उत्तराखण्ड के एक छोटे से शहर में जन्मे युवा खिलाड़ी लक्ष्य सेन ने बर्मिंघम में हाल में ही आयोजित कौमन वेल्थ गेमस 2022 में स्वर्ण पदक जीत कर विदेशी ज़मीन में भारतीय परचम लहरा कर इतिहास रच डाला है। उक्त आलेख में लेखिका दिया औड्री मार्कस ने लक्ष्य के जीवन संघर्षों पर संक्षिप्त प्रकाश डालने का प्रयास किया है – संपादक
लक्ष्य का जन्म 16 अगस्त 2001 में उत्तराखण्ड के एक छोटे से शहर अल्मोड़ा में हुआ। लक्ष्य के लहू में बैडमिंटन उनके दादा स्व. सीएल सेन एवं उनके पिता डीके सेन से ही आया। लक्ष्य के पहले कोच उनके पिता ही थे, जिन्होंने लक्ष्य में बैडमिंटन की बुनियाद मात्र 03 वर्ष की आयु में रखी, जिस उम्र में बच्चे ठीक से बोल नहीं पाते उस उम्र में उनके पिता ने देश के स्वर्णिम भविष्य की बुनियाद रख दी। विदित है कि रिमोट वाली गाड़ी के शौकीन लक्ष्य ने अपने बचपन में बच्चों वाले खेल छोड़ बैडमिंटन रैकेट पकड़ लिया था।
एक टीवी इंटरव्यू में लक्ष्य के पिता डीके सेन ने बताया कि लक्ष्य ने मलेश्यिा में एक टूर्नामेंट के बाद रिमोट वाली गाड़ी खरीदी जिससे यह प्रत्यक्ष है कि लक्ष्य अपना बचपन पुनः जी रहा है। यह एक उदाहरण है आज के युवा के लिये, कि किस तरह अपनी इच्छाओं को छोड़ कर अपने लक्ष्य को कैसे छुआ जा सकता है। लक्ष्य ने अल्मोड़ा जैसे छोटे से शहर से सश्रम अपना सफर शुरु किया। पहाड़ के लोग जानते हैं पिछड़ने के बाद जीतना क्या होता है, लक्ष्य इसका जीता-जागता उदाहरण है। लक्ष्य सेन ने कम सुविधाओं, लेकिन दृढ़ आत्मविश्वास के साथ कई उतार-चढ़ावों के बावजूद कामन वैल्थ गेम्स तक का सफर कई कठिनाइयों के साथ पूरा किया है।
आज के इस दौर में जहां माता-पिता अपने बच्चों को डॉक्टर व इंजीनियर बना देखना चाहते हैं, वहीं लक्ष्य ने साबित कर दिया है कि मंजिल खेल के क्षेत्र में भी पाई जा सकती है। लक्ष्य की इस सफलता का श्रेय उसके अथक परिश्रम एवं उस माता पिता को जाता है, जिन्होंने अपने सुपुत्र के सपनों को पूरा करने में उसका पूर्ण सहयोग दिया। वहीं उस गुरु को भी नहीं भूला जा सकता जिसने लक्ष्य नामक हीरे को तराश कर इस देश के मस्तक पर सजा दिया। वर्तमान में लक्ष्य सेन पादुकोण अकादमी में अपने गुरु के नेतृत्व में अभ्यास कर रहे हैं। आज सिर्फ अल्मोड़ा ही नहीं परंतु पूरे राष्ट्र को लक्ष्य पर गर्व है।