शिक्षक दिवस पर विशेष: मेहनत-लगन के पंखों से भरी उड़ान, तब हासिल किया उच्च मुकाम। प्रो. जगत सिंह बिष्ट ने प्रस्तुत किया है प्रेरणादायी उदाहरण!

चन्दन नेगी, अल्मोड़ादिनांक – 5 सितंबर, 2020पहाड़ के दूरस्थ गांव में एक साधारण परिवार में वह जन्मे और पूरी तरह ग्रामीण परिवेश में पले और…

चन्दन नेगी, अल्मोड़ा
दिनांक – 5 सितंबर, 2020

पहाड़ के दूरस्थ गांव में एक साधारण परिवार में वह जन्मे और पूरी तरह ग्रामीण परिवेश में पले और बड़े हुए। प्रारंभिक जीवन बेहद कठिनाई के दौर में गुजारा। परिवार के कठिन दौर में भी इंटर तक की शिक्षा गांव में पाई। उस दौर में सुदृढ़ आर्थिक स्थिति या ऊंची पहुंच जैसी चीज नहीं थी, लेकिन गरीबी में साथ रहे तो संस्कार, सादगी, लगन और मेहनत। इन्हीं के दम पर सफलता के पायदान चढ़े और साबित कर दिया कि कठिन परिश्रम ही वह चाभी है, जो किस्मत का मजबूत ताला खोल देती है। यहां बात हो रही है दशकों से एक आदर्श शिक्षक की भूमिका निभा रहे प्रो. जगत सिंह बिष्ट की। जो वर्तमान में सोबन सिंह जीना परिसर अल्मोड़ा के निदेशक हैं। शिक्षक दिवस के मौके पर ऐसे प्रेरणादायी उदाहरणों का उल्लेख करना जरूरी समझा जाना चाहिए।
अगर यूं कहें कि शिक्षक दिवस गुरू-शिष्य के पावन, अनूठे व अटूट रिश्ते को बयां करने और गुरूजनों के प्रति अथाह सम्मान करने का पावन पर्व है, तो इसमें शायद अतिश्योक्ति नहीं होगी। महान कवि कबीरदास के इस दोहे से अनुमान लगाया जा सकता है गुरू महिमा का –
“गुरू समान दाता नहीं, याचक शिष्य समान।
तीन लोक की संपदा, सो गुरू दीन्हीं दान।।”

