अल्मोड़ा। पहाड़ में त्वचा रोग कम नहीं हैं। तमाम लोग विविध प्रकार के चर्म रोगों की चपेट में हैं या आ जाते हैं। कई बार ये रोग खुद की लापरवाही या त्वचा की अनदेखी करने से पैदा हो जातेे हैं। ऐसे लोगों की समस्या दूर हो, इसके लिए सीएनई ने सलाहकार त्वचा विशेषज्ञ एवं कॉस्मेटोलॉजिस्ट डाॅॅ. अक्षत टम्टा, एमडी (डीवीएल) से वार्ता की, ताकि त्वचा रोग से परेशान लोगों को कोई राह मिल सके। इसके लिए प्रस्तुत है डा. अक्षत टम्टा का ये आलेख :-
मैदानी क्षेत्रों की अपेक्षा पर्वतीय क्षेत्रों में हर मौसम तीव्र होता है। सर्दियों में ठंड के कारण त्वचा अत्यधिक खुश्क हो जाती है और ऊंचाई पर रहने के कारण धूप तेज होती है। इन्हीं कारणों की वजह से हमें पर्वतीय क्षेत्रों में अपनी त्वचा की देखरेख करना अत्यंत आवश्यक है। अपनी त्वचा को साफ, सुंदर व निरोग रखने के लिए कुछ बातों का ख्याल रखें। उम्र के साथ शरीर में पानी की मात्रा कम हो जाती है। जिस कारण त्वचा सूखी व ढीली पड़ने लगती है। इसलिए प्रतिदिन कम से कम 4 लीटर पानी पीना चाहिए और फलों का सेवन करें। रोजाना या कम से कम एक दिन छोड़कर नहाने की आदत बनाएं और कपड़ों को भी बदलें। नहाने के तुरंत बाद शरीर में मॉइश्चराइजर या नारियल का तेल लगाएं। यह करने से आपकी त्वचा मुलायम व साफ रहेगी और आप त्वचा के इंफेक्शन से भी बच पाएंगे।
पहाड़ों की धूप में अल्ट्रावॉयलेट रेज तीव्र होती हैं। इस कारण स्किन टैनिंग, स्किन एजिंग, धूप से एलर्जी, झाइयां एवं अन्य प्रकार का कालापन व झुर्रियां होने की संभावनाएं ज्यादा होती हैं। इसके साथ ही अल्ट्रावॉयलेट रेज पहाड़ों में स्किन के कैंसर होने का प्रमुख कारण भी होती हैं। इन सभी समस्याओं से बचने के लिए लोगों को अपने शरीर के खुले भाग जैसे कि चेहरा, गर्दन व हाथों में नियमित रूप से दिन में दो बार एक अच्छे सनस्क्रीन का इस्तेमाल करना चाहिए। साथ ही धूप में निकलने से पहले टोपी या दुपट्टे से चेहरे को ढकना चाहिए। त्वचा को धूप से बचाने के लिए सिट्रस फ्रूट्स जैसे कि नींबू, संतरा, आंवला और बीटा कैरोटीन युक्त गाजर का सेवन भी अत्यंत आवश्यक है।
त्वचा हमारे शरीर को अनेक प्रकार के संक्रमण से बचाती है। इसलिए पहले त्वचा का स्वस्थ रहना जरूरी है। त्वचा में अनेक प्रकार के बैक्टीरियल, फंगल और वायरल संक्रमण हो सकते हैं, जिनकी रोकथाम के लिए नियमित रूप से कपड़ों को बदलना आवश्यक है। गर्मियों में ढीले, हल्के, कपास के वस्त्र पहनें तथा चुस्त जींस जैसे वस्त्रों का परहेज करें। अपने कपड़ों को अलग रखें और अलग धोएं, चाहे आप घर पर रहते हों या हॉस्टल मेें। किसी के साथ अपने कपड़े व तौलिया साझा न करें। त्वचा में किसी प्रकार की चोट व घाव हो जाने पर तुरंत उसे बहते हुए पानी में अच्छी तरह साबुन से 15 मिनट तक धोएं और नजदीकी अस्पताल में जाकर डॉक्टर की सलाह पर एंटीबायोटिक लेना शुरू करें।
पहाड़ों में महिलाएं कड़ी धूप में काम करती हैं और काम की धुन में अपनी त्वचा का ध्यान नहीं रखती। महिलाएं अनेक प्रकार के कॉस्मेटिक्स, केमिकल्स, ब्लीच आदि का इस्तेमाल भी करती हैं। इनके इस्तेमाल से चेहरे पर दाने या मुहासे होने का खतरा होता है। ऐसा होने पर महिलाएं डॉक्टर की राय नहीं लेती बल्कि रिश्तेदार व दोस्तों की सलाह पर बाजार में उपलब्ध अनेक प्रकार के टॉपिकल स्टेरॉयड को खरीदकर चेहरे पर लगा लेती हैं। यह बात बहुत कम लोग जानते हैं कि स्टेरॉयड के लगातार उपयोग से त्वचा में अनेक प्रकार की परेशानियां होती हैं। जैसे कि धूप में जाने पर चेहरा लाल होना (फोटो सेंसेटिविटी), खाल का पतला होना, चेहरे पर नसों का उभरना, चेहरे पर बालों का बढ़ना, मुहांसे आना आदि। इसके अलावा स्टेरॉयड छोड़ने पर चेहरा काला पड़ने लगता है। ऐसा करने के बजाय परेशानी से छुटकारा पाना के लिए सही इलाज किया जाए। इसके लिए विषय के जानकार चिकित्सक से ही इलाज कराना चाहिए। पर्वतीय क्षेत्रों में त्वचा, नाखून व बालों से संबंधित तमाम बीमारियां होती है। जिसमें सोरायसिस, एग्जिमा, एलर्जी, पित्त, खैर, सफेद दाग, चिकन पॉक्स, हरपीज, कुष्ठ रोग व मस्से रोजमर्रा देखने को मिल जाते है। त्वचा संबंधी सभी विकृत बीमारियों का एलोपैथिक पद्धति द्वारा संपूर्ण इलाज संभव है, बशर्तें समय रहते सही और पूर्ण इलाज कराया जाए।
>> डॉ. अक्षत टम्टा, एमडी (डीवीएल)
मनकोटी मेडिकेयर, टैक्सी स्टैंड अल्मोड़ा।
अल्मोड़ाः क्या आप त्वचा रोग से दुखी हैं, तो जानिये क्या कहते हैं स्किन स्पेशलिस्ट
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