प्रकृति एवं मानव के घनिष्ठ संबंधों को दर्शाता हरियाली दिवस : भरत गिरी गोसाई

देवभूमि उत्तराखंड में प्रतिमाह अलग-अलग दिवस मनाये जाते है, जिनका सीधा संबंध प्रकृति एवं मानव के घनिष्ठ संबंधों को दर्शाते है। ऐसा ही एक दिवस…

देवभूमि उत्तराखंड में प्रतिमाह अलग-अलग दिवस मनाये जाते है, जिनका सीधा संबंध प्रकृति एवं मानव के घनिष्ठ संबंधों को दर्शाते है। ऐसा ही एक दिवस है- उत्तराखंड हरियाली दिवस। उत्तराखंड हरियाली दिवस प्रतिवर्ष 5 जुलाई को मनाया जाता है, इसका मुख्य उद्देश्य लोगों को वृक्षारोपण के लिए प्रोत्साहित करके प्रकृति की हरियाली को बढ़ावा देना है।

हरियाली दिवस मनाने का मुख्य उद्देश्य: हम सभी जानते है कि प्रकृति के बिना मनुष्य का जीवन संभव नहीं है। प्रकृति हमे स्वच्छ हवा, पानी एवं भोजन प्रदान करती है। स्वस्थ जीवन के लिए स्वस्थ पर्यावरण आवश्यक है। किंतु वनों के अत्याधिक कटान, बढ़ता प्रदूषण ग्लोबल वॉर्मिंग आदि अनेक कारण प्राणियों के लिए खतरा बनता जा रहा है। जिस कारण अनेक जीव जंतु विलुप्त हो चुके है अथवा होने की कगार में है। वही इंसान कई प्रकार की गंभीर बीमारियों का शिकार भी हो रहे है। प्रकृति के संरक्षण एवं बेहतर भविष्य के लिए हमे प्रतिवर्ष हरियाली दिवस मनाने का संकल्प लेना चाहिए।

प्रकृति की हरियाली को बढ़ावा देने के लिए उत्तराखंड राज्य द्वारा की जा रहे प्रयास :

1.मिश्रित वन खेती मॉडल: विगत 30 वर्षो के अथक परिश्रम से रुद्रप्रयाग निवासी जगत सिंह चौधरी ‘जंगली’ द्वारा मिश्रित वन खेती मॉडल तैयार किया गया है। यह मॉडल पर्यावरण संरक्षण, परिस्थितिकी संतुलन, जल एवं मृदा संरक्षण के साथ साथ ग्रामीण लोगो के आर्थिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। उनके इस अथक प्रयासों के लिए भारत सरकार द्वारा 2006 में उन्हें आर्यभट्ट सम्मान भी दिया गया है।

2.अपना गांव अपना वन: उत्तराखंड राज्य सरकार द्वारा गांव को वनों से जुड़ने हेतु यह योजना चलाई गयी है। जिसका मुख्य उद्देश्य वन भूमि से अतिक्रमण हटाकर वृक्षारोपण करके प्रकृति की हरियाली को बढ़ावा देना है।

3.वन पंचायतें: उत्तराखंड में वनों के विकास व सुरक्षा में वन पंचायतों का महत्वपूर्ण योगदान है। अंग्रेजों द्वारा 1913 में गठित वन पंचायत उत्तराखंड में अब तक लगभग 12089 हो चुके है। वन पंचायतों को वनों के प्रबंधन, उत्पादों के उपयोग एवं गांव के सामूहिक विषयो पर निर्णय लेने का अधिकार है। यह देश में एक अलग तरह की अकेली व्यवस्था है।

4.पोध रोपण नीति: प्रकृति के संवर्धन एवं हरियाली को बढ़ावा देने के लिए 6 जनवरी 2006 को उत्तराखंड राज्य में पौध रोपण नीति लागू किया गया। जिसके तहत वृक्षारोपण की तकनीकी को उच्चस्तरीय बनाने के लिए उत्तराखंड राज्य में 8 हाईटैक वन नर्सरियों का गठन किया गया है। इस प्रकार वृक्षारोपण नीति लागू करने वाला उत्तराखंड देश का प्रथम राज्य हो गया है।

5.ईको टास्क फोर्स: 2008-09 में गठित ईको टास्क फोर्स का मुख्य उद्देश्य भूतपूर्व सैनिकों को रोजगार देना, वनीकरण में वृद्धि भर्ती करना, वनों की रक्षा करना आदि है।

प्रकृति की हरियाली को बढ़ावा देने में वन आंदोलन एवं पर्वों का योगदान:

1.चिपको आंदोलन: चिपको आंदोलन की शुरुआत 1974 में चमोली जिले के रैणी गांव की 23 वर्षीय विधवा महिला गौरा देवी द्वारा की गयी। इस आंदोलन के तहत वृक्षों की सुरक्षा के लिए ग्रामीणवासियों द्वारा वृक्षों को पकड़कर चिपक जाया जाता था। जिस कारण इस आंदोलन का नाम चिपको आंदोलन पड़ा। इस आंदोलन के तहत 1977 में एक प्रमुख नारा दिया गया था- क्या है जंगल के उपकार, मिट्टी पानी और बयार, जिंदा रहने के आधार। इस आंदोलन में अनेक लोगों ने अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया, जिनमें सुंदरलाल बहुगुणा व चंडी प्रसाद भट्ट प्रमुख थे।

2.मैती आंदोलन: मौती का अर्थ मायका होता है। इस अनूठे आंदोलन की शुरुआत 1996 में शिक्षक कल्याण सिंह रावत द्वारा किया गया इस आंदोलन के तहत विवाह समारोह के दौरान वर-वधू द्वारा पौधारोपण किया जाता है एवं उसकी सुरक्षा के लिए संकल्प लिया जाता है। जिससे प्रकृति की हरियाली बरकरार रही।

3.पानी रखो आंदोलन: पानी की कमी को दूर करने के लिए बंजर क्षेत्र में वृक्षारोपण करके बंजर भूमि में हरियाली लाने के लिए शिक्षक सच्चिदानंद भारती ने बच्चों, युवाओं एवं महिलाओं के साथ मिलकर 15 लाख पौधे लगाकर इस आंदोलन की शुरुआत पौड़ी गढ़वाल जनपद से की।

4.वन महोत्सव: प्रतिवर्ष केंद्र और राज्य सरकार द्वारा 1 से 7 जुलाई तक वन महोत्सव का आयोजन किया जाता है, जिसके तहत अनेक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। प्रकृति के संरक्षण हेतु वृक्षारोपण के कार्यक्रमों को बढ़ावा देना इस महोत्सव का मुख्य उद्देश्य है।

5.हरेला पर्व: हरेला का अर्थ हरियाली है। हरेला उत्तरखण्ड में मनाये जाने वाला प्रमुख पर्व है जो पर्यावरण व कृषकों से जुड़ा है। इस पर्व के दौरान 10 दिन पहले घरो में पुड़ा बनाकर पांच या 7 प्रकार के अनाज गेहूं, जौ, मक्का, गहत, सरसों समेत अन्य को बोया जाता है, जिसमें जल चढ़ाकर घरो में रोजाना इसकी पूजा की जाती है। किसान भी इस दौरान अपनी खेती की फसल की पैदावार का भी अनुमान लगाते है।

इसके अलावा रक्षा सूत्र आंदोलन, झटकों छीनो आंदोलन, वन आंदोलन, डूगी पेतोली आंदोलन आदि प्रकृति में हरियाली लाने के लिए किए गए प्रमुख आंदोलन है।


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