यानी गुरू के समान को दाता नहीं है और शिष्य के जैसा याचक नहीं। तीनों लोकों से भी बढ़कर ज्ञान का दान गुरू ने ही दिया है। एक आदर्श शिक्षक के रूप में स्थापित होने के लिए कठिन मेहनत, लगन, धैर्य का होना आवश्यक है। प्रो. जगत सिंह बिष्ट ने ऐसा ही प्रेरणादायी उदाहरण प्रस्तुत किया है। जिन्होंने कठिन दौर देखा और संघर्ष, मेहनत व लगन से मुकाम हासिल किया।
30 अक्टूबर 1962 को पिथौरागढ़ जनपद अंतर्गत अस्कोट क्षेत्र के दूरस्थ गांव पपरौली में जन्मे प्रो. बिष्ट का नाता एक बेहद साधारण ग्रामीण परिवार से रहा है। उन्होंने पारिवारिक गरीबी के बावजूद उस दौर में प्रारंभिक से लेकर इंटर तक की शिक्षा गांव में ली। पिथौरागढ़ जिले के दूरस्थ राउमावि सिंगाली से हाईस्कूल तथा राइंका गर्खा से इंटर की परीक्षा उत्तीर्ण की। प्रो. बिष्ट का अतीत बड़ा ही संकटमय रहा है, लेकिन उन्होंने धैर्य, लगन व मेहनत से नाता नहीं तोड़ा। जब वे सातवीं कक्षा में पढ़ते थे, तब उनके सर से मां का साया उठ गया। बाद में एक बहन की मौत हो गई। बाद में छोटे भाई की मौत हो गई। ऐसे में परिवार एक के बाद एक संकट झेलता रहा। ऐसी स्थिति में खेती-बाड़ी का काम भी छूट गया। उनके पिता वैद्य का काम करते थे। यही परिवार की आजीविका का साधन रह गया था। कठिनता के बावजूद पिता ने प्रो. बिष्ट को इंटर की पढ़ाई के बाद आगे की पढ़ाई के लिए पिथौरागढ़ भेजा। पीजी कालेज पिथौरागढ़ से उन्होंने यूजी व पीजी किया। बाद में कुमाऊं विश्वविद्यालय से पीएचडी की उपाधि पाई। लगन व कठिन मेहनत से प्रो. बिष्ट का रिकार्ड रहा है कि उन्होंने हाईस्कूल से लेकर उच्च शिक्षा तक सभी परीक्षाएं प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की है। ऐसा हो भी क्यों नहीं, जब बचपन से ही संस्कारित, मेहनती व लगनशील रहे हों। उन्होंने जो भी पाया खुद की मेहनत से। धैर्य, लगन व मेहनत ने उनका साथ भी दिया। सदैव अध्यापन और साहित्य साधना में रत रहते उन्होंने सफलता के पायदान चढ़े हैं और 19 नवंबर 2019 से सोबन सिंह जीना परिसर अल्मोड़ा के जिम्मेदार पद निदेशक का दायित्व बखूबी निभा रहे हैं। सदैव सादगी में रहने वाले मृदुल व्यवहारिक प्रो. बिष्ट ने एक आदर्श गुरू की भूमिका निभाई है। यही वजह है कि उनसे छात्र-छात्राओं को अत्यधिक लगाव रहा है।
अध्यापन और दायित्वों का सफर: प्रो. जगत सिंह बिष्ट ने सन् 1985 में राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय, पिथौरागढ़ से अध्यापन कार्य का श्रीगणेश किया। हालांकि इससे पहले उन्होंने नारायणनगर, मानिला व स्याल्दे आदि डिग्री कालेजों में शिक्षण कार्य किया। सदैव लगनशीलता के चलते प्रो. बिष्ट ने वर्ष 1991 से कुमाऊं विवि के एसएसजे परिसर, अल्मोड़ा के हिंदी विभाग में अध्यापन कार्य शुरू किया। उन्होंने उपाचार्य, प्राक्टर, कुलानुशासक, विभागाध्यक्ष जैसे पदों का दायित्व निभाया है। इसके अलावा कई समितियों में उनकी सक्रिय भागीदारी रही है। अध्यापन व दायित्व निवर्हन के साथ साहित्य साधना भी उनमें कूट-कूट कर भरी है। उनके निर्देशन में तमाम छात्र-छात्राओं ने पीएचडी की उपाधि प्राप्त की और आज भी कई विद्यार्थी शोधरत हैं। विभिन्न राष्ट्रीय स्तर के पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित प्रो. बिष्ट के सारगर्भित आलेख, शोध पत्र, कविताएं और प्रकाशित कविता संग्रह व पुस्तकें उनकी विद्वता एवं व्यक्तित्व का बखूबी परिचय देते हैं। आकाशवाणी से भी उनकी अनेक वार्ताएं व कविताएं प्रकाशित हो चुकी हैं।
साहित्य साधना (प्रकाशित रचनाएं):- सन्नाटे का वक्तव्य (कविता संग्रह), सूखे पत्रों से (कविता संग्रह), .हिंदी स्मारक साहित्य, मैथिलीशरण गुप्त के काव्य में अलंकार विधान, काव्यशास्त्र के सिद्धांत, मैथिलीशरण गुप्त के काव्य में गाँधी दर्शन, साहित्य सृजन के कुछ संदर्भ, होने की प्रतीति ( कविता संग्रह), कुमाऊंनी की उपबोली अस्कोटी का व्याकरण, साहित्य प्रसंग, विचार और विश्लेषण, .साहित्य, लोक साहित्य और भाषा पर्व, उत्तरखण्ड का हिंदी साहित्य तथा साहित्य प्रसंगः विचार और विश्लेषण आदि। इनके अलावा उनके द्वारा संपादित एवं सह संपादित साहित्य में निबंध सप्तक, गद्य संचयन, हिंदी स्मारक साहित्य संग्रह, मानक हिंदी शब्दावली, भाषा संप्रेषणः विविध आयाम, उत्तराखंड के रचनाकार और उनका साहित्य तथा कुमाऊंनी कविता संग्रह उमाव प्रमुख रूप से शामिल हैं। इसके अलावा 50 से अधिक शोध पत्र विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुके हैं।
ऐसे में उनका अतीत और मेहनत का वृतांत बेहद प्रेरणादायी है। प्रो. बिष्ट छात्र-छात्राओं और युवाओं को मेहनत, लगन व धैर्य के साथ आगे बढ़ने की प्रेरणा देते हैं। उनका कहना है कि सफलता के लिए लगे रहना, डटे रहना का सूत्र जरूरी है। वह कुछ इस अंदाज में संदेश देते हैं-
“जिंदगी में कुछ पाना हो, तो खुद पे एतबार रखना,
इरादे पक्के और कदमों में रफ्तार रखना।
कामयाबी मिलेगी जरूर एक दिन निश्चित ही तुम्हें,
बस खुद को आगे बढ़ने के लिए तैयार रखना।”

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