अल्मोड़ा : जिला मुख्यालय में आशा वर्कर्स का जुलूस—प्रदर्शन, अनिश्चितकालीन हड़ताल 17वें दिन भी जारी

रक्षाबंधन पर एक हजार का तोहफा नहीं मासिक वेतन दे राज्य सरकार : कमला कुंजवाल कभी प्रोत्साहन राशि कभी उपहार का झुनझुना पकड़ाना बंद करो…

  • रक्षाबंधन पर एक हजार का तोहफा नहीं मासिक वेतन दे राज्य सरकार : कमला कुंजवाल
  • कभी प्रोत्साहन राशि कभी उपहार का झुनझुना पकड़ाना बंद करो : डॉ कैलाश पाण्डेय

सीएनई रिपोर्टर, अल्मोड़ा

मासिक वेतन, पेंशन और आशा वर्करों को सरकारी कर्मचारी का दर्जा देने सहित विभिन्न लंबित मांगों को लेकर चल रहा आशाओं का आंदोलन जोर—शोर से जारी है। बुधवार को जिला मुख्यालय में आशा वर्कर्स ने जोरदार नारेबाजी के साथ जुलूस निकाला और गांधी पार्क में सभा की।

उल्लेखनीय है कि गत 02 अगस्त से ऐक्टू और सीटू से जुड़ी आशा यूनियनों की हड़ताल राज्य में आशाओं को मासिक वेतन, पेंशन और आशा वर्करों को सरकारी कर्मचारी का दर्जा देने समेत बारह सूत्रीय मांगों को लेकर चल रही है। हड़ताल के 17 दिन पूरे हो चुके हैं। धरना स्थल पर हुई सभा में वक्ताओं ने कहा कि मुख्यमंत्री मासिक वेतन की घोषणा के बजाय इधर उधर की बातों में आशाओं को उलझा रहे हैं।

हड़ताल के सत्रहवें दिन अल्मोड़ा पहुंची ऐक्टू से सम्बद्ध उत्तराखण्ड आशा हेल्थ वर्कर्स यूनियन की प्रदेश अध्यक्ष कमला कुंजवाल ने कहा कि, “उत्तराखण्ड राज्य के मुख्यमंत्री रक्षाबंधन पर आशाओं को एक हजार का उपहार सम्मान देने की बात कर रहे हैं लेकिन 17 दिनों से हड़ताल कर रही आशाओं को मासिक वेतन देने पर एक शब्द भी नहीं बोल रहे हैं। यह आंदोलन कर रही आशाओं का मजाक उड़ाने जैसा है।”

उन्होंने कहा कि, “पहले केंद्र और उत्तराखण्ड की राज्य सरकार द्वारा लंबे समय तक आशाओं का सेवा के नाम पर शोषण किया गया और जब आशाएँ जागृत हो गई तो उनको कभी प्रोत्साहन राशि कभी सम्मान राशि के नाम पर छलने की कोशिशें चल रही हैं। राज्य की आशा वर्कर अभूतपूर्व एकता दिखाते हुए आशाओं की ऐतिहासिक हड़ताल कर रही हैं और आशाओं की इसी एकता और आंदोलन ने सरकार को चिंता में डाल दिया है। जिसके चलते आशाओं के एकताबद्ध आंदोलन से घबराकर राज्य सरकार एक ओर आशाओं पर स्वास्थ्य विभाग के माध्यम से दबाव बना रही है और दूसरी ओर यूनियनों के संयुक्त आंदोलन को तोड़ने की कोशिश कर रही है। जो कि शर्मनाक है।”

यूनियन के प्रदेश महामंत्री डॉ. कैलाश पाण्डेय ने कहा कि, “आशाएं और कुछ नहीं केवल अपनी मेहनत का दाम चाहती हैं, जो कि उनका वाजिब और संविधान प्रदत्त हक है। उच्चतम न्यायालय ने भी सभी कामगारों के लिए न्यूनतम वेतन दिए जाने को जरूरी बताया है। तब सरकार आशाओं को उनके श्रम का उचित मूल्य क्यों नहीं देना चाहती ? यह महिला श्रम का शोषण नहीं तो और क्या है?” उन्होंने कहा कि, “सम्मान-उपहार के लॉलीपॉप की नहीं आशाओं मासिक वेतन और रिटायरमेंट के बाद पेंशन का प्रावधान करे सरकार।”

सत्रहवें दिन के धरने के पश्चात अल्मोड़ा बाजार में जोरदार जुलूस निकाल कर प्रदर्शन किया गया। जिसमें उत्तराखंड आशा हेल्थ वर्कर्स यूनियन की प्रदेश अध्यक्ष कमला कुंजवाल, प्रदेश महामंत्री डॉ कैलाश पाण्डेय, समेत ऐक्टू और सीटू से जुड़ी आशा यूनियनों की ममता तिवारी, विजयलक्ष्मी, पूजा बगड़वाल, खष्टी कनवाल, चन्द्रा बिष्ट, गीता कनवाल, कमला रावत, उमा आगरी, नीमा जोशी, सरस्वती अधिकारी, भगवती कपकोटी, गीता वर्मा, बिमला रावत, हेमा, भगवती आर्य, आनंदी मेहरा, ममता भट्ट, देवकी बिष्ट आदि समेत बड़ी संख्या में आशाएँ शामिल थीं।


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