरा! इसलिए मैं उधर देख रहा हूं कि वे किस कैमरे की बात कर रहे हैं। मतदान के बाद मुझे मतपत्रों पर संकेत लगाना पड़ा।” चुनाव अधिकारी ने आगे कहा, “जो मतपत्र विरूपित ( निशान) थे, मैं सिर्फ इस बात पर प्रकाश डाल रहा था कि इसे दोबारा नहीं मिलाया जाना चाहिए। यही एकमात्र कारण था।”

पीठ ने कहा, “जैसा कि अधिकारी ने स्वीकार किया कि उसने मतपत्रों को विरूपित कर निशान लगाया। उनका जवाब बहुत स्पष्ट है। उन पर मुकदमा चलाया जाना चाहिए। एक पीठासीन चुनाव अधिकारी द्वारा चुनावी लोकतंत्र में हस्तक्षेप करना सबसे गंभीर बात है।”

पीठ ने सोमवार को पंजाब के महाधिवक्ता के अलावा सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता की दलीलें सुनने के बाद पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के रजिस्ट्रार जनरल को सभी 36 मतपत्रों को मंगलवार 20 फरवरी को उसके समक्ष पेश करने के लिए एक न्यायिक अधिकारी को नामित करने का निर्देश दिया था, क्योंकि उसे फरवरी में ही श्री कुमार द्वारा दायर याचिका पर विचार करना था।

उच्च न्यायालय द्वारा कोई अंतरिम आदेश पारित करने से इनकार करने के बाद आप-कांग्रेस के संयुक्त उम्मीदवार कुमार ने उच्चतम न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था। चुनाव में सोनकर को कुमार को मिले 12 मतों के मुकाबले 16 मत हासिल करने के बाद महापौर पद पर निर्वाचित घोषित किया गया था। मतों की गिनती के दौरान चुनाव अधिकारी ने आप-कांग्रेस गठबंधन उम्मीदवार को मिले आठ मतों को अवैध करार देते हुए खारिज कर दिया था।

शीर्ष अदालत ने गत पांच फरवरी को महापौर चुनाव के मूल दस्तावेजों को संरक्षित करने का निर्देश देते हुए कहा था कि यह स्पष्ट है कि चुनाव अधिकारी ने लोकतंत्र की “हत्या” और “मजाक” करने के प्रयास में मतपत्रों को विकृत कर दिया।

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