नई दिल्ली। कोविड—19 संक्रमित रोगियों के उपचार में देश भर में निजि अस्पतालों द्वारा ली जा रही भारी—भरकम धनराशि को लेकर दिशा—निर्देश जारी करते हुए सभी अस्पतालों में कोरोना का उपचार फ्री करने अथवा बहुत कम फीस पर करने की याचिका दायर होने के बाद केंद्र सरकार ने भी गत दिवस सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर किया है। जिसमें कहा गया है कि सरकार के पास निजी या धर्मार्थ अस्पतालों में कोरोना रोगियों को मुफ्त इलाज देने के लिए कोई वैधानिक शक्ति नहीं है। केंद्र ने कहा है कि क्लीनिकल एस्टाब्लिशमेंट कानून, 2010 के तहत कोई प्रावधान नहीं है, जिसके तहत यह अनिवार्य किया जाए कि सार्वजनिक भूमि पर चल रहे निजी अस्पताल कोरोना रोगियों क मुफ्त में इलाज करेंगे। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने दोहराया है कि इस तरह की नीतियों को केवल संबंधित राज्य सरकारों द्वारा ही लागू किया जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट की ओर से मांगे गए जवाब में केंद्र ने कहा कि इससे निजी अस्पतालों के वित्तीय स्वास्थ्य पर असर पड़ेगा, इसलिए कोर्ट अस्पतालों की बात सुनें। हेल्थ और भूमि प्रबंधन राज्य के विषय हैं, इसलिए राज्यों से पूछा जाए। पिछले इस याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से जवाब मांगा था। चीफ जस्टिस एसए बोबड़े ने केंद्र से निजी अस्पतालों की पहचान करने और यह पता लगाने के लिए कहा था। उन्होंने कहा था कि क्या वे मुफ्त में या कम लागत में उपचार प्रदान कर सकते हैं। इस पर केंद्र सरकार ने जवाब दाखिल करने का वक्त मांगा था। अब केंद्र सरकार की ओर से सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर कर दिया है। दरअसल, यह जनहित याचिका सचिन जैन द्वारा दायर की गई है। जिसमें कहा गय है कि निजी अस्पताल कोविड-19 रोगियों के इलाज के लिए अत्यधिक शुल्क ले रहे हैं। यह गंभीर चिंता का विषय है। याचिका में निजी अस्पतालों में कोविड-19 से संक्रमित गरीब और बगैर किसी स्वास्थ्य बीमा वाले मरीजों तथा सरकार की आयुष्मान भारत जैसी योजना के दायरे में नहीं आने वाले मरीजों के इलाज का खर्च सरकार को वहन करने का निर्देश देने का अनुरोध किया गया है।
केंद्र सरकार का सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा : प्राइवेट अस्पतालों में फ्री इलाज का नही दे सकते आदेश, कोई वैधानिक शक्ति नही
नई दिल्ली। कोविड—19 संक्रमित रोगियों के उपचार में देश भर में निजि अस्पतालों द्वारा ली जा रही भारी—भरकम धनराशि को लेकर दिशा—निर्देश जारी करते हुए…