सुष्मिता थापा
बागेश्वर। देव भूमि के नाम से जाना जाने वाला उत्तराखंड अपनी खास संस्कृति, परम्परा, वेशभूषा और खानपान के लिए मशहूर है, लेकिन जिंदगी की भगदौड़ में पहाड़ों की हसीन वादियों को छोडक़र नवाबों की नगरी लखनऊ की ओर रुख करने वालों से अक्सर ये चीजें पीछे छूट जाती है। लखनऊ में रहने वाले मूल उत्तराखंड के निवासी अवध की नगरी में पहाड़ का खानपान, लोकनृत व पर्वतीय परम्पराओं आदि को बहुत याद करते हैं, लेकिन पर्वतीय महापरिषद की ओर से साल में आयोजित किये जाने वाले उत्तरायणी कौथिक (मेला) उनकी सारी यादें फिर ताजा हो जाती है। कोरोना महामारी के दौरान भी लखनऊ में उत्तराखंडी प्रवासियों के द्वारा उत्तरयाणी सादगी से मनाई जाएगी।

वैसे यहां रहने वाले उत्तराखंड के प्रवासी लोग हर साल उत्तरायणी मेला मनाते हैं। इस बार भी बाबा बागनाथ के मंदिर की ज्योति जलाकर मेले का आगाज होगा। लखनऊ से अखंड ज्योति ले जाने के लिए मेला समिति के लोग यहां पहुंचे। मंदिर कमेटी के अध्यक्ष नंदन सिंह रावल संरक्षक रतन सिंह रावल ने अखंड ज्योति उन्हें सौंपी।

आज सुबह ज्योति लेकर वे लखनऊ रवाना हुए। 11 जनवरी को लखनऊ से गणेश चंद्र जोशी तथा महेंद्र सिंह रावत से यहां पहुंचे। यहां पहुंचकर उन्होंने मंदिर कमेटी के अध्यक्ष समेत पदाधिकारियों से मुलाकात की। विशेष तरीके से बनाए लकड़ी के बॉक्स के अंदर ज्योति को रखा गया। इसके बाद इस अखंड ज्योति को सौंपा गया। ज्योति सकुशल लखनऊ पहुंचे इसके लिए वे कार लेकर आए हैं। उन्होंने बताया कि ज्योति स्थापित करने के बाद मकर संक्रांति से मेले का आयोजन किया जायेगा।
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