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अल्मोड़ाः बिट्टू ने समझा आशा वर्कर्स का दुखड़ा, कार्यबोझ भारी और पगार के लाले, मुख्यमंत्री तक पहुंचाई समस्या


अल्मोड़ा। आशा वर्कर्स अपनी उपेक्षा से नाखुश हैं। एक ओर न्यून मानदेय पर कार्यरत होने के बावजूद उनके कंधे पर कार्य बोझ बढ़ा दिया है। वहीं दूसरी तरफ मानदेय लंबित रखा है और अतिरिक्त कार्यों के मानदेय में कटौती कर दी है। उनका यही दुखड़ा एनआरएचएम उत्तराखंड के पूर्व उपाध्यक्ष बिट्टू कर्नाटक ने उठाया है। इस मसले पर उन्होंने मुख्यमंत्री को ज्ञापन प्रेषित किया है और उनका कार्यबोझ कम करने, लंबित मानदेय का भुगतान करने व सुविधाएं प्रदान करने का अनुरोध किया है।
जिलाधिकारी के माध्यम से मुख्यमंत्री को प्रेषित विस्तृत ज्ञापन में उल्लेख किया गया है कि उत्तराखण्ड में राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के तहत कार्यरत आशा वर्कर्स को अपने कार्यक्षेत्र में स्वास्थ्य सेवा सम्बन्धी जानकारी देने, प्राथमिक चिकित्सा प्रदान करने, परामर्श देने, जटिल केसों को सन्दर्भित करने तथा उन्हें स्वास्थ्य सेवा केन्द्र पहुंचाने में मदद करने, ग्राम स्वास्थ्य योजना बनाने में सहायता करने, लोगों को सफाई व स्वच्छता के प्रति जागरूक करने जैसे उत्तरदायित्व सौंपे गये हैं। इसके अलावा स्वास्थ्य दिवस के जरिये गर्भवती महिलाओं की स्वच्छता व पोषण, देखभाल, टीकाकरण, सुरक्षित प्रसव की जानकारी देना भी आशा कार्यकर्ती का दायित्व हैं । मगर इस कोरोना काल में आशाओं को मास्क, ग्लब्ज, सैनिटाईजर, थर्मल स्क्रीनिंग डिवाईस, पीपीई किट जैसी कोई सुविधा उपलब्ध नहीं है।
उन्होंने कहा कि शुरू में आशा वर्कर्स की नियुक्ति महज मातृ-शिशु मृत्यु दर को रोकने के लिए की गई थी, लेकिन अब उत्तराखण्ड सरकार ने नये आदेश जारी कर उन पर कुछ अतिरिक्त जिम्मेदारियां थोप दी हैं। नये फरमानों के अनुसार कोरोना काल में आशाओं को अपने क्षेत्रों में उच्च रक्तचाप, शुगर, दिल, सांस, टीबी की बीमारी से ग्रसित लोगों, सर्दी-जुखाम व ज्वर से ग्रसित लोगों, कुपोषित बच्चों का विवरण, डेंगू, मलेरिया, उल्टी-दस्त से ग्रसित मरीजों, 65 वर्ष से अधिक उम्र के नागरिकों का नाम व विवरण, गर्भवती व धात्री स्त्रियों के विवरण की सूचना भी प्रेषित करने का काम करना है।
उन्होंने इस बात पर आश्चर्य प्रकट किया है कि मात्र दो हजार रूपये मासिक मानदेय पर आशा वर्कर्स पर अधिसंख्य जिम्मेदारियां सौंप दीं। यहां तक कि अन्य महत्वपूर्ण कार्यो के भत्ते के रूप में 1650 रूपये दिया जाना नियत हुआ है। मगर उन्हें दो हजार रूपये का न्यून मानदेय भी नवम्बर 2019 से आज तक नहीं मिल सका है। श्री कर्नाटक कने कहा है कि पूर्व में हरीश रावत सरकार द्वारा आशा वर्कर्स को दो हजार रूपये मासिक मानदेय के अलावा तीन हजार रूपये अन्य कार्यो के लिए देने का निर्णय लिया था, किन्तु मौजूदा सरकार ने अन्य कार्यों के लिए नियत तीन हजार रूपये के मानदेय में कटौती कर उसे 1650 रू. कर दिया। इस कोरोनाकाल में आशा वर्कर्स का न तो बीमा किया गया है और न ही इन्हें कोरोना वाॅरियर्स घोषित किया गया है। कोई प्रोत्साहन राशि भी नहीं दी गयी । श्री कर्नाटक ने मुख्यमंत्री से अनुरोध किया है कि आशा वर्कर्स पर कार्य के अनावश्क बोझ को कर्मचारी हित में हटाया जाए। आशा वर्कर्स को तत्काल लंबित मानदेय दिया जाए और इनका बीमा कर बढ़ा हुआ मानदेय व भत्ते दिए जाएं। वहीं जरूरी उपकरण व सुविधाएं प्रदान की जाएं, ताकि आशा वर्कर्स दोगुने उत्साह से कार्य कार्य कर सकें।

